भारत में गाहे-बगाहे अब आरक्षण को लेकर अन्य समाज के लोगों की चिंताएं जाहिर होने लगी हैं। अब हर कोई आरक्षण का लाभ उठाना चाहता है। इस क्रम में गुजरात के पटेल समाज का नाम जुड़ा है और गुर्जर आंदोलन तो जगजाहिर है ही।
पटेल समाज के इस आंदोलन की अगुआई कोई और नहीं बल्कि 22 साल के हार्दिक पटेल कर रहे हैं। पाटीदारों की मांग है कि उनके समाज को ओबीसी कोटे में जगह देकर आरक्षण का लाभ दिया जाए। भारत में आरक्षण को लेकर पिछले दिनों भी खूब विरोध देखने को मिला है।
खासकर शिक्षा में जातिगत आरक्षण को लेकर लोगों ने अपनी चिंताएं खूब जाहिर की हैं। साथ ही दूसरे समाज के लोगों द्वारा अपने समाज को आरक्षण में शामिल करने की जुगत ने सरकार को दो राहे पर खड़ा कर दिया है।
हाल ही में भारत सरकार ने गुर्जर समाज को कुछ सालों पहले दिए गए आरक्षण को खारिज कर दिया था। लेकिन अब एक बार फिर से सरकार के सामने आरक्षण की मांग उठने लगी है। चिंता की बात यह है कि अब इसकी मांग पटेल समाज ने उठाई है।
अगर यही हाल रहा तो भविष्य में परिस्थितियां और भी खराब हो सकती हैं। बहरहाल गुर्जर भी इस बात को लेकर खामोश नहीं बैठै हैं हाल ही के महीनों में गुर्जरों के आंदोलन ने प्रशासन के नाक पर खूब दम किया था।
आरक्षण को लेकर भारत में असंतोष क्यों फैल रहा है, क्या सालों पुराना कानून अब कमजोर हो गया है। या अब परिस्थितियां बदल गई हैं। सरकार को इस पर अब गहनता से सोच विचार करने की जरूरत है।
क्या कहता है भारत का संविधान : आजादी के बाद समाज के कुछ वर्ग बाकी वर्गों से शैक्षिक, आर्थिक व राजनौतिक रूप से बहुत पिछड़े हुए थे। इस बात के मद्देनजर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था। चूंकि समाज के ज्यादातर लोग जो शूद्र व अछूत थे वे ज्यादा गरीब थे इसके कारण आरक्षण जाति के आधार पर लागू कर दिया गया।
हालांकि जातिगत आरक्षण को लेकर भारत में राज्यों के हिसाब से व्यवस्थाएं थोड़ा अलग हैं। ऐसा देखा गया है कि किसी समुदाय को किसी राज्य में आरक्षण है तो किसी अन्य राज्य या केंद्र में नहीं। मंडल कमीशन केस में सुप्रीम कोर्ट ने ये साफ कर दिया था कि अलग-अलग राज्यों में अलग अलग स्थिति हो सकती हैं।
मान लें कि किसी पहाड़ी इलाके में मूलभूत सुविधाओं की कमी है तो ये हो सकता है कि वहां पहाड़ियों के लिए 70 फीसदी तक आरक्षण का प्रावधान कर दिया जाए। लेकिन इसे वाजिब ठहराना होगा। इसके पीछे तार्किक आंकड़ें होने चाहिए। राजस्थान के मामले में हाई कोर्ट ने गुर्जरों के लिए आरक्षण की मांग के मामले में तार्किक आंकड़ें लाने के लिए कहा था, जिसके लिए एक आयोग भी बना था।
लेकिन अब सवाल राजस्थान से उठकर गुजरात तक आ गया है। अब सवाल गंभीर है और सरकार को इस संबंध में सोचना चाहिए, वरना यह समस्या और राज्यों और दूसरों समाजों तक भी फैल सकती है।