नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद कमजोर हुए अनुसूचित जाति/ जनजाति अत्याचार निवारण कानून को फिर से मूल स्वरूप में लाने संबंधी संशोधन विधेयक पर गुरुवार को संसद की मुहर लग गई।
राज्यसभा में अनुसूचित जातियां/अनुसूचित जनजातियां (अत्याचार निवारण) संशोधन विधेयक 2018 पर करीब पौने दो घंटे तक चली चर्चा के बाद इसे ध्वनि मत से पारित कर दिया गया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने विधेयक पर हुई चर्चा का उत्तर देते हुए कहा कि मोदी सरकार गरीबों और दलित वर्गों के हितों के प्रति समर्पित है। इस सरकार ने इन वर्गों के हितों का संरक्षण किया है। उन्होंने कहा कि विधेयक में अनुसूचित जाति एवं जनजातियों पर अत्याचार के मामलों में जल्दी सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन का प्रावधान किया गया है।
उन्होंने कहा कि 14 राज्यों में 195 विशेष अदालतों का गठन किया गया है तथा कुछ राज्यों में जिला एवं सत्र न्यायालय को विशेष अदालत घोषित किया गया है। प्राथमिकी दर्ज किए जाने के दो माह के अंदर मामले की जांच पूरी करने तथा दो माह के अंदर विशेष अदालत में सुनवाई पूरी करने का विधेयक में प्रावधान किया गया है।
कांग्रेस ने कहा- सरकार की मंशा सही नहीं : कांग्रेस सांसद कुमारी सैलजा ने राज्यसभा में आरोप लगाया कि दलित मुद्दे पर केन्द्र सरकार की मंशा सही नहीं है क्योंकि उसने अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 को कमजोर किए जाने के स्थान पर अध्यादेश नहीं लाई।
बिल पर चर्चा के दौरान सैलजा ने कहा कि हाल के वर्षों में दलितों के विरुद्ध अपराध में वृद्धि हुई है और भाजपा शासित राज्यों में इस तरह की अधिक घटनाएं हो रही हैं। उन्होंने सरकार पर दलित हितैषी होने पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस विधेयक को सही मंशा से लाया गया है। इसको संविधान की नौंवी सूची में शामिल किया जाना चाहिए था ताकि कोई इसको चुनौती नहीं दे सकता।
चर्चा में अन्नाद्रमुक की विजिला सत्यनाथ, तृणमूल कांग्रेस के अबीर रंजन बिस्वास और बीजू जनता दल की सरोजनी हेमब्रम, जदयू के रामचंद्र प्रसाद सिंह, माकपा के सोम प्रसाद, राजद के मनोज कुमार झा, बहुजन समाज पार्टी के राजाराम, शिवसेना के संजय राउत और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के डी राजा ने भी भाग लिया।