नई दिल्ली। मोदी सरकार के लिए गले की हड्डी बन चुके राफेल विमान सौदे पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। मनोनीत चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली बेंच राफेल विमान सौदे से जुड़े मामले की सुनवाई करेगी। याचिकाकर्ता ने इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पक्षकार बनाया है।
सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर राफेल डील में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इसे रद्द करने की मांग की है। इससे पहले कांग्रेस ने एक प्रेस नोट जारी कर कहा था कि पार्टी नहीं समझती है कि ये मसला उठाने के लिए सुप्रीम कोर्ट उचित फोरम है और पार्टी का न तो तहसीन पूनावाला से कोई संबंध और न ही उनकी याचिका से।
कांग्रेस ने कहा था कि मीडिया में ऐसी भ्रम की स्थिति रहती है कि तहसीन पूनावाला कांग्रेस का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, ऐसे में हम साफ करना चाहते हैं कि राफेल डील के खिलाफ तहसीन पूनावाला की याचिका और उनसे पार्टी का कोई संबंध नहीं है।
जानिए क्या है राफेल डील मामला
राफेल सौदे के अंतर्गत 36 विमानों की खरीद के लिए भारत और फ्रांस की सरकारों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। राफेल लड़ाकू विमान दोहरे इंजन और अनेक भूमिकाएं निभाने वाला मध्यम लड़ाकू विमान है। इसका निर्माण फ्रांसीसी एयरोस्पेस कंपनी डेसाल्ट एविएशन करती है।
राफेल लड़ाकू विमानों को ओमनिरोल विमानों के रूप में रखा गया है, जो कि युद्ध के समय अहम रोल निभाने में सक्षम हैं। हवाई हमला, जमीनी समर्थन, वायु वर्चस्व, भारी हमला और परमाणु प्रतिरोध ये सारी राफेल विमान की खूबियां हैं।
भारत-फ्रांस के बीच समझौता होने के करीब 18 महीने के भीतर विमानों की आपूर्ति शुरू होने की बात थी, लेकिन इसी बीच 'राफेल डील' को लेकर सत्तारुढ़ भाजपा और कांग्रेस समेत अन्य विपक्षियों के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई। कांग्रेस सरकार पर खरीदी में अपारदर्शिता के आरोप लगा रही है। कांग्रेस का कहना है कि यूपीए 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपए चुका रही थी, वहीं अब मोदी सरकार सिर्फ 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ रुपए चुका रही है।