देहरादून। रियो ओलंपिक में दो पदक जीतने के बाद भी भारतीयों के मन में कई सवाल मौजूं रह गए। खेलों के महाकुंभ में खिलाड़ियों का प्रदर्शन देख सभी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि अब खिलाड़ियों को स्कूल स्तर से ही तैयार करना होगा। मगर एक तल्ख सच्चाई सभी लोगों को एक बार फिर सोचने पर विवश कर देगी।
सूत्रों के अनुसार सच्चाई यह है कि जिले में खेल गतिविधियों के लिए स्कूल स्तर पर एक बच्चे को प्रति माह दो रुपए देने पड़ते हैं। सालाना यह हिसाब 24 रुपए बैठता है। अब सवाल यह है कि 24 रुपए में कोई बच्चा कैसे ओलंपिक के लिए तैयार हो सकता है? हैरत की बात यह है कि शिक्षा विभाग के पास खेल गतिविधियों के लिए अलग से बजट की व्यवस्था नहीं है।
सूत्रों के अनुसार ऐसे में ओलंपिक में सोना जीतना महज सपना बनकर ही रह जाएगा। रियो ओलंपिक में एक रजत और एक कांस्य पदक हासिल कर भारत की खेल व्यवस्था पर बड़ा सवाल लग रहा है।
खेलों के लिए सबसे पहली सीढ़ी होती है स्कूल, मगर स्कूलों में खेल प्रशिक्षण के लिए शिक्षा विभाग के पास अलग से कोई बजट ही नहीं है। ब्लॉक, जिला और राज्य स्तरीय खेल कार्यक्रम के लिए स्कूली छात्र-छात्राओं से ही प्रति माह दो रुपए वसूले जाते हैं। यह खेल शुल्क सिर्फ नौंवीं से 12वीं के छात्रों से लिया जाता है।
इसी आयोजन से पूरे वर्ष भर खेल गतिविधि संचालित होती हैं। जबकि किसी भी खेल के छोटे से छोटे आयोजन में लगभग 10 हजार रुपए खर्च आता है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि वर्ष भर खेल गतिविधियों का संचालन महज खानापूर्ति ही साबित होती है।
सूत्रों के अनुसार हर महीने दो रुपए के हिसाब से सालाना 24 रुपए छात्र को देने होते हैं। इस 24 रुपए में खेलों में जाने का किराया, खाना, पुरस्कार और आयोजन सामग्री शामिल होती है। टिहरी जिले में 276 स्कूलों में नौंवीं से 12वीं तक 60 हजार छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। जिनमें से 13800 एससी और एसटी छात्र शामिल हैं, इनसे कोई शुल्क नहीं लिया जाता।
मुख्य शिक्षा अधिकारी टिहरी ने बताया कि दो रुपए में अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस तरह आयोजन कराए जाते हैं। कई बार तो शिक्षकों को अपने खर्च से आयोजन कराने पड़ते हैं।(वार्ता)