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डराने वाली रिपोर्ट, साढ़े 4 करोड़ भारतीयों को छोड़ना होगा अपना घर...

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, शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020 (21:50 IST)
नई दिल्ली। जलवायु परिर्वतन के कारण आने वाली आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा और तूफान आदि के कारण 2050 तक भारत की साढ़े चार करोड़ से ज्यादा आबादी को मजबूरन अपने घर छोड़ने पड़ेंगे।
 
एक नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में 2020 में अपने घरों से विस्थापित होने वालों की संख्या करीब 1.4 करोड़ है, जो 2050 तक तीन गुनी हो जाएगी।
 
‘जलवायु निष्क्रियता की कीमत : विस्थापन और कष्टकारक आव्रजन’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के कारण दक्षिण एशिया के पांच देशों- भारत, बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका में मजबूरन होने वाले विस्थापन और आव्रजन के साथ-साथ 2050 में सिर्फ इस क्षेत्र में छह करोड़ लोगों से ज्यादा की जीविका पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव का आकलन किया गया है।
 
यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ‘एक्शन एड इंटरनेशनल’ और ‘क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया’ के अध्ययन पर आधारित है। आंकड़ों का हवाला देते हुए रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जलवायु संबंधी आपदाओं के कारण 2050 तक अकेले भारत में 4.5 करोड़ से ज्यादा लोगों को अपने घरों से विस्थापित होना पड़ेगा।
 
रिपोर्ट में कहा गया है कि पेरिस समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस से कम पर रोकने की राजनीतिक असफलता के कारण जलवायु आपदाएं पहले ही 2020 में करीब 1.8 करोड़ लोगों को अपना घर छोड़ने पर मजबूर कर रही हैं।
 
शुक्रवार को जारी रिपोर्ट में आकलन किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण अकेले दक्षिण एशिया में बड़ी संख्या में विस्थापन होगा। यह क्षेत्र जलवायु संबंधी आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा, तूफान और चक्रवात से जूझेगा।
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यह अध्ययन ब्रायन जोन्स ने किया है। वह 2018 में ‘ग्राउंड्सवेल रिपोर्ट ऑन इंटरनल क्लाइमेट माइग्रेशन’ (जलवायु परिवर्तन के कारण आंतरिक विस्थापन) पर पहली रिपोर्ट के लेखकों में से एक हैं।
 
एक्शन एड में ग्लोबल क्लाइमेट के हरजीत सिंह ने कहा कि हम नेपाल में ग्लेशियर के पिघलने, भारत-बांग्लदेश में समुद्री जलस्तर बढ़ने, चक्रवात और तापमान में बदलाव को झेल रहे हैं। जलवायु परिवर्तन लोगों को अपने घर छोड़कर सुरक्षित जगहों पर जाने और जीविका के नए समाधान खोजने पर मजबूर कर रहा है।
 
उन्होंने कहा कि धनी देशों को अपना उत्सर्जन कम करने की जिम्मेदारी लेनी होगी और उत्सर्जन कम करने तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में दक्षिण एशिया देशों का साथ देना होगा। मनुष्य के समय पर कदम नहीं उठाने की कीमत बहुत भारी होगी।
 
अध्ययन से पता चलता है कि इन पांचों देशों में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले विस्थापन का प्रतिकूल प्रभाव सबसे ज्यादा महिलाओं पर पड़ रहा है।
 
उसमें कहा गया है कि घर का काम करने, कृषि, बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल करने और मवेशी पालने के लिए वह (महिलाएं) पीछे छूट गई हैं। वहीं विस्थापित होकर शहरी क्षेत्र में गई महिलाओं को भी मजबूरी में कुछ ना कुछ काम करना पड़ रहा है, वह ऐसी जगहों पर काम करती हैं, जहां उनके अधिकारों का उल्लंघन सामान्य है।
 
क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया के निदेशक संजय वशिष्ठ ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के लिहाज से दक्षिण एशिया भौगोलिक रूप से संवेदनशील है, जहां बार-बार बाढ़ और चक्रवातीय तूफान आते हैं और गरीबी तथा पर्यावरणीय अन्याय इस विस्थापन संकट और गहरा कर देते हैं। (भाषा)

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