क्या कश्मीर में पत्थरबाजों के ही मानवाधिकार होते हैं, सैनिकों के नहीं? इसी सवाल के साथ सैनिकों के बच्चों ने मानवाधिकार आयोग से गुहार लगाई है।
गौरतलब है कि सेना की टुकड़ी पर पत्थर फेंकने वालों पर सेना की जवाबी कार्रवाई में दो नागरिकों की मौत हो गई थी। इसके बाद राज्य पुलिस ने सेना के एक अधिकारी पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया था। बाद में सेना ने भी जवाबी एफआईआर दर्ज कराई थी।
सैनिकों के बच्चों ने अपनी शिकायत के बाद एक टीवी चैनल से बातचीत में बताया कि हमने आयोग से कहा है कि क्या कश्मीर में पत्थरबाजों के ही मानवाधिकार होते हैं, सैनिकों के कोई मानवाधिकार नहीं होते। दरअसल, पत्थरबाजों से मामले वापस लेने और सैनिकों पर मामले दर्ज करने की घटनाओं से चिंतित सैनिकों के बच्चों ने मानवाधिकार आयोग से गुहार लगाई है।
इन बच्चों ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एचएल दत्तू को लिखे पत्र में भारतीय सेना के जवानों के मानव अधिकारों के संरक्षण की मांग की है और पूछा है कि राज्य के पत्थरबाजों पर रहम और सैनिकों पर सितम क्यों हो रहा है? बच्चों का तर्क है कि पत्थरबाज रोज सैनिकों के मानव अधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं। पत्र लिखने वालों में प्रीति, काजल मिश्र और प्रभाव हैं। इनमें से दो बच्चे एक लेफ्टिनेंट कर्नल के हैं और एक रिटायर्ड नायब सूबेदार की बेटी है।
बच्चों ने अपने आवेदन में लिखा है कि जम्मू-कश्मीर का स्थानीय प्रशासन आंखें बंद कर स्थानीय लोगों का पक्ष ले रहा है। इसकी वजह से पत्थरबाज न केवल सैनिकों पर पत्थर बरसाते हैं बल्कि उनकी जान को इनसे हमेशा खतरा बना रहता है। पत्थरबाज अक्सर जान से मारने की धमकी भी देते हैं। बच्चों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में एक गुप्त युद्ध लड़ा जा रहा है। घाटी के लोग सेना के जवानों को ही अपना दुश्मन मानने लगे हैं।