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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ओवैसी की एंट्री के साथ राष्ट्रवाद बनाम राष्ट्रद्रोह और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की सियासत का शंखनाद!

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विकास सिंह

, शुक्रवार, 9 जुलाई 2021 (11:20 IST)
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में अगले साल 2022 की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए असदुद्दीन औवेसी की पार्टी आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने चुनावी शंखनाद कर दिया है। गुरुवार को उत्तर प्रदेश के दौरे पर पहुंचे AIMIM के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सूबे की राजधानी लखनऊ से 110 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बहराइच जिले में पार्टी ने अपने पहले चुनावी कैंप कार्यालय का उद्घाटन किया। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बहराइच में खोले गए पार्टी के इस कैंप कार्यालय से पूर्वी उत्तर प्रदेश में 27 जिलों का चुनाव प्रबंधन किया जाएगा। 
 
आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) दावा करती है कि वह पहली पार्टी है जिसने विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी कार्यालय को शुरु करने के साथ चुनाव के लिए प्रत्याशियों के चयन का काम शुरु कर दिया है। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के लिए औवेसी की पार्टी ने 100 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान किया है जिसके लिए पार्टी राज्य के पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दो चुनावी कार्यालय खोल रही है जिसमें पहले चुनाव कार्यालय का बहराइच में पार्टी ने शुरु कर दिया है।      

सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की सियासत का आगाज- उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव प्रचार का शंखनाद करने पहुंचे असदुद्दीन ओवैसी ने मुस्लिम वोट बैंक को रिझाने के लिए ध्रुवीकरण कार्ड भी खेला। बहराइच दौरे के दौरान ओवैसी सैय्यद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर पहुंचकर चादर भी चढ़ाई। ओवैसी की सालार मसूद गाजी की दरगाह पर जाने के साथ यूपी चुनाव में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण कार्ड की भी एंट्री हो गई है। असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि इस बार उत्तर प्रदेश मे MY समीकरण नहीं AtoZ समीकरण चलेगा। 2022 के विधानसभा चुनाव सियासी हिस्सेदारी की लड़ाई होगी।   

दरअसल सैय्यद सालार मसूद गाजी की पहचान 11 वीं सदी में भारत पर अक्रामण करने वाले महमूद गजनवी के सेनापति के रुप में होती है जिसको राजा सुहेलदेव ने बुरी तरह पराजित कर मार डाला था। मसूद गाजी को जिस जगह दफनाया गया वहां आज दरगाह के नाम से प्रसिद्ध होने के साथ-साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की आस्था का एक बड़ा केंद्र भी है। राजनीति के जानकार ओवैसी के दरगाह पर जाने और माथा टेकने को उनके सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के एजेंडे का मुख्य हिस्सा मानते है।   
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राष्ट्रवाद बनाम राष्ट्रद्रोह सियासत की एंट्री- ओवैसी के सैय्यद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर जाने को मुद्दा बनाते हुए भाजपा हमलावर हो गई है। दरअसल उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बहराइच में राजा सुहेलदेव की वीरता को नमन करते हुए उनसे जुड़े हुए इतिहास को चिर स्थाई बनाने के लिए एक स्मारक का निर्माण कर रही है जिसका शिलान्यास खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल फरवरी में किया था।
 
योगी सरकार में मंत्री और बहराइच के प्रभारी अनिल राजभर ने ओवैसी के दरगाह पर जाने को राष्ट्रदोह बता डाला। अनिल राजभर ने कहा कि बहराइच की धरती पर एक महापुरुष और देशभक्त का अपमान हुआ है। सैय्यद सालार मसूद गाजी ने भारत पर 17 बार हमला करने वाला एक अक्रांता था और ऐसे सैय्यद सालार मसूद गाजी की मजार पर जाकर माथा टेकना राष्ट्रद्रोह है। 
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औवेसी का चुनावी गणित-बिहार चुनाव में पांच विधानसभा सीटों पर जीत हासिल करने वाली AIMIM, 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक पर अपनी नजर गड़ा दी है। पार्टी ने मुस्लिम बाहुल्य वोटरों वाली 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान इसी रणनीति का हिस्सा है। ओवैसी और उनकी पार्टी की नजर उत्तर प्रदेश के उस 19 फीसदी मुस्लिम वोट बैंक पर टिकी है जो कि 140 से अधिक विधानसभा सीटों पर अपना असर रखती है। मुस्लिम वोट बैंक की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राज्य की 100 से अधिक विधानसभा सीटें ऐसी है जहां इनका एकजुट वोट उम्मीदवार की जीत तय कर सकता है। 

बहराइच में चुनावी कार्यालय का उद्घाटन करते हुए ओवैसी ने कहा कि मुसलमान अपने वोटों से अपने नुमाइंदों को कामयाब करेंगे और अपनी आवाज को विधानसभा तक ले जाएंगे। औवेसी ने कहा कि मुसलमान सर्कस के मदारी या स्टेज के कव्वाल नहीं है। हम हिस्सेदारी की लड़ाई लड़ रहे है। अब मुसलमान किसी के दिए टुकड़ों पर जिंदगी नहीं नहीं गुजारेंगे। 
 
पार्टी प्रदेश के 75 जिलों में से 55 जिलों में आने वाली उन 100 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है जिनमें मुस्लिम वोटरों की संख्या 35 फीसदी से उपर है,इन जिलों में पूर्वाचल की बहराइच, बलरामपुर, श्रावस्ती, गोंडा के साथ-साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जिला गोरखपुर भी आता है। बहराइच से तो खुद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली चुनाव लड़ने की तैयारी में है। AIMIM की नजर पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुस्लिम वोट बैंक पर टिकी हुई है। पार्टी पश्चिम उत्तर प्रदेश की चालीस सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयार कर रही है। 
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क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक-उत्तर प्रदेश की सियासत पर करीबी से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि औवेसी को लेकर भाजपा का कुछ ज्यादा ही अक्रामक होने काफी कुछ चौंकाता है। पिछले दिनों जिस तरह से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने असदुद्दीन ओवैसी को एक बड़ा नेता बताते हुए उनके चैलेंज को स्वीकार किया वह भी कम अचरज भरा नहीं था। योगी का न सिर्फ असदुद्दीन ओवैसी को बड़ा और जनाधार वाला नेता बताना बल्कि उनके चैलेंज को स्वीकार करने से ओवैसी अचानक से उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बड़े नेता के रूप में स्थापित हो गए। 
 
रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि भाजपा अच्छी तरह से जानती है कि असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी मुस्लिम वोट बैंक में जितना सेंध लगाएंगे उतना ही नुकसान विपक्ष खासकर समाजवादी पार्टी को होगा और उसका सीधा लाभ मिलेगा। 2022 के विधानसभा चुनाव में जब एक कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है तब 19 फीसदी वोट बैंक वाले मुस्लिम वोटर गेमचेंजर साबित हो सकता है क्योंकि इनका एक मुश्त वोट राज्य की 100 से अधिक विधानसभा सीटों पर जीत हार तय कर देता है।  
 
2017 का अनुभव खराब-2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले पूरा दमखम दिखाने की कोशिश कर रहे असदुद्दीन औवेसी और उनकी पार्टी का राज्य में पुराना ट्रैक रिकॉर्ड बहुत खराब है। 2017 के विधानसभा चुनाव में औवेसी की पार्टी ने राज्य की 38 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें 37 पर पार्टी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। इन 38 सीटों पर औवेसी की पार्टी को सिर्फ 2.46 फीसदी वोट हासिल हुआ था।  ऐसे में 2022 के विधानसभा चुनाव में औवेसी और AIMIM क्या असर दिखाते है या देखना दिलचस्प होगा। 

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