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Positive story: पिता दर्जी, मां मनरेगा में मजदूर, बेटा गार्ड की नौकरी करते हुए बन गया ‘आईआईएम का प्रोफेसर’

हमें फॉलो करें Positive story: पिता दर्जी, मां मनरेगा में मजदूर, बेटा गार्ड की नौकरी करते हुए बन गया ‘आईआईएम का प्रोफेसर’
, सोमवार, 12 अप्रैल 2021 (14:02 IST)
अभाव और मुसीबत में कई लोगों को आपने सफल होते देखा होगा, लेकिन यह कहानी आपको जरूर प्रेरित करेगी।

यह कहानी केरल के कासरगोड की है, जहां एक शख्स ने गार्ड की नौकरी करते हुए आईआईटी में दाखिला लिया और बाद में आईआईएम रांची में असिस्टेंट प्रोफेसर बन गया।

28 साल के इस शख्स के जज्बे को आज सब लोग सलाम कर रहे हैं। इनका नाम रंजीत रामचंद्रन है जो कासरगोड के रहने वाले हैं। रामचंद्रन आज मिसाल बने हुए हैं।

रंजीत रामचंद्रन का फेसबुक पेज देखें तो उस पर दो तस्वीरें नजर आएगी। एक तरफ रामचंद्रन खड़े हैं तो उनके बगल में एक झोंपड़ी दिख रही है। यह झोंपड़ी अपने आप में एक कहानी है। झोंपड़ी की हालत बताती है कि रामचंद्रन और उनका परिवार किन परिस्थितियों में जिंदगी बसर करता होगा। रामचंद्रन ने यह तस्वीर तब डाली जब वे आईआईएम में असिस्टेंट प्रोफेसर बनाए गए। देखते-देखते इस पोस्ट को 39 हजार से ज्‍यादा लाइक्स मिले और केरल के वित्त मंत्री टीएम थॉमस ने भी उन्हें बधाई दी।

दरअसल, रामचंद्रन का सफर कासरगोड के पनाथूर में बीएसएनएल टेलीफोन एक्सचेंज में बतौर नाइट गार्ड के तौर पर शुरू हुआ था। इस दौरान वे अपने जिले में ही पायस कालेज से इकोनॉमिक्स की पढ़ाई कर रहे थे। रामचंद्रन की फेसबुक पोस्ट बताती है, वे रात को एक्सचेंज में गार्ड की नौकरी करते और दिन में कालेज की पढ़ाई। ग्रेजुएशन के दौरान ही उन्हें आईआईटी मद्रास में दाखिला मिला और वे पढ़ाई में रम गए। उन्हें केवल मलयालम भाषा आती थी इसलिए आगे चलकर उन्होंने पीएचडी की पढ़ाई छोड़ने का मन बना लिया।

हालांकि मुश्किल परिस्थितियों से जूझते हुए रंजीत रामचंद्रन ने पिछले साल डॉक्टरेट पूरा किया। इसी दौरान वे क्राइस्ट यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु में असिस्टेट प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत थे। पिछले 2 महीने पहले उन्हें यह नौकरी मिली थी। रामचंद्रन अपने फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं कि उनका इरादा अपने समकक्ष लोगों को बताना था कि कुछ करने की चाह रखने वालों की कभी हार नहीं होती और लोगों को अपने सपने संजोने के लिए हमेशा प्रयत्न करना चाहिए।

रामचंद्रन बताते हैं कि गरीबी के चलते उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई लगभग छोड़ दी थी। उनके पिता टेलर का काम करते हैं जबकि मां मनरेगा के तहत दिहाड़ी मजदूरी करती हैं। रामचंद्रन को यह गरीबी हमेशा याद रहती थी। इसलिए जब भी मन टूटता और मैदान छोड़ने का खयाल आता, वे अपनी कोशिश और तेज कर देते। आज उनका यह मंत्र बड़े-बड़े लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन गया है।

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