नई दिल्ली, (इंडिया साइंस वायर) भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के शोधकर्ताओं ने एक नया सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म विकसित किया है। इस सॉफ्टवेयर के साथ समायोजित कुछ विशिष्ट ऐप और एल्गोरिदम शहरों में लगे कैमरों से प्राप्त होने वाले वीडियो-फीड को ट्रैक करने और प्राप्त डेटा का विश्लेषण करने में सहायक हो सकते हैं।
इस तरह के स्मार्ट विश्लेषण न केवल लापता व्यक्तियों या वस्तुओं पर नजर रखने के लिए उपयोगी हो सकते हैं, बल्कि स्वचालित ट्रैफिक नियंत्रण और "स्मार्ट सिटी" जैसी पहल को मजबूत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
दुनियाभर के शहरों में निगरानी के लिए बड़ी संख्या में वीडियो कैमरे लगाए जा रहे हैं। मशीन लर्निंग मॉडल इन कैमरों से प्राप्त होने वाली फीड के विश्लेषण से विभिन्न विशिष्ट उद्देश्यों के समाधान खोजने में उपयोगी हो सकते हैं। किसी चोरी हुई कार को ट्रैक करना, या फिर ट्रैफिक प्रबंधन जैसे विषय इन उद्देश्यों में शामिल हो सकते हैं। ये मॉडल खुद से काम नहीं करते; बल्कि इन्हें किसी सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म पर चलाना पड़ता है, जो काफी हद तक कंप्यूटर के ऑपरेटिंग सिस्टम के समान होता है। मौजूदा सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म आमतौर पर अपरिवर्तनीय होते हैं, और उनमें परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार मशीन लर्निंग मॉडल को संशोधित करने, या समान कैमरा नेटवर्क पर नये मॉडल्स के परीक्षण के लिए लचीलापन नहीं होता।
भारतीय विज्ञान संस्थान के डिपार्टमेंट ऑफ कम्प्यूटेशनल ऐंड डेटा साइंसेज (सीडीएस) में एसोसिएट प्रोफेसर योगेश सिम्मन ने बताया कि “इन मॉडलों की सटीकता बढ़ाने के लिए बहुत-सारे शोध हुए हैं, लेकिन इस बात पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है कि इन मॉडल्स को किसी बड़े ऑपरेशन के घटक के रूप में कैसे अनुकूलित किया जाए।” शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने इस कमी को दूर करने के लिए यह नया सॉफ्टवेयर विकसित किया है, जिसका नाम अन्वेषक है। अन्वेषक ट्रैकिंग मॉडल्स को कुशलता से संचालित कर सकता है, और उन्नत कंप्यूटर विज़न टूल्स में प्लग-इन कर सकता है। यह सॉफ्टवेयर वास्तविक समय में कैमरा नेटवर्क के खोज के दायरे के अलग-अलग मापदंडों को समायोजित भी कर सकता है।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एक हजार कैमरों के नेटवर्क में दिखाया है कि अन्वेषक किस तरह किसी चोरी हुई कार जैसी वस्तु को खोजने में उपयोगी हो सकता है। इस प्लेटफॉर्म की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह एक ट्रैकिंग मॉडल या एल्गोरिदम को केवल एक निश्चित मार्ग के कुछ कैमरों से प्राप्त फीड पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देता है, और अन्य फीड पर ध्यान नहीं देता है। यह ऑब्जेक्ट की अंतिम ज्ञात स्थिति के आधार पर खोज के दायरे को स्वचालित रूप से बढ़ा या घटा सकता है।
फीड्स का विश्लेषण करने वाले कंप्यूटरों का प्रकार और संख्या जैसे संसाधन सीमित होने के बावजूद यह सॉफ्टवेयर ट्रैकिंग को निर्बाध रूप से जारी रखने में सक्षम है। प्रोफेसर योगेश सिम्मन कहना है कि “यदि खोज का दायरा बढ़ाने की आवश्यकता हो, और कंप्यूटर पर दबाव बढ़ने लगे, तो इस प्लेटफॉर्म पर बैंडविथ बचाए रखने के लिए स्वतः वीडियो की गुणवत्ता कम होने लगती है, जबकि ऑब्जेट को ट्रैक करने का क्रम चलता रहता है।”
शोधकर्ताओं ने यह भी दिखाया है कि अन्वेषक चौराहों पर ट्रैफिक नियंत्रित करने, और एंबुलेंस को तेजी से आगे बढ़ने के लिए उपयुक्त मार्ग सुझाने में उपयोगी हो सकता है। इस फ्लेटफॉर्म पर एक मशीन लर्निंग मॉडल का उपयोग लगभग 4,000 कैमरों से लैस बेंगलुरु के एक कृत्रिम रोड नेटवर्क पर एम्बुलेंस को ट्रैक करने के लिए किया गया है। इसमें एक "स्पॉटलाइट ट्रैकिंग एल्गोरिदम" को भी स्वचालित रूप से प्रतिबंधित करने के लिए लगाया गया है, जहाँ एंबुलेंस के जाने की संभावना के आधार पर विश्लेषण की आवश्यकता होती है।
शोधकर्ता इस प्लेटफॉर्म में गोपनीयता आधारित प्रतिबंधों को शामिल करने पर भी काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि इस प्लेटफॉर्म पर किस तरह के विश्लेषण को संचालित किया जाना है, और किसे प्रतिबंधित किये जाने की आवश्यकता है। प्रोफेसर सिम्मन कहते हैं कि उदाहरण के लिए इस प्लेटफॉर्म के जरिये एक तरफ गाड़ियों को ट्रैक करने से संबंधित एनालिटिक्स को अनुमति दी जा सकती है, तो दूसरी ओर लोगों की निगरानी करने वाले तंत्र को प्रतिबंधित कर सकते हैं।
यह अध्ययन शोध पत्रिका आईईईई ट्रांजैक्शन्स ऑन पैरलेल ऐंड डिस्ट्रीब्यूटेड सिस्टम्स में प्रकाशित किया गया है। अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में प्रोफेसर सिम्मन के अलावा, भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के शोधकर्ता आकाश दिगंबर कोचारे और तमिलनाडु के वेल्लोर में स्थित वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ता अरविंदन कृष्णन शामिल हैं।