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सभी तरह की हिंसा से मुक्त हो समाज : प्रणब

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, सोमवार, 24 जुलाई 2017 (19:50 IST)
नई दिल्ली। देश में गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा की घटनाओं के बीच निवर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सहिष्णुता को भारतीय सभ्यता की नींव बताते हुए समाज को शारीरिक तथा मौखिक सभी तरह की हिंसा से मुक्त करने की जरूरत बताई है।
   
मुखर्जी ने पदमुक्त होने से पहले राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा कि जिम्मेदार समाज के निर्माण के लिए सहिष्णुता और अहिंसा की शक्ति को पुनर्जागृत करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, प्रतिदिन हम अपने आसपास बढ़ती हुई हिंसा देखते हैं। इस हिंसा की जड़ में अज्ञानता, भय और अविश्वास है। हमें अपने जनसंवाद को शारीरिक और मौखिक सभी तरह की हिंसा से मुक्त करना होगा।
    
राष्ट्रपति ने कहा कि सभी प्रकार की हिंसा से मुक्त समाज ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों के सभी वर्गों, विशेषकर पिछड़ों और वंचितों की भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है। उन्होंने कहा, हमें एक सहानुभूतिपूर्ण और जिम्मेदार समाज के निर्माण के लिए अहिंसा की शक्ति को पुनर्जागृत करना होगा।
    
संस्कृति, पंथ और भाषा की विविधता को भारत की विशेषता करार देते हुए उन्होंने कहा, हमें सहिष्णुता से शक्ति प्राप्त होती है। यह सदियों से हमारी सामूहिक चेतना का अंग रही है। जनसंवाद के विभिन्न पहलुओं की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, हम बहस मुबाहिशा कर सकते हैं, हम किसी से सहमत हो भी सकते हैं और नहीं भी, लेकिन हम विविध विचारों की आवश्यक मौजूदगी को नहीं नकार सकते, अन्यथा हमारी विचार प्रक्रिया का मूल स्वरूप ही नष्ट हो जाएगा।
 
मुखर्जी ने कहा कि भारत की आत्मा बहुलवाद और सहिष्णुता में बसती है। भारत केवल एक भौगोलिक सत्ता नहीं, बल्कि इसमें विचारों, दर्शन, बौद्धिकता, औद्योगिक प्रतिभा, शिल्प, नवोन्वेषण और अनुभव का इतिहास समाहित है। सदियों से विचारों को आत्मसात करके भारतीय समाज का बहुलवाद निर्मित हुआ है।
         
उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समावेशी समाज की परिकल्पना का उल्लेख करते हुए कहा कि गांधीजी भारत को एक ऐसे समावेशी राष्ट्र के रूप में देखते थे, जहां समाज का हर वर्ग समानता के साथ रहता हो और समान अवसर प्राप्त करता हो। राष्ट्रपिता चाहते थे कि भारतवासी एकजुट होकर निरंतर व्यापक हो रहे विचारों और कार्यों की दिशा में आगे बढ़ें।
 
मुखर्जी ने वित्तीय समावेश को समतामूलक समाज का प्रमुख आधार बताते हुए कहा, हमें गरीब से गरीब व्यक्ति को सशक्त बनाना होगा और यह सुनिश्चित भी करना होगा कि हमारी नीतियों का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति को मिले। उन्होंने कहा कि खुशहाली का लक्ष्य सतत विकास के उस लक्ष्य के साथ मजबूती से बंधा हुआ है, जो मानव कल्याण, सामाजिक समावेश एवं पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा है
 
मुखर्जी ने कहा कि गरीबी मिटाने से खुशहाली में भरपूर तेजी आएगी। दीर्घकालिक पर्यावरण से धरती के संसाधन का नुकसान रुकेगा। सामाजिक समावेश से प्रगति का लाभ सभी को मिलेगा। सुशासन से लोग पारदर्शिता, जवाबदेही और सहभागी राजनीतिक संस्थाओं के माध्यम से अपना जीवन संवार पाएंगे।
        
पर्यावरण की सुरक्षा को मानव अस्तित्व के लिए आवश्यक करार देते हुए उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन से कृषि क्षेत्र पर भीषण असर पड़ा है। वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों को मिट्टी की सेहत सुधारने, जल स्तर की गिरावट को रोकने अैर पर्यावरण संतुलन को सुधारने के लिए करोड़ों किसानों और श्रमिकों के साथ मिलकर कार्य करना होगा।
         
शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, 'मैंने राष्ट्रपति पद ग्रहण करते समय कहा था कि शिक्षा एक ऐसा माध्यम है, जो भारत को अगले स्वर्ण युग में ले जा सकता है। शिक्षा की परिवर्तनकारी शक्ति से समाज को पुनर्व्यवस्थित किया जा सकता है। इसके लिए हमें अपने उच्च संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाना होगा।'
        
भारतीय विश्वविद्यालयों को रट्टू छात्रों का स्थल बनाने के बजाय जिज्ञासु व्यक्तियों का सभास्थल बनाए जाने की वकालत करते हुए मुखर्जी ने कहा, हमें उच्च शिक्षा संस्थानों में रचनात्मक विचारशीलता, नवोन्वेष और वैज्ञानिक प्रवृत्ति को बढ़ावा देना होगा। इसके लिए विचार-विमर्श, वाद-विवाद तथा विश्लेषण के तार्किक इस्तेमाल की जरूरत है।

मुखर्जी ने कहा, जैसे-जैसे व्यक्ति की आयु बढ़ती है, उसकी उपदेश देने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है, परंतु मेरे पास देने के लिए कोई उपदेश नहीं है। उन्होंने कहा कि पिछले 50 वर्षों के सार्वजनिक जीवन के दौरान भारत का संविधान उनका पवित्र ग्रंथ रहा है, संसद उनका मंदिर और जनता की सेवा उनकी अभिलाषा रही। 
        
राष्ट्रपति ने कहा, पांच वर्ष पहले, जब मैंने गणतंत्र के राष्ट्रपति पद की शपथ ली तो मैंने अपने संविधान का न केवल शब्दशः बल्कि मूल भावना के साथ संरक्षण, सुरक्षा और परिरक्षण करने का वचन दिया था। इन पांच वर्षों के प्रत्येक दिन मुझे अपने दायित्व का बोध रहा। 
 
मैंने देश के सुदूर हिस्सों की यात्राओं से सीख हासिल की। मैंने कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के युवा और प्रतिभावान लोगों, वैज्ञानिकों, नवोन्वेषकों, विद्वानों, कानूनविदों, लेखकों, कलाकारों और विभिन्न क्षेत्रों के अग्रणियों के साथ बातचीत से सीखा। ये बातचीत मुझे एकाग्रता और प्रेरणा देती रही।
 
मुखर्जी ने कहा कि अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कड़े प्रयास किए, लेकिन अपने दायित्व को निभाने में वह कितना सफल रहे, इसकी परख इतिहास के कठोर मानदंड से ही हो पाएगी। 
       
उन्होंने कहा, हमारे संस्थापकों ने संविधान को अपनाने के साथ ही ऐसी प्रबल शक्तियों को सक्रिय किया, जिन्होंने हमें लिंग, जाति, समुदाय की असमान बेड़ियों और लंबे समय तक बांधने वाली अन्य शृंखलाओं से मुक्त कर दिया। इससे एक सामाजिक और सांस्कृतिक विकास की प्रेरणा मिली, जिसने भारतीय समाज को आधुनिकता के पथ पर अग्रसर किया।
      
राष्ट्रपति ने कहा कि एक आधुनिक राष्ट्र का निर्माण कुछ आवश्यक मूल तत्वों पर होता है, जैसे- प्रत्येक नागरिक के लिए लोकतंत्र अथवा समान अधिकार, प्रत्येक पंथ के लिए निरपेक्षता अथवा समान स्वतंत्रता, प्रत्येक प्रांत की समानता तथा आर्थिक समता। विकास को हकीकत में बदलने के लिए देश के सबसे गरीब व्यक्ति को यह महसूस होना चाहिए कि वह राष्ट्र गाथा का एक भाग है। 
      
राष्ट्रपति ने 2012 के स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन की कुछ पंक्तियां दोहराईं, जिसमें उन्होंने कहा था, इस महान पद का सम्मान प्रदान करने के लिए देशवासियों तथा उनके प्रतिनिधियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए मेरे पास पर्याप्त शब्द नहीं है, यद्यपि मुझे इस बात का पूरा अहसास है कि लोकतंत्र में सबसे बड़ा सम्मान किसी पद में नहीं बल्कि हमारी मातृभूमि, भारत का नागरिक होने में है। 
 
अपनी मां के सामने हम सभी बच्चे समान हैं और भारत हममें से हर एक से यह अपेक्षा रखता है कि राष्ट्र-निर्माण के इस जटिल कार्य में हम जो भी भूमिका निभा रहे हैं, उसे हम ईमानदारी, समर्पण और संविधान में स्थापित मूल्यों के प्रति दृढ़ निष्ठा के साथ निभाएं।

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