वो एक छोटी सी चिंगारी थी, जिसे वहीं दफन कर दिया गया होता तो आज पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए 40 से ज्यादा जवानों के घरों में मातम नहीं पसरा होता...हर हिंदुस्तानी के जेहन में शहीद के परिजनों के दिल चीर देने वाला रुदन बसा हुआ है लेकिन यह जानना भी जरूरी है कि वो कौनसी चिंगारी थी और उसे वहीं क्यों नहीं रौंद दिया गया? जानिए क्या थी वह चिंगारी, जिसने ठीक अगले ही दिन दावानल का रूप ले लिया...
तारीख थी 13 फरवरी 2019। शाम का वक्त होने को था और दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले में कपोरा के नवरबल इलाके में स्थित निजी स्कूल 'फलई-ए-मिल्लत' में नौंवी और दसवीं के बच्चों की एक्स्ट्रा क्लास चल रही थी। शिक्षक जावेद अहमद बच्चों को पढ़ा रहे थे, तभी एकाएक जोरदार धमाका होता है और क्लास में अफरा-तफरी मच जाती है।
स्कूल के क्लास रूम में हुए कम शक्ति के इस विस्फोट में 19 बच्चे घायल होते हैं, जिन्हें जिला सरकारी अस्पताल में भर्ती किया जाता है। जम्मू कश्मीर पुलिस जांच करने का रटारटाया बयान जारी करती है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि विस्फोटक क्लास रूम में कैसे पहुंचा? स्कूल के छात्रों के हाथों में कैसे आई विध्वंस करने वाली सामग्री? देर रात यह भी खबर छनकर आई कि इसके पीछे आतंकी गुट का हाथ नहीं था बल्कि कोई छात्र ही इसे बस्ते में लाया था। यह भी संभव है कि स्कूल की यह घटना सुरक्षाबलों का ध्यान भटकाने के लिए भी हो।
चूंकि स्कूल की क्लास में यह विस्फोट हुआ था, लिहाजा सबसे पहली कोशिश थी कि घायल छात्रों को अस्पताल पहुंचाया जाए। पुलिस की सहानुभूति छात्रों के साथ थी लेकिन उसने क्यों नहीं सख्ती से यह जानने की कोशिश की कि बरबादी का यह सामान क्लास रूम में क्या कर रहा था?
यदि स्थानीय पुलिस नौंवी और दसवीं के छात्रों से सख्ती से पूछताछ करती तो हो सकता था कि पुलवामा आतंकी हमले के लिए की जा रही बड़ी साजिश से पहले ही परदा उठ गया होता... इस स्थिति में पुलवामा के रहने वाले आदिल अहमद डार उर्फ वकास नाम के उस दरिंदे को दबोचा जा सकता था। यह खूंखार आतंकी एक साल पहले ही आंतकी संगठन जैश ए मोहम्मद में शामिल हुआ था।
13 फरवरी को निजी स्कूल में विस्फोट हुआ था जबकि 14 फरवरी को पुलवामा के अवंतीपुरा में सीआरपीएफ के काफिले की बस पर आतंकी आदिल अहमद डार उर्फ वकास ने घात लगाकर विस्फोटक से भरी अपनी कार भिड़ाकर खुद को उड़ा दिया था। इस आतंकी हमले में 40 से ज्यादा सीआरपीएफ के बहादुर जवान शहीद हुए थे।
जम्मू कश्मीर में हुए अब तक के इस सबसे बड़े आतंकी हमले के बाद पूरा देश हिल गया और मोदी सरकार ने यहां तैनात सुरक्षा बलों को फ्रीहैंड दे दिया। काश यह फ्रीहैंड पहले दिया होता तो आज 40 से ज्यादा जवान आपस में खुशियां साझा कर रहे होते।
आतंकी हमले के पहले जम्मू कश्मीर के हालात बद से बदतर होने की खबरें आए दिन आया करती थी। यदि सुरक्षा एजेंसियों को आतंकी गतिविधियों की जानकारी होने के बाद दबिश देने के पहले स्थानीय एसपी और पुलिस थाने को सूचित करना होता था, उसके बाद ही कार्यवाही संभव थी...फ्रीहैंड के बाद अब जरूरी नहीं होगा कि देश के गद्दारों को पकड़ने के पहले किसी से अनुमति ली जाए...
बहरहाल, भारतीय सेना और सुरक्षा बल युद्ध स्तर पर पुलवामा आंतकी हमले में शामिल उन लोगों की तलाश कर रहे हैं, जिन्होंने आतंकियों की मदद की थी। बात वहीं घूम-फिरकर आ जाती है कि यदि जम्मू कश्मीर में नौंवीं और दसवीं के बच्चे अपना ध्यान पढ़ाई में लगाने और कॅरियर बनाने के बजाए बस्ते में विस्फोटक सामग्री लेकर घूम रहे हैं तो यह स्थिति काफी भयावह और डरा देने वाली है...