भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में राजीव गांधी सबसे कम 40 साल की उम्र में प्रधानमंत्री बने। उन्होंने अपने कार्यकाल में दुनिया के दो देशों के सियासी संकट से बाहर लाने के लिए भारतीय सेना को वहां भेजने जैसे बड़े फैसले लिए। एक देश श्रीलंका था, जो लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ऐलम (लिट्टे) के कारण गृहयुद्ध के संकट से गुजर रहा था और दूसरा था मालदीव।
श्रीलंका में शांति के लिए सेना का ऑपरेशन : पड़ोसी देश श्रीलंका बहुसंख्यक सिंहला और अल्पसंख्यक तमिलों की आपसी लड़ाई के कारण गृहयुद्ध से जूझ रहा था। 1983 में लिट्टे के गुरिल्ला सैनिकों ने 13 श्रीलंकाई सैनिक मार दिए थे। इससे वहां तमिलों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठी।
श्रीलंका में गृहयुद्ध शुरू हो गया। लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ऐलम (लिट्टे) और श्रीलंका की सेना में संघर्ष चल रहा था। श्रीलंका में जाफना पर लिट्टे ने कब्जा कर लिया था और श्रीलंका की गुहार के बाद राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए श्रीलंका में भारतीय सेना भेजी। 1987 में भारत-श्रीलंका के बीच एक संधि के अंतर्गत अशांत श्रीलंका में शांति स्थापना के लिए भारतीय शांति रक्षा सैनिकों को श्रीलंका में तैनात की तैनाती की गई थी।
भारतीय सेना के इस ऑपरेशन को 'पवन' नाम दिया गया था। इस ऑपरेशन में हजारों तमिल मारे गए थे। प्रधानमंत्री रहते हुए श्रीलंका में शांति सेना भेजे जाने को लेकर आतंकी संगठन लिट्टे राजीव गांधी का दुश्मन बन गया था। लिट्टे ने 1991 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी रैली के दौरान आत्मघाती हमला कर राजीव गांधी को बम से उड़ा दिया था।
मालदीव में भेजी थी सेना : 1988 में मौमूल अब्दुल गयूम मालदीव के राष्ट्रपति थे। इस दौरान श्रीलंकाई विद्रोहियों की मदद से मालदीव में विद्रोह की कोशिश की गई। राष्ट्रपति गयूम ने पाकिस्तान, श्रीलंका और अमेरिका समेत कई देशों से मदद की गुहार लगाई। किसी भी दूसरे देश से पहले भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मालदीव की सहायता के लिए हाथ बढ़ाया।
भारतीय सेना ने 1988 में मालदीव में 'ऑपरेशन कैक्टस' चलाया। मालदीव में विद्रोहियों के खात्मे के लिए भारतीय सेना ने वहां युद्ध लड़ा था। इस युद्ध का स्थान हिन्द महासागर (मालदीव) था। 1988 के उस दौर में राजीव गांधी ने मालदीव के पहले सियासी संकट में संकटमोचक की भूमिका निभाई थी।