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पीएम मोदी बोले, काशी में मंथन से निकलने वाला अमृत देगा देश को नई दिशा

हमें फॉलो करें पीएम मोदी बोले, काशी में मंथन से निकलने वाला अमृत देगा देश को नई दिशा
, गुरुवार, 7 जुलाई 2022 (15:49 IST)
वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को राष्‍ट्रीय शिक्षा समागम का उद्घाटन करते हुए कहा कि काशी को भी मोक्ष की नगरी इसलिए कहते हैं, क्योंकि हमारे यहां मुक्ति का एकमात्र मार्ग ज्ञान को ही माना गया है। इसलिए शिक्षा और शोध का, विद्या और बोध का मंथन, जब सर्व विद्या के प्रमुख केंद्र काशी में होगा, तो इससे निकलने वाला अमृत अवश्य देश को नई दिशा देगा।
 
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मुख्य आधार शिक्षा को संकुचित सोच के दायरे से बाहर निकालना और उसे 21वीं सदी के विचारों से जोड़ना है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में मेधा की कभी कमी नहीं रही। लेकिन दुर्भाग्य से हमें ऐसी व्यवस्था बनाकर दी गई थी, जिसमें पढ़ाई का मतलब नौकरी ही माना गया।
 
पीएम मोदी ने कहा कि 29 जुलाई को राष्ट्रीय शिक्षा नीति को 2 साल पूरे होने वाले हैं। बड़े मंथन के बाद ये शिक्षा नीति बनाई गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का इतनी विविधताओं से भरे देश में स्वागत हो, ये अपने आप में बहुत बड़ी सिद्धि है।
 
पीएम ने कहा कि आप सबको वर्तमान को संभालना है, आपके पहले जो करके गए हैं उसको आगे बढ़ाना है। लेकिन आज जो काम कर रहे हैं, उनको भविष्य के लिए ही सोचना होगा, व्यवस्थाएं भी भविष्य के लिए ही विकसित करनी होंगी। नई नीति में पूरा फोकस बच्चों की प्रतिभा और चॉइस के हिसाब से उन्हें स्‍किल्ड बनाने पर है। हमारे युवा स्किल्ड हों, कॉन्फिडेंट हों, प्रेक्टिकल और केलकूलेटिव हो, शिक्षा नीति इसके लिए जमीन तैयार कर रही है।
 
उन्होंने कहा कि आज हम दुनिया के तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप इकोसिस्टम हैं। स्पेस टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में जहाँ पहले केवल सरकार ही सब करती थी वहां अब प्राइवेट प्लेयर्स के जरिए युवाओं के लिए नई दुनिया बन रही है।
 
नए भारत के निर्माण के लिए नई व्यवस्थाओं का निर्माण, आधुनिक व्यवस्थाओं का समावेश उतना ही जरूरी है। जो पहले कभी भी नहीं हुआ, जिनकी देश पहले कभी कल्पना भी नहीं करता था, वो आज के भारत में हकीकत बन रहे हैं।
 
आजादी के बाद शिक्षा नीति में थोड़ा बहुत बदलाव हुआ, लेकिन बहुत बड़ा बदलाव रह गया था। अंग्रेजों की बनाई व्यवस्था कभी भी भारत के मूल स्वभाव का हिस्सा नहीं थी और न हो सकती। 
 

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