पिछले कुछ दिनों से सभी ओर सुपरमून चर्चा का विषय बना हुआ है। 31 जनवरी 2018 की शाम आसमान पर चांद औसत से कुछ अधिक बड़ा और चमकदार नजर आएगा, खगोलीय घटना की वजह से पृथ्वी के करीब आए चांद को ही सुपरमून का नाम दिया गया है। आसमान में बेहद खूबसूरत एवं लुभावने नजर आने वाले इस सुपरमून से कुछ किवदंतियां भी जुड़ी हुई हैं। जिनके अनुसार सुपरमून अपने साथ भीषण तबाही लेकर आता है। सुपरमून के इस भयानक सच की पड़ताल करने से पहले आइए इसके बारे में थोड़ा जान लेते हैं।
क्या है सुपरमून? : औसत से काफी बड़े आकार में नजर आने वाले चांद के लिए सुपरमून शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले साल 1979 में खगोलशास्त्री रिचर्ड नॉल ने किया था। अगले कुछ सालों में यह शब्द प्रचलन में आ गया।
रिचर्ड ने सुपरमून को परिभाषित करते हुए कहा था कि सुपरमून असल में पूर्णिमा की वह अवस्था है जिसमें चांद अपनी कक्षा में चक्कर लगाता हुआ धरती के सबसे करीब आ जाता है।
रिचर्ड के अनुसार सुपरमून कहलाने के लिए चांद को पृथ्वी से करीब 2,26,000 मील की दूरी पर स्थित होना जरूरी है। इससे अधिक दूरी पर इसे सुपरमून की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। सुपरमून की अवस्था में चांद औसतन 14 प्रतिशत अधिक बड़ा और 30 प्रतिशत अधिक चमकदार नजर आता है।
सुपरमून और तबाही का क्या संबंध है? : यह तो हम सभी जानते हैं कि आसमान में पूरा चांद नजर आने पर या कहा जाए कि पूर्णिमा के समय लहरें अधिक तीव्र हो जाती हैं। कई बुद्धिजीवियों व शोधकर्ताओं का यह मानना है कि सुपरमून के दौरान पृथ्वी के करीब आया चांद लहरों के अलावा पृथ्वी की सिस्मिक प्लेट की हलचल को भी प्रभावित करता है। ऐसा चांद के गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से होता है।
सिस्मिक प्लेट में हलचल की वजह से धरती अथवा समुद्र के नीचे भूकंप की संभावना अधिक हो जाती है, एवं सुनामी का खतरा भी बढ़ जाता है। फिलहाल इस विचार को मुख्यधारा के वैज्ञानिकों का समर्थन प्राप्त नहीं है।
क्या इतिहास में इसके प्रमाण मिलते हैं? : यदि हम बीते कुछ सालों में आई भयानक प्राकृतिक आपदाओं व सुपरमून का अध्ययन करें तो हमारे सामने कुछ बेहद चौंकाने वाले आंकड़े आते हैं। यह जानकर काफी हैरानी होती है कि दुनिया की चार सबसे भयावह भूकम्पीय घटनाएं सुपरमून के आसपास घटित हुई हैं। आइए इन आंकड़ों पर एक नजर डालते हैं -
साल 2004 : इंडोनेशिया में 9.2 की तीव्रता वाला भयानक भूकंप आया, जिससे हिन्द महासागर में सुनामी उठी। इसका प्रभाव दक्षिण भारतीय राज्यों पर भी पड़ा। इस भयानक भूकंप व सुनामी में करीब ढाई लाख जानें चली गई।
भूकंप की तारीख - 26 दिसंबर 2004
सुपरमून - 10 जनवरी 2005
साल 2008 : चीन के सिचुआन प्रांत में 8.0 की तीव्रता का जोरदार भूकंप दर्ज किया गया। इस भूकंप में करीब 88,000 लोगों की मौत हुई थी।
भूकंप की तारीख - 12 मई 2008
सुपरमून - 5 मई 2008
साल 2010 : दक्षिण अमेरिका के देश चिली में 8.8 की तीव्रता के एक विध्वंसकारी भूकंप ने दस्तक दी। इस भूकंप के बाद उठी सुनामी में करीब 525 जानें चली गई और लगभग 7 बिलियन डॉलर की संपत्ति का नुकसान हुआ।
भूकंप की तारीख - 27 फरवरी 2010
सुपरमून- 28 फरवरी 2010
साल 2011 : जापान के तोहोकु के निकट समुद्र के नीचे करीब 9.1 की तीव्रता लिए भूकंप के झटके महसूस किए गए, जिससे उठी जबरदस्त सुनामी ने शहर को चपेट में ले लिया। इस सुनामी में करीब 16 हजार जानें चली गई और ढाई हजार लोग लापता हो गए। सुनामी के बाद किए गए आंकलन के अनुसार यह सुनामी करीब 360 बिलियन डॉलर का नुकसान कर गई थी।
भूकंप की तारीख - 11 मार्च 2011
सुपरमून - 19 मार्च 2011
इन चारों मामलों में यह बात चौंकाने वाली है कि ये विनाशकारी भूकंप सुपरमून के आसपास ही दर्ज किए गए, जिनसे मानव जाति को भारी नुकसान उठाना पड़ा। इन आंकड़ों से तो सुपरमून व भूकम्पों के बीच संबंध होने की बात को काफी बल मिलता है।
इस बारे में विशेषज्ञों का क्या कहना है?
मुख्य धारा के वैज्ञानिकों ने कभी खुले तौर पर सुपरमून को इन भूकम्पों की वजह नहीं ठहराया, बल्कि समय-समय पर इस बात का खंडन होते आया है। फिर भी आंकड़ों में सुपरमून व भूकंप के बाच संबंध नजर आने की वजह से यह धारणा वक्त के साथ बार-बार उठती रही है।
जापानी शोधकर्ताओं के द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह दावा किया गया था कि चांद, सिस्मिक हलचल व लहरों की गतिविधियों के बीच संबंध है। नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित एक शोधपत्र में चांद व सिस्मिक गतिविधियों के बीच इस संबंध को संभावनाओं के आधार पर महत्वपूर्ण बताया गया था। इस शोध के अनुसार जब सूरज, चांद व धरती एक सीध में आ जाते हैं तब पृथ्वी में लहरों की गतिविधियां अपनी चरम सीमा में होती है। इससे सिस्मिक प्लेटों में हलचल की संभावनाओं को सिरे से नकारा नहीं जा सकता।
इस बारे में पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध न होने की वजह से केवल धारणाओं के आधार पर सुपरमून और भूकंप के बीच संबंध स्थापित कर पाना संभव नहीं है। इन धारणाओं को बल मिलने पर साल 2011 में नासा ने इस पर एक महत्वपूर्ण बयान जारी किया था।
साल 2011 में नासा के गोडार्ड स्पेस सेंटर के मुख्य वैज्ञानिक जेम्स गार्विन ने कहा था कि "सुपरमून का धरती पर प्रभाव काफी कम एवं सीमित है। कई सिस्मोलॉजिस्ट व वोल्केनोलॉजिस्ट के द्वारा किए गए गहन अध्ययन के अनुसार चांद का पूर्णिमा के समय धरती के करीब आना, पृथ्वी की आतंरिक ऊर्जा का संतुलन नहीं बिगाड़ सकता।"
स्पष्ट रूप से नासा हमें विश्वास दिलाना चाहता है कि सुपरमून और इन भूकम्पों के बीच कोई संबंध नहीं है। इसके बावजूद कई बुद्धिजीवी अब भी इससे जुड़े शोध करने में लगे हुए हैं, यही बात मानव जाति को औरों से अलग बनाती है। शायद आने वाले समय में चांद व धरती के बीच संबंध को नए सिरे से परिभाषित किया जा सके, और हमें इससे जुड़ी और भी रोचक बातें जानने को मिले।