नैतिकता का रास्ता संस्कृत से होकर ही जाता है-दिनेश कामत
संस्कृत पूर्णत: वैज्ञानिक भाषा है। इसकी वर्णमाला सिर्फ भाषा का उच्चारण मात्र नहीं है बल्कि इसका अपना उच्चारण शास्त्र है। जो व्यक्ति संस्कृत का उच्चारण कर सकता है, वह किसी भी भाषा का सही और स्पष्ट उच्चारण कर सकता है।
संस्कृत भारती के अखिल भारतीय संगठन मंत्री दिनेश कामत ने वेबदुनिया से खास बातचीत में कहा कि भारत की ज्ञान परंपरा और विचारधारा संस्कृत में ही निहित है। विविधता में एकता का विचार भारत में ही है और इसका प्रकटीकरण संस्कृत में है। वर्तमान समाज में व्याप्त विरूपता का सबसे बड़ा कारण भारतीय संस्कृति को छोड़ना है। विभिन्न राज्यों के बीच सांस्कृतिक एकता संस्कृत के कारण है।
सदियों पुरानी ज्ञान परंपरा : कामत ने कहा कि भारत की ज्ञान परंपरा सदियों पुरानी है। एक समय वह भी था जब शिक्षा के शीर्ष 10 विश्वविद्यालय भारत में ही हुआ करते थे। नालंदा, तक्षशिला कुंडिनपुर, श्रीवल्लभी आदि शिक्षा के बड़े केन्द्र हुआ करते थे। श्रीवल्लभी में महिला शिक्षा का केन्द्र था, जबकि कुंडिनपुर शारीरिक शिक्षा का। दूर देशों के लोग भी भारत में संस्कृत सीखने के लिए आते थे।
अन्य भाषाओं पर संस्कृत का प्रभाव : जर्मन, अंग्रेजी, स्पेनिश आदि भाषाओं पर संस्कृत का प्रभाव है। जर्मन और स्लाविक भाषा में तो द्विवचन पाया जाता है, जो कि संस्कृत में ही होता है। जर्मन एयरलाइंस लुफ्तहंसा संस्कृत से ही प्रेरित है। इंडोनेशिया की भाषा का तो नाम ही बहासा है।
संस्कृत में ज्ञान का भंडार : कामत कहते हैं कि संस्कृत में ज्ञान का भंडार है। 50 लाख पांडुलिपियां संस्कृत में मौजूद हैं, जबकि 5 लाख पांडुलिपियां विदेशों में हैं। ज्ञान की सभी शाखाएं संस्कृत ग्रंथों में उपलब्ध हैं। उत्कृष्ट ज्ञान के चलते ही हजारों साल पहले पंचांग और ग्रहण के बारे में भारतीयों ने जानकारी जुटा ली थी।
उन्होंने कहा कि षड्यंत्र के तहत संस्कृत को क्लिष्ट भाषा के रूप में प्रचारित किया गया। इसी के चलते पहले व्याकरण सिखाया जाने लगा, जबकि संस्कृत को संस्कृत में ही सिखाया जाना चाहिए। कोई भी भाषा जब बोली जाएगी तब ही लोग उसे समझ पाएंगे। कामत कहते हैं कि कोंकणी भाषा को बोलने वालों की संख्या 50 लाख के लगभग है, जबकि उसकी अपनी कोई लिपि नहीं है।
संस्कृत भारती के प्रयास : कामत कहते हैं कि संस्कृत भारती संस्कृत सिखाने के लिए 1 लाख 40 हजार शिविरों का आयोजन कर चुकी हैं। इन शिविरों में करीब 94 लाख लोग भागीदारी कर चुके हैं। इनमें अशिक्षित लोग भी शामिल थे। इसके अतिरिक्त पत्राचार द्वारा भी 11 भाषाओं में संस्कृत सिखाई जा रही है। इनमें अंग्रेजी और हिन्दी के अलावा मराठी, गुजराती, बंगाली, असमी आदि माध्यम से संस्कृत सीखी जा सकती है। उन्होंने कहा कि मैंने भी संस्कृत सुनते सुनते ही सीखी।
उन्होंने बताया कि संस्कृत भारतीय संभाषण संदेश नामक एक पत्रिका का भी प्रकाशत करती है। नरेन्द्र कोहली, जेम्स हेडली चेज के उपन्यास संस्कृत में अनूदित हो चुके हैं। कथा, प्रबंध, भगतसिंह की कथा, अंबेडकर की कथा आदि सामग्री भी संस्कृत में उपलब्ध है। इन सब प्रयासों से व्यक्ति में ग्रंथ पढ़ने की मानसिकता बनती है जो कालांतर में ग्रंथ पढ़ने तक जाती है। हमारा लक्ष्य है कि संस्कृत सभी लोग सीखें। यह जाति, वर्ग और भौगोलिक सीमाओं में सिमटकर न रहे।
अंबेडकर ने कहा था : दिनेश कामत ने एक उदाहरण देते हुए कहा कि सितंबर 1949 में संविधान सभा में डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि संस्कृत ही भारत की आधिकारिक भाषा होनी चाहिए, लेकिन बाद में हिन्दी को अपनाया गया। हिन्दी के लिए डॉ. अंबेडकर ने संस्कृत निष्ठ हिन्दी की वकालत की थी। इसके लिए उस समय पारिभाषिक शब्दावली भी तैयार करवाई गई थी।
उन्होंने कहा कि कक्षा 6 से 12वीं तक संस्कृत अनिवार्य होना चाहिए। सभी स्कूलों में तृतीय भाषा के रूप में संस्कृत पढ़ाई जानी चाहिए। संस्कृत पढ़ने से बच्चों में न सिर्फ भावनात्मक विकास होता है बल्कि उनकी स्मरण शक्ति भी बढ़ती है।
विदेशों में संस्कृत : कामत ने कहा कि अमेरिका, जर्मनी, कनाडा समेत विश्व के 40 देशों में संस्कृत पढ़ाई जा रही है। भारत के 120 विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ाई जार ही है, जबकि देश में 16 संस्कृत विश्वविद्यालय संचालित हो रहे हैं। 5000 के लगभग गुरुकुल संचालित हो रहे हैं।
संस्कृत से रोजगार : दिनेश कामत कहते हैं कि रोजगार तो गौण है। दरअसल, शिक्षा मनुष्य के मनुष्य बनाने के लिए होनी चाहिए। सा विद्या या विमुक्तये अर्थात शिक्षा का लक्ष्य शरीरिक, बौद्धिक और आध्यामिक विकास होना चाहिए, लेकिन अंग्रेजों ने इसे बदलकर सा विद्या या नियुक्तये कर दिया। लेकिन, यह बात भी सही है कि संस्कृत जानने वाले बेरोजगार नहीं है। अंग्रेजी और संस्कृत जानने वालों की तो विदेशों में बहुत जरूरत है। उन्हें आसानी से नियुक्ति मिल जाती है।
सामाजिक समरसता : संस्कृत भारती के संगठन मंत्री ने कहा कि सामाजिक समरसता, छुआछूत निवारण और राष्ट्रीय भावना जागृत करने के लिए संस्कृत आवश्यक है। आज विद्यालयों में नैतिक शिक्षा नहीं दी जाती, घरों में भी संस्कार नहीं मिल रहे हैं। मोबाइल और टीवी की वजह से भी अनैतिकता बढ़ी है। उन्होंने कहा कि शिक्षा में नैतिक शिक्षा और मूल्य आधारिक शिक्षा का समावेश अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए। नैतिकता आज की आवश्यकता है और इसके लिए संस्कृत के अलावा कोई और मार्ग नहीं है।