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जनभागीदारी लोकतंत्र की कामयाबी का मंत्र : मोदी

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नई दिल्ली , शनिवार, 6 अगस्त 2016 (18:00 IST)
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनभागीदारी तथा जवाबदेही के साथ जिम्मेदारी तय किए जाने पर जोर देते हुए शनिवार को कहा कि लोकतंत्र की सफलता का यही मूल मंत्र है और विकास एवं सुशासन से ही जनता की समस्याओं का समाधान हो सकता है। 

मोदी ने यहां 'माई जीओवी डॉट इन' वेबसाइट के दो वर्ष पूरे होने के मौके पर आज यहां टाउन हॉल में आयोजित कार्यक्रम में जनता के साथ सीधा संवाद करते हुए कहा कि देश में लोकतंत्र का सरल अर्थ हो गया है कि वोट दे दो और उन्हें देश चलाने का ठेका दे दो। तुम्हारी जिम्मेदारी है कि सब समस्या हल कर दो। पांच साल बाद दूसरा ठेकेदार चुन लो। सिर्फ वोट देकर सरकार चुनना तक लोकतंत्र सीमित कर लिया जाए तो लोकतंत्र की भावना पनप नहीं सकती।
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उन्होंने कहा कि भारत की आवश्यकता जनभागीदारी वाला लोकतंत्र है। यह प्रौद्योगिकी के कारण संभव हुआ है। स्वच्छ भारत अभियान जनभागीदारी का उत्तम उदाहरण है। लोग और संगठन नेता कुछ ना कुछ करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा, हमारे देश में माना गया है कि सुशासन का मतलब है खराब राजनीति। ज्यादातर राजनीति में चुनाव जीतने के बाद इस पर ध्यान होता है कि अगला चुनाव कैसे जीतें, जनाधार कैसे बढ़ाएं और ज्यादा वोट कैसे पाएं। इस प्रकार से प्राथमिकताएं तय करने के जोश में चला कारवां कुछ कदमों तक चलकर ढह जाता है।
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 प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में शासन, निर्णय प्रक्रिया में चेक एंड बैलेंस, हर चरण में स्क्रूटनी और जवाबदेही के साथ जिम्मेदारी के प्रति एक प्रकार की उदासीनता आ गई है। देश में बदलाव लाने के लिए जितना महत्व नीतियों एवं निर्णयों का होता है, उतना ही महत्व क्रियान्वयन या सेवा को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाना है। अच्छी योजना बनाने से वाहवाही मिल जाती है लेकिन सुशासन के बिना उसका फायदा आमजनों को नहीं मिल पाता है। विकास एवं सुशासन का संतुलन भी बहुत जरूरी है। 
 
मोदी ने कहा कि देश का दुर्भाग्य है कि जनमत को प्रभावित करने वाले विचारक (ओपिनियन मेकर्स) ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, जिला परिषद, नगर निगम, राज्यों में होने वाली किसी भी बात के लिए प्रधानमंत्री से जवाब मांगने लगते हैं। राजनीतिक दृष्टि से तो यह ठीक है। प्रधानमंत्री को उससे तकलीफ हो तो भी कोई बात नहीं, लेकिन उसका दुष्परिणाम यह होता है कि पंचायत या किसी भी अन्य निकाय को लगता है कि उसकी कोई जिम्मेदारी ही नहीं रह गई है। इससे सुशासन के अच्छे परिणाम नहीं आते हैं।          
         
उन्होंने कहा कि सुशासन के लिए जिसकी जिम्मेदारी है, उसी से जवाब मांगना चाहिए। यह सुशासन के लिए अनिवार्य है। हर निकाय का उत्तरदायित्व तय होगा तो उसके स्तर पर काम भी ठीक होगा। उन्होंने कहा कि सुशासन के लिए एक और अहम बात यह है कि कई बार समस्या की जड़ में सरकार होती है। सरकार जितनी कम हो जाए, जनता उतनी ही सामर्थ्यवान हो जाएगी। सरकार के हर जगह जाने की जरूरत नहीं है। अंग्रेज़ों के समय से यह आदत बन गई है कि जनता हर बात में सरकार का मुंह ताकती है लेकिन इस आदत को बदलना होगा।      
          
उन्होंने सुशासन के लिए सरकार का जनता पर भरोसा होना अहम तत्व बताते हुए कहा कि प्रक्रियाओं का सरल होना चाहिए। जनता को काम होने का तरीका आसानी से पता होना चाहिए। उन्होंने 'ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस' के लिए राज्यों के बीच एक प्रतिस्पर्द्धा की जिसमें कई राज्यों ने अनेक नई पहल शुरु कीं। बहुत सी प्रक्रियाएं सरल कीं। प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाया। सरकार ने ई-मंडी बनाई जहां किसान को अपने उत्पाद के दाम खुद तय करने का हक़ मिलेगा।              
       
प्रधानमंत्री ने एक प्रभावी जनशिकायत निवारण प्रणाली को लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत बताते हुए कहा कि अगर सरकार जनता की आवाज़ सुनती है, उस पर जिम्मेदारी से कार्रवाई करती है तो यह लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है। सामान्य से सामान्य नागरिक की हर शिकायत की सुनने एवं समाधान की प्रणाली हो और उसके माध्यम से उसे मदद करनी चाहिए। ऐसे सुशासन की दिशा में हम काम कर रहे हैं। उन्‍होंने यह भी बताया कि वे हर माह एक प्रगति का कार्यक्रम करते हैं जिसमें वे एक विषय को लेकर गहराई में जाकर उससे जुड़ी हर समस्या का समाधान ढूंढने का प्रयास करते हैं।
 
गौरक्षा के नाम हो रहा है गोरखधंधा : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में गौरक्षा के नाम पर हो रही असामाजिक गतिविधियों पर गहरा आक्रोश व्यक्त करते हुए आज कहा कि अपने को गौ रक्षक बताने वाले अधिकतर लोग गोरखधंधा करते हैं और ऐसे लोगों का ब्योरा तैयार किया जाना चाहिए।
             
उन्होंने कहा, गौ रक्षा के नाम पर दुकान खोल के बैठे हैं, मुझे उन पर बड़ा गुस्सा आता है। उन्होंने कहा कि जो लोग गौ रक्षा के नाम पर दुकान चला रहे हैं, राज्य सरकारों को उनका पूरा ब्योरा तैयार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इनमें से 70 प्रतिशत से 80 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो रात में असामाजिक गतिविधियों में शामिल रहते हैं और दिन में गौरक्षक का चोला पहन लेते हैं। उन्होंने कहा, काफी लोग जो गौ रक्षक हैं, वे गौ रक्षा सिर्फ अपने काले धंधे छुपाने के लिए करते हैं।
       
उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी गौ सेवा यह होगी कि इन्हें प्लास्टिक से बचाया जा जाए। लोगों को प्लास्टिक फेंकने से रोका जाना चाहिए और गायों को प्लास्टिक खाने से बचा लें तो यह बड़ी सेवा होगी। उन्‍होंने कहा कि गाय वध से कम और प्लास्टिक खाने से ज्यादा मरतीं हैं। उन्होंने कहा कि समाज सेवा लोगों को प्रताड़ित करने के लिए नहीं होती बल्कि इसके लिए काफी तपस्या, करुणा, त्याग, संयम और बलिदान की जरुरत होती है। 
 
नीतियां फैसले चुनाव आधारित नहीं जनहित आधारित हो : प्रधानमंत्री मोदी ने सुशासन के लिए सरकारी फैसलों एवं नीतियों को वोट के आधार पर बनाए जाने की परिपाटी की कड़ी आलोचना करते हुए आज कहा कि जवाबदेही के साथ जिम्मेदारी के आधार पर जनता के हित में योजनाएं बनाकर उनका सरलता से क्रियान्वयन होना चाहिए।
 
मोदी ने कहा कि देश में लोकतंत्र का सरल अर्थ हो गया है कि वोट दे दो और उन्हें देश चलाने का ठेका दे दो। तुम्हारी जिम्मेदारी है कि सब समस्या हल कर दो। पांच साल बाद दूसरा ठेकेदार चुन लो। सिर्फ वोट देकर सरकार चुनना तक लोकतंत्र सीमित कर लिया जाए तो लोकतंत्र की भावना पनप नहीं सकती।
               
उन्‍होंने कहा कि भारत की आवश्यकता जनभागीदारी वाला लोकतंत्र है। यह प्रौद्योगिकी के कारण संभव हुआ है। स्वच्छ भारत अभियान जनभागीदारी का उत्तम उदाहरण है। लोग संगठन नेता कुछ ना कुछ करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा, हमारे देश में माना गया है कि सुशासन का मतलब है खराब राजनीति। ज्यादातर राजनीति में चुनाव जीतने के बाद इस पर ध्यान होता है कि अगला चुनाव कैसे जीतें, जनाधार कैसे बढ़ाएं और ज्यादा वोट कैसे पाएं। इस प्रकार से प्राथमिकताएं तय करने जोश में चला कारवां कुछ कदमों तक चल कर ढह जाता है।
                
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में शासन, निर्णय प्रक्रिया में चेक एंड बैलेंस, हर चरण में स्क्रूटनी और जवाबदेही के साथ जिम्मेदारी के प्रति एक प्रकार की उदासीनता आ गई है। देश में बदलाव लाने के लिए जितना महत्व नीतियों एवं निर्णयों का होता है, उतना ही महत्व क्रियान्वयन या सेवा को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाना है। अच्छी योजना बनाने से वाहवाही मिल जाती है लेकिन सुशासन के बिना उसका फायदा आमजनों को नहीं मिल पाता है। विकास एवं सुशासन का संतुलन भी बहुत जरूरी है।
 
परम्परागत खेती जल्द छोड़े किसान : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कृषि क्षेत्र के तेजी से विकास के लिए परम्परागत खेती को जल्द से जल्द छोड़ने और आधुनिक कृषि को अपनाने की जरूरत बताई है। मोदी ने कहा कि देश में ज्यादातर किसान परम्परागत कृषि से जुड़े हैं और उन्हें आधुनिक कृषि की जानकारी नहीं है। अधिकतर किसानों को जमीन की शक्ति, उसमें डालने वाले उर्वरक की मात्रा और बीजों की अच्छी जानकारी नहीं है। वे दूसरे किसानों की नकल करते हैं जिसके कारण जो उर्वरक या कीटनाशक उन्हें नहीं डालना चाहिए उसे भी डाल देते हैं।
            
उन्होंने कहा कि कुछ किसान सस्ते बीज लेने में फंस जाते हैं और लूटे जाते हैं। सरकारी तंत्र उन्हें लूटने से बचाने का प्रयास कर रहा है। देश में मिट्टी की गुणवत्ता की जानकारी हासिल करने के लिए व्यापक पैमाने पर चलाए जा रहे मृदा स्वास्थ्य कार्ड अभियान का उललेख करते हुए उन्होंने कहा कि इससे किसानों को विभिन्न फसलों में डालने वाले उर्वरकाे की सही जानकारी प्राप्त हो सकेगी।
        
प्रधानमंत्री ने कहा कि नई पीढ़ी के युवा कृषि की ओर आकर्षित हो रहे हैं और इसके लिए आधारभूत सुविधाओं का विकास किया जा रहा है। कृषि में मूल्य संवर्द्धन हो रहा है, ई मार्केट, फूड चेन और कोल्ड स्टोरेज का निर्माण किया जा रहा है। उन्‍होंने कहा कि खेती के लिए प्राकृतिक संसाधनों और पानी का उपयोग अधिक से अधिक फसलों की सिंचाई में करने की जरूरत है। इससे कृषि का विकास होगा  है और यदि बहकर समुद्र में चला जाता है तो बेकार हो जाता है। 
 
उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना पर काम चल रहा है। मोदी ने कहा कि किसानों को कुल जमीन के एक तिहाई हिस्से में खाद्यान्न फसलों, एक तिहाई जमीन के मेडों पर कीमती लकड़ी के लिए वृक्षारोपण करने तथा शेष हिस्सों पर पशुपालन, मत्स्य पालन, मधुमक्खी पालन करना चाहिए ताकि खेती के लिए विपरीत परिस्थिति के होने पर भी उनके पास आय का स्त्रोत रहे। स्मार्ट सिटी प्लस योजना की तरह ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए 'रर्बन' मिशन की शुरुआत की गई है और इसके लिए 300 जगहों की पहचान की गई है जहां आत्मा गांव की लेकिन सुविधा शहरों जैसी होगी।    
       
प्रधानमंत्री ने एक सवाल के जवाब में कहा कि गांव की स्थिति बदलनी चाहिए और जो सुविधाएं शहरों को मिलती है वे सुविधाएं गांवों को भी मिलनी चाहिए। रर्बन मिशन योजना शुरू की गई है। उन्होंने कहा कि इन 300 स्थानों पर आधारभूत सुविधाओं का विकास किया जाएगा तथा डिजिटल के अलावा स्वास्थ्य, शिक्षा तथा अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। उन्होंने कहा, गांव को मरना नहीं चाहिए। वहां अपनापन का भाव है। गांव में जब मेहमान आता है तो वह पूरे गांव का होता है। उन्होंने कहा कि स्मार्ट सिटी प्लस योजना पर तेजी से काम चल रहा है और यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था का केन्द्र बनेगा। 
 
खादी को अपनाने पर जोर देते हुए मोदी ने कहा कि खेती के बाद सबसे अधिक रोजगार टेक्सटाइल क्षेत्र में मिलता है और इससे गांव के गरीब परिवार जुड़े होते हैं। उन्होंने कहा कि हर परिवार सालाना कपड़े पर जितना खर्च करता है उसका पांच प्रतिशत खादी या हथकरघा के कपड़ों की खरीद पर करनी चाहिए। इससे जो लोग हाथों से काम करते हैं उनकी आर्थिक स्थिति बदल जाएगी।   
       
खादी को आजादी की लड़ाई का प्रतीक बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि अब खादी फॉर फैशन हो गया है। इसके विकास के लिए नई नई प्रौद्योगिकी को अपनाया जा रहा है। उन्होंने हथकरघा को लोकप्रिय बनाने पर जोर देते हुए कहा कि इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बदलाव आएगा। (वार्ता)

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