तबला वादक जाकिर हुसैन के निधन से पूरे देश में शोक है। हृदय संबंधी तकलीफ के बाद उन्हें अमेरिकी शहर सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था। जहां उनका निधन हो गया। बता दें कि वाह ताज! एक टीवी ऐड में ये दो शब्द कहकर घर-घर प्रसिद्ध हुए ज़ाकिर हुसैन की जुल्फों पर लोग फिदा थे। एक बार उनसे उनके बालों को लेकर सवाल किया गया था। जब उनसे पूछा गया था कि क्या आप जानबूझकर अपनी जुल्फों को खुला रखते हैं, लोगों को परेशान करने के लिए। इस पर हंसते हुए जाकिर हुसैन ने कहा कि लोग एक-एक दो घंटे अपनी जुल्फों को संवारने के लिए निकाल देते हैं। हम दो चार घंटे जुल्फे बिखेर लेते हैं। मैं कभी भी अपने बालों को संवारता नहीं था। नहाने के बाद बालों को ऐसे ही छोड़ देता हूं। वे विश्वविख्यात तबला वादक और पद्म विभूषण थे। सोमवार सुबह उनके परिवार ने उनके निधन की पुष्टि की। परिवार के मुताबिक हुसैन इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस से पीड़ित थे। परिवार ने बताया कि वे पिछले दो हफ्ते से सैन फ्रांसिस्को के अस्पताल में भर्ती थे। हालत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें आईसीयू में एडमिट किया गया था। वहीं उन्होंने आखिरी सांस ली।
डेढ़ की उम्र में पिता ने कान में सुनाई ताल : उस्ताद जाकिर हुसैन को संगीत विरासत में मिली। उनके पिता पहले से ही देश के मशहूर तबलावादकों में से एक थे। वे देश-विदेश में बड़े-बड़े कॉन्सर्ट किया करते थे। जब बेटा हुआ तो डेढ़ दिन के जाकिर के कानों में पिता ने ताल गा दी। बस फिर क्या था, संगीत का परिवार मिला, पिता का आशीर्वाद मिला और वहीं से जाकिर के उस्ताद बनने का आधार तय हो गया। उस समय डेढ़ दिन के जाकिर को दिया आशीर्वाद उनके बेटे को तबले की दुनिया का सबसे बड़ा उस्ताद बना देगा इसका अंदाजा तो खुद उस्ताद अल्लाह राखा को भी नहीं होगा।
घर के बर्तन से बनाते थे धुनें : जाकिर एक्स्ट्राऑर्डिनरी लीग के माने जाते हैं। तबला बजाने वाले तो बहुत होंगे लेकिन जाकिर जैसा कोई नहीं। उनकी उंगलियों में जादू है। बचपन से ही वे अपनी कलाकारी किया करते थे। वे तबले से कभी चलती ट्रेन की धुन निकालते थे तो कभी भी भागते हुए घोड़ों की धुन निकाल कर दिखाते थे। जाकिर हुसैन की खास बात ये थी कि वे संगीत की गहराइयों को अपनी परफॉर्मेंस के जरिए दर्शकों से रूबरू कराकर बनाकर उसमें भी मनोरंजन पैदा कर देते थे। लेकिन इसकी शुरुआत तो उन्होंने घर के बर्तनों से की।
पिता ने सिखाया संगीत : उस्ताद जाकिर हुसैन ने बहुत कम उम्र से ही संगीत सीखना शुरू कर दिया था। खासकर उनका रुझान भी शुरू से तबला सीखने की ओर ही था। क्योंकि ताल और बोलों के बीच ही उनकी तरबीयत हुई और इसी माहौल के बीच वे बड़े हुए। उन्होंने अपने पिता को तबले की धुन पर दुनिया को मोहित करते देखा। साथ ही पिता ही थे जिन्होंने उस्ताद को सबसे पहले तबले पर हाथ बैठाना सिखाया और तबले के साथ संतुलन बनाना सिखाया। इसके बाद तो उस्ताद जाकिर हुसैन ने उस्ताद खलीफा वाजिद हुसैन, कंठा महाराज, शांता प्रसाद और उस्ताद हबीबुद्दीन खान से भी संगीत और तबले के गुण सीखे। जाकिर हुसैन पर लिखी किताब जाकिर एंड इज तबला धा धिन धा में इस बारे में मेंशन किया गया है। किताब के मुताबिक जाकिर हुसैन किसी भी सतही जगह पर तबला बजाने लगते थे। वे इसके लिए सोचते नहीं थे कि सामने वाली चीज क्या है। घर में किचन के बर्तनों को भी उल्टा कर के वो उस पर धुने बनाते थे। इसमें कई बार गलती से भरा बर्तन होता तो उसका सामान अनजाने में गिर भी जाता था।
कौन थे जाकिर हुसैन : जाकिर का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। उस्ताद जाकिर हुसैन को 1988 में पद्मश्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से नवाजा गया था। उनके पिता का नाम उस्ताद अल्लाहरक्खा कुरैशी और मां का नाम बावी बेगम था। जाकिर के पिता अल्लाह रक्खा भी तबला वादक थे। जाकिर हुसैन की प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के माहिम स्थित सेंट माइकल स्कूल से हुई थी।
Edited By: Navin Rangiyal