नरेंद्र मोदी के राज में बहुत कुछ खत्म हो रहा है, बदला जा रहा है और बहत कुछ खतरे में है। इसी क्रम में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठतम नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के द्वारा शुरू की गई मासिक पत्रिका 'राष्ट्रधर्म भी खतरे में है।' केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय ने 'राष्ट्रधर्म' पत्रिका की डायरेक्टेट ऑफ एडवरटाइजिंग एंड विजुअल पब्लिसिटी की मान्यता को रद्द कर दिया है। जिसके बाद यह पत्रिका केंद्र के विज्ञापनों की सूची से बाहर हो गई है।
गौरतलब है कि राष्ट्रधर्म पत्रिका को आरएसएस ने राष्ट्र के प्रति लोगों को जागरूक करने के मकसद से अगस्त 1947 में शुरू किया था। उस वक्त अटलबिहारी वाजपेयी इसके संस्थापक संपादक बने तो जनसंघ के संस्थापल पंडित दीनदयाल उपाध्याय इसके संस्थापक प्रबंधक रहे थे।
अब सूचना प्रसारण मंत्रालय की ओर से एक पत्र जारी किया गया है, जिसमें कुल 804 पत्र-पत्रिकाओं की डीएवीपी मान्यता को रद्द किया गया है, इस लिस्ट में उत्तर प्रदेश से भी 165 पत्रिकाएं शामिल हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पत्र में बताया गया है कि अक्टूबर 2016 के बाद से इन पत्रिकाओं की कॉपी पीआईबी और डीएवीपी के ऑफिस में जमा नहीं कराई गई है। यह पहली बार है कि राष्ट्रधर्म पर इस प्रकार की कोई मुसीबत आई है।
राष्ट्रधर्म के प्रबंधक पवन पुत्र बदल के मुताबिक, 'अभी हमें इसकी जानकारी नहीं मिली है। अगर ऐसा हुआ है तो बिलकुल गलत है। आपातकाल में जब इंदिरा गांधी ने हमारे कार्यालय को ही सील करा दिया था तब भी प्रकाशित होना बंद नहीं हुआ।' उन्होंने कहा कि पत्रिका नियमित रूप से प्रकाशित हो रही है और संबंधित कार्यालय को भेजी भी जा रही है। अगर उन्हें कॉपी नहीं मिल रही थी तो नोटिस भेजना चाहिए था। यह एकतरफा कार्रवाई अनुचित है। सोमवार को इस संबंध में पूरी जानकारी करके जवाब भेजा जाएगा।