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कौन हैं इसरो प्रमुख के. सिवन : प्रोफाइल

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वह क्षण बहुत ही भावुक था जब 7 सितंबर की रात लैंडर विक्रम अपने लक्ष्य से भटक गया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में सन्नाटा पसरा था। इसके चेयरमैन के. सिवन अपने आंसुओं को नहीं रोक पाए। वहां मौजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न सिर्फ उन्हें निराशा से बाहर निकलने में मदद की बल्कि उनका हौसला बढ़ाते हुए कहा था कि मैं आपके चेहरों की मायूसी को समझ सकता हूं। यान से जब संपर्क टूटा, वह क्षण मैंने भी आपके साथ उतना ही महसूस किया, लेकिन हमारा हौसला और बुलंद हुआ है।

छोटे से गांव से इसरो के मुखिया तक : भारत के चांद पर पहुंचने के सपने को पूरा करने में अपनी टीम के साथ पूरे मनोयोग से जुटे ‍के. सिवन (Kailasavadivoo Sivan) आखिर हैं कौन और क्या है उनकी पृष्ठभूमि? एक साधारण किसान परिवार में जन्म लेने के बाद सिवन ने अपनी मेहनत, लगन और काबिलियत के दम पर इसरो के चेयरमैन पद तक का लंबा सफर तय किया है। जिस प्रकार पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को 'मिसाइल मैन' कहा जाता है, उसी तरह डॉ. के. सिवन (Dr. K Sivan) 'रॉकेटमैन' के नाम से पहचाने जाते हैं।
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तमिलनाडु के तटीय जिले कन्याकुमारी में स्थित नागरकोइल नामक छोटे से गांव में 14 अप्रैल 1957 को के. सिवन का जन्म एक साधारण किसान परिवार हुआ। शुरुआती शिक्षा सरकारी स्कूल में तमिल भाषा में हुई। प्रतिभाशाली सिवन ने बाद में मद्रास इंस्टीट्‍यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में प्रवेश लिया और वहां से 1980 में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की।

सिवन ने 1982 में आईआईएससी, बेंगलुरु से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल की। इसी बीच, 1982 में वे इसरो में आए और पीएसएलवी परियोजना से जुड़ गए। उन्होंने एंड टू एंड मिशन प्लानिंग, मिशन डिजाइन, मिशन इंटीग्रेशन एंड एनालिसिस में भी अपना उल्लेखनीय योगदान दिया। 2006 में उन्होंने आईआईटी बॉम्बे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की।

सिवन को 6डी ट्रैजेक्टरी सिमुलेशन सॉफ्टवेयर के मुख्य विशेषज्ञ के रूप में नई पहचान मिली। इसकी सहायता से रॉकेट के लांच से पहले रास्ता निर्धारित किया जाता है। सिवन 2011 में जीएसएलवी परियोजना से जुड़ गए।

2015 में इसरो से जुड़े : सिवन ने 12 जनवरी 2015 को डॉ. एएस किरण का स्थान लिया और 2018 में इसरो के चीफ बने। इससे पहले वे विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक थे।

सैटेलाइट का शतक : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र इसरो ने 2018 में पीएसएलवी सी-4 के जरिए एकसाथ 31 उपग्रह लांच किए। इनमें भारत के 3 और 28 अन्य 6 देशों के थे। इसके साथ ही इसरो का सैटेलाइट भेजने का शतक भी पूरा हो गया, जिसके पीछे सिवन का ही तेज दिमाग था।

सम्मान : सिवन को 1999 में डॉ. विक्रम साराभाई रिसर्च अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। 2007 में उन्हें इसरो मेरिट अवॉर्ड से नवाजा गया। 2011 में डॉ. बीरेन रॉय स्पेस साइंस अवॉर्ड और अप्रैल 2014 में चेन्नई की सत्यभामा यूनिवर्सिटी से डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि से वे सम्मानित हुए।

28 अप्रैल 2019 को पंजाब यूनिवर्सिटी के कॉन्वोकेशन में उपराष्ट्रपति वैंकया नायडु ने उन्हें 'विज्ञान रत्न' से सम्मानित किया। 2019 में तमिलनाडु सरकार ने उन्हें डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम अवॉर्ड से सम्मानित किया। इसके अलावा उन्हें अन्य सम्मान भी प्राप्त हुए हैं साथ ही उन्होंने कुछ किताबें भी लिखी हैं।

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