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चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, केन्द्र सरकार को भी दी सलाह

हमें फॉलो करें चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, केन्द्र सरकार को भी दी सलाह

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, सोमवार, 23 सितम्बर 2024 (11:57 IST)
Supreme Court on child pornography: उच्चतम न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court) के उस आदेश को सोमवार को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि बाल पॉर्नोग्राफी (अश्लील सामग्री) देखना और डाउनलोड करना पॉक्सो कानून तथा सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत अपराध नहीं है। इस मामले में शीर्ष अदालत ने केन्द्र सरकार को सलाह देते हुए कहा कि कोर्ट पोस्को मामले में चाइल्ड पोर्नोग्राफ की जगह चाइल्ड सेक्सुअली एब्यूजिव एंड एक्प्लोइटेटिव मटीरियल (Child Sexually Abusive and Exploitative Material) लिखा जाए। 
 
भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि बाल पॉर्नोग्राफी देखना और डाउनलोड करना बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम के तहत अपराध है। पीठ ने बाल पॉर्नोग्राफी और उसके कानूनी परिणामों पर कुछ दिशा निर्देश भी जारी किए। 
 
उच्चतम न्यायालय ने उस याचिका पर अपना फैसला दिया है जिसमें मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी।  इससे पहले, शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने के लिए राजी हो गया था। उच्च न्यायालय ने कहा था कि बाल पोर्नोग्राफी देखना और महज डाउनलोड करना पॉक्सो कानून तथा आईटी कानून के तहत अपराध नहीं है।ALSO READ: एनडीपीएस के तहत दर्ज मामले में अग्रिम जमानत देना बहुत गंभीर मुद्दा : सुप्रीम कोर्ट
 
क्या कहा था हाईकोर्ट ने : उच्च न्यायालय ने 11 जनवरी को 28 वर्षीय एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी थी। उस पर अपने मोबाइल फोन पर बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री डाउनलोड करने का आरोप था। हाईकोर्ट ने ने यह भी कहा था कि आजकल बच्चे पोर्नोग्राफी देखने की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं और समाज को ‘इतना परिपक्व’ होना चाहिए कि वह उन्हें सजा देने के बजाय उन्हें शिक्षित करे। ALSO READ: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, बुल्डोजर एक्शन पर लगाई रोक
 
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता संगठनों की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एचएस फुल्का की दलीलों पर गौर किया कि उच्च न्यायालय का फैसला इस संबंध में कानून के विरोधाभासी है। वरिष्ठ अधिवक्ता फरीदाबाद में स्थित एनजीओ ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन एलायंस’ और नई दिल्ली स्थित ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की ओर से अदालत में पेश हुए। ये गैर सरकारी संगठन बच्चों की भलाई के लिए काम करते हैं। (एजेंसी/वेबदुनिया)
Edited by: Vrijendra Singh Jhala

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