रामनाथ कोविंद का 'महामहिम' बनना भगवा खेमे के लिए कई मायनों में खास रहा है। एक तो भाजपा की पृष्ठभूमि से आने वाला कोई व्यक्ति पहली बार राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचा है, वहीं दूसरी ओर भाजपा ने विरोधी खेमे में सेंध लगाकर अपने लिए संभावनाओं के नए द्वार भी तलाश लिए हैं। राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग हुई अर्थात कई राज्यों से मीरा कुमार को मिलने वाले वोट योजनाबद्ध तरीके से कोविंद की झोली में चले गए। कांग्रेस के लिए तो यह बुरी खबर है ही, विपक्षी एकता के लिए भी यह खतरे की घंटी है।
गुजरात में रामनाथ को 132 वोट मिले और मीरा कुमार को सिर्फ 49 वोट। खास ध्यान देने वाली बात तो यह है कि भाजपा के राज्य में 121 विधायक हैं और कांग्रेस के 57 एमएलए। ऐसे में अटकलें हैं कि कांग्रेस के 8 विधायकों ने अपने ही उम्मीदवार के विरोध में जाकर कोविंद के पक्ष में वोट दिया। कांग्रेस के लिए यह स्थिति इसलिए भी खराब है क्योंकि वर्ष के अंत में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। उससे ठीक पहले विधायकों के 'बागी तेवर' पार्टी की मुसीबत को और बढ़ा सकते हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता (पूर्व भाजपाई) शंकरसिंह वाघेला की नाराजी किसी से भी छिपी नहीं है।
ममता बनर्जी के वर्चस्व वाले राज्य पश्चिम बंगाल से भी भाजपा के लिए खुशखबर है। राष्ट्रपति चुनाव में यहां भाजपा के मात्र 6 वोट हैं, लेकिन कोविंद को 11 वोट मिले। अर्थात पार्टी ममता खेमे में सेंध लगाने में सफल रही। मीरा कुमार को यहां 273 वोट मिले। त्रिपुरा में तो भाजपा का कोई विधायक नहीं होने के बावजूद कोविंद को सात वोट मिल गए। यहां भी माना जा रहा है कि तृणमूल कांग्रेस के बागी विधायकों ने अपना काम दिखा दिया। असम से भी एनडीए उम्मीदवार को चार वोट ज्यादा मिले।
दिल्ली, महाराष्ट्र और गोवा में भी लगभग यही स्थिति रही। दिल्ली में कोविंद को 6 जबकि मीरा कुमार को 55 वोट मिले, जबकि यहां भाजपा के चार ही विधायक हैं। महाराष्ट्र में रामनाथ को 208 और मीरा कुमार को 77 वोट मिले। यहां भाजपा-शिवसेना गठबंधन के 185 विधायक हैं। इस हिसाब से भाजपा विरोधी खेमे में सेंध लगाने में सफल रही। गोवा में जहां भाजपा और उसके सहयोगी दलों के 22 विधायक हैं। वहां भाजपा को 25 वोट मिले। अर्थात कोविंद के खाते में तीन वोट ज्यादा गए।
ध्यान रखने वाली बात यह है कि विपक्ष का उम्मीद बनने के बाद मीरा कुमार ने सांसदों और विधायकों से अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालने की अपील की थी, शायद उनके खेमे के विधायकों ने ही उस बयान को ज्यादा गंभीरता से ले लिया।