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ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी

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सुरेश डुग्गर

श्रीनगर। सत्तर सालों से जम्मू कश्मीर में बिना नागरिकता के रह रहे लाखों वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी अब अपने आपको ठगा हुआ भी महसूस कर रहे हैं। कारण पूरी तरह से स्पष्ट है कि जिस राजनीतिक दल भाजपा ने उन्हें नागरिकता दिलवाने के नाम पर हमेशा वोट बटोरे थे वह यू टर्न ले चुकी है। दरअसल भाजपा ने पीडीपी के समक्ष घुटने टेकते हुए इन रिफ्यूजियों को स्थाई नागरिकता देने के बजाय एक प्रमाण पत्र देने की सहमति पर अपनी मुहर लगा दी है।
आपको यह जानकर हैरानी होगी की जम्मू कश्मीर की नागरिकता पाना अमेरिका की नागरिकता से भी मुश्किल है। दूसरे शब्दों में कहें तो अमेरिका में एक निर्धारित अवधि में रहने के बाद आपको नागरिकता मिल जाती है, पर जम्मू कश्मीर में पिछले 70 सालों से रह रहे इन लाखों रिफ्यूजियों को आज भी नागरिकता नहीं मिली है।
 
प्रत्येक चुनाव में भाजपा ने इन रिफ्यूजियों के मुद्दे को भुनाया जरूर था। यह भी एक कड़वा सच है कि 70 सालों से जम्मू कश्मीर में रह रहे वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी सिर्फ संसदीय चुनावों में ही मतदान कर सकते हैं और नगर पालिका तथा विधानसभा सीटों के लिए होने वाले मतदान करने से वे वंचित हैं। राज्य सरकार की नौकरियों में भी उन्हें कोई अधिकार नहीं है। स्पष्ट शब्दों में कहें तो राज्य के नागरिकों को मिलने वाली सुविधाएं उनसे दूर रखी गई हैं।
 
और अब जब भाजपा राज्य में सत्ता में आई तो दो सालों की कोशिशों के बाद भी इन रिफ्यूजियों का कोई मसला हल होता नजर नहीं आया, क्योंकि उन्हें पक्के तौर पर राज्य का नागरिक बनाए जाने का मुद्दा पीडीपी के दबाव के चलते ठंडे बस्ते में डाल दिया गया और उसके स्थान पर उन्हें डोमिसाइल सर्टिफिकेट देने की घोषणा कर दी गई। यह सर्टिफिकेट पाकर भी खुश होने वाले इन रिफ्यूजियों को उस समय झटका लगा जब कांग्रेस और नेकां समेत अन्य राजनीतिक दलों ने हुर्रियत के विरोध का समर्थन कर डाला।
 
वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी फ्रंट के प्रधान लब्बा राम गांधी समेत इन रिफ्यूजियों के अन्य नेता भी अब अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें जो प्रमाण पत्र दिए जा रहे हैं वे केंद्र सरकार के मामलों में ही काम आने वाले हैं, जबकि राज्य के नागरिकों को मिलने वाले अधिकारों से वे तब भी वंचित ही रह जाएंगे।
 
यही नहीं भाजपा ने 70 सालों से विस्थापितों के तौर पर रहने वाले इन रिफ्यूजियों के प्रत्येक परिवार को 35 लाख रुपए बतौर मुआवजा दिलवाने की उनकी मांग का समर्थन भी किया, पर जब केंद्र तथा राज्य में वह सत्ता पर बैठी तो यह मुआवजा कम होकर 5 लाख पर आ गया, जबकि कड़वी सच्चाई है कि यह पांच लाख 1947, 1965 या 1971 में आए रिफ्यूजियों के परिवारों को दिया जाना है, न कि आज के समय में 20 हजार परिवारों से 2 लाख बन चुके परिवारों को।

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