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बढ़ती मुस्लिम आबादी भारत का इस्लामीकरण करने का षड्यंत्र?

हमें फॉलो करें बढ़ती मुस्लिम आबादी भारत का इस्लामीकरण करने का षड्यंत्र?
, शनिवार, 29 अगस्त 2015 (22:49 IST)
नई दिल्ली। जनगणना के धार्मिक आंकड़ों में मुस्लिम आबादी में बढ़ोतरी पर चिंता जताते हुए आरएसएस के मुखपत्र ‘आर्गेनाइजर’ ने सवाल उठाया कि क्या यह रुख ‘भारत के इस्लामीकरण का बड़ा षड्यंत्र है।’ साथ ही मुखपत्र ने अपने संपादकीय में जनगणना के धार्मिक आंकड़े में सिखों और बौद्धों की आबादी में कमी आने को ‘चिंताजनक’ करार दिया और कहा कि जब भी देश में ही शुरू हुए धर्म में कमी आती है तो अलगाववादी रूझान बढ़ता है। पत्र ने इसे ठीक करने के लिए ठोस नीति बनाने की अपील की।
इसने कहा कि भारत में हिंदुओं और मुस्लिमों की वृद्धि दर में उल्टा समानुपात है और पिछले तीन दशकों में असंतुलन बढ़ा है और समुदाय ने लगातार तीसरी बार ऐसी वृद्धि हासिल की है। इसने कहा कि देश में 1981 से 1991 और 1991 से 2001 के बीच मुस्लिमों की आबादी करीब 0.8 फीसदी की दर से बढ़ी है।
 
इसने सवाल किया, ‘क्या यह वृद्धि मुस्लिम परिवारों की बढ़ते आकार के बारे में है? क्या यह भारत के इस्लामीकरण का बड़ा षड्यंत्र है? क्या यह समुदाय के कम आर्थिक विकास से जुड़ा मामला है, जैसा कि कुछ रिपोर्ट में कहा गया है?’
 
‘आबादी की नीति को प्रासंगिक बनाना’ शीर्षक से छपे संपादकीय में लिखा गया है, ‘भारत में 2050 तक मुस्लिमों की आबादी 31.1 करोड़ होगी जो पूरी दुनिया की आबादी का 11 फीसदी है। इससे भारत विश्व में सर्वाधिक मुस्लिम आबादी वाला देश बन जाएगा।’
 
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इसने कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की भी उनकी टिप्पणी के लिए आलोचना की है कि नवीनतम धार्मिक आंकड़े से ‘सांप्रदायिक हिंसा’ बढ़ेगी। पत्र में कहा गया है कि ‘धर्मनिरपेक्षता’ के नाम पर ‘वोट बैंक की नीति’ अपनाने वाली एक पार्टी के नेता सांप्रदायिक आधार पर आंकड़ों को खारिज कर रहे हैं।
 
आर्गनाइजर में लिखा गया है, ‘राजनीति में अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण लेकिन भारतीय परंपराओं से जुड़े हुए सिख और बौद्ध जैसे धर्म को मानने वालों की संख्या में वास्तव में कमी आई है जो चिंताजनक है। जब भी स्वदेश से शुरू हुए धर्म को मानने वालों की संख्या में कमी आई है तब अलगाववादी रूझान बढ़ा है जो ऐतिहासिक तथ्य है।’
 
इसने कहा, ‘मणिशंकर अय्यर जैसे ‘धर्मनिरपेक्ष’ इस हकीकत का सामना नहीं करना चाहते। सांप्रदायिक तनाव की बात करने से इस सवाल का भी जवाब मिल जाता है कि संप्रग सरकार ने पहले आंकड़े जारी क्यों नहीं किए। जब तक हम स्वीकार नहीं करते कि इस जनगणना से जो मुद्दे उभरे हैं वे राष्ट्रीय चिंता की बात हैं और उनके बारे में ठोस नीति नहीं बनाते तब तक जनगणना का पूरा काम ही महज औपचारिकता है।’ संपादकीय में लिखा गया है कि मुस्लिमों की ज्यादा वृद्धि दर के दो कारण हैं एक अवैध आव्रजन और दूसरा धर्म परिवर्तन।
 
इसने कहा, ‘पश्चिम बंग (पश्चिम बंगाल) और असम में मुस्लिम आबादी में बढ़ोतरी दिखाता है कि अवैध आव्रजन एक मुद्दा है जबकि दूसरे मामलों में यह धर्म परिवर्तन से जुड़ा हो सकता है।’ आंकड़े से सांप्रदायिक तनाव बढ़ने की अय्यर की टिप्पणी को लेकर उन पर प्रहार करते हुए इसमें लिखा गया है, ‘यह आश्चर्यजनक है कि ‘धर्मनिरपेक्षता’ के नाम पर ‘वोट बैंक की राजनीति’ करने वाली पार्टी के एक प्रतिनिधि संख्या को अब सांप्रदायिक आधार पर खारिज कर रहे हैं और उसकी नीतिगत प्रासंगिकता से इंकार कर रहे हैं।’ 


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