नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय कोलेजियम ने बुधवार को उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के. एम जोसेफ को पदोन्नति देकर शीर्ष न्यायालय का न्यायाधीश बनाने की अपनी सिफारिश पर पुनर्विचार करने के विषय पर फैसला टाल दिया।
केन्द्र सरकार ने पिछले सप्ताह न्यायमूर्ति जोसेफ की फाइल लौटाते हुए इस नाम पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया था।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की पांच सदस्यीय कोलेजियम की शीर्ष न्यायालय के सामान्य कामकाज के बाद बैठक हुई, लेकिन इसमें कोई फैसला नहीं लिया गया। पांच वरिष्ठतम न्यायाधीशों के कोलेजियम की अध्यक्षता प्रधान न्यायाधीश कर रहे हैं।
इस बीच, सरकार ने इस बात को खारिज कर दिया कि उत्तराखंड के मुख्य न्यायाधीश के. एम जोसेफ की उच्चतम न्यायालय में नियुक्ति के प्रस्ताव को उसने इसलिए ठुकरा दिया कि उन्होंने राज्य में 2016 में राष्ट्रपति शासन लगाने के केंद्र सरकार के फैसले को पलट दिया था। उस समय राज्य में कांग्रेस की सरकार थी।
कानून विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कोलेजियम अपनी सिफारिश दोहराती है, तो सरकार न्यायमूर्ति जोसेफ को नियुक्त करने के लिए बाध्य होगी। वहीं, सरकारी सूत्रों ने कहा कि नए सिरे से पुनर्विचार करने को कहा जा सकता है।
हालांकि, दुष्यंत दवे सहित विशेषज्ञों ने कहा कि कोलेजियम की सिफारिश को लागू करने के लिए कोई समय सीमा नहीं है।
एक अधिकारी ने कहा कि चूंकि अन्य नाम भी बैठक के एजेंडा में शामिल हैं, इसलिए न्यायमूर्ति जोसेफ के नाम के साथ - साथ अन्य नामों को सरकार के पास भेजे जाने के विषय पर तौर तरीकों पर काम किया जाना है।
कोलेजियम की इस बैठक की कार्यसूची में विचार के लिये न्यायमूर्ति जोसेफ के नाम के अलावा शीर्ष अदालत में पदोन्नति के लिये कलकत्ता, राजस्थान, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के नाम भी शामिल थे।
हालांकि, न्यायमूर्ति चेलामेश्वर आज न्यायालय नहीं आए थे लेकिन कोलेजियम की बैठक में उन्होंने हिस्सा लिया। बहरहाल, कोलेजियम की अगली बैठक के बारे में आधिकारिक रूप से अभी कोई जानकारी नहीं है।
एक अधिकारी ने बताया कि इस बैठक में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के पत्रों पर विस्तार से चर्चा हुई।
उच्चतम न्यायालय की कोलेजियम ने 10 जनवरी को न्यायमूर्ति जोसेफ को पदोन्नति देकर शीर्ष न्यायालय में न्यायाधीश बनाने और वरिष्ठ अधिवक्ता इन्दु मल्होत्रा को सीधे उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश बनाने की सिफारिश की थी। सरकार ने इन्दु मल्होत्रा के नाम को मंजूरी दे दी और न्यायमूर्ति जोसेफ के नाम पर फिर से विचार के लिये उनकी फाइल लौटा दी थी।
प्रधान न्यायाधीश ने 27 अप्रैल को इन्दु मल्होत्रा को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद की शपथ दिलाई थी।
सरकार ने न्यायमूर्ति जोसेफ की फाइल लौटाते हुए कहा था कि यह प्रस्ताव शीर्ष अदालत के मानदंडों के अनुरूप नहीं है।
केन्द्र ने प्रधान न्यायाधीश को दो पत्र लिखे थे और इसमें कहा था कि उच्चतर न्यायपालिका में पहले से ही केरल को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिला हुआ है। न्यायमूर्ति जोसेफ भी केरल से ही हैं। यही नहीं, केन्द्र ने उनकी वरिष्ठता पर भी सवाल उठाते हुये कहा है कि अखिल भारतीय स्तर पर उच्च न्यायालय की वरिष्ठता की समेकित सूची में उनका 42वां स्थान हैं।
न्यायमूर्ति जोसेफ जुलाई 2014 से उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश है। उन्हें 14 अक्तूबर, 2004 को केरल उच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश बनाया गया था।
इससे पहले, न्यायमूर्ति चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति लोकूर और न्यायमूर्ति कुरियन सहित कोलेजियम के सदस्यों ने न्यायमूर्ति जोसेफ के नाम को मंजूरी देने में हो रहे विलंब पर चिंता व्यक्त की थी।
इस बीच, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के तीन फैसलों से सरकार को यह अधिकार प्राप्त है कि वह न्यायालय के कालेजियम द्वारा भेजे गए प्रस्तावों पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकती है।
सरकार ने 26 अप्रैल को उच्चतम न्यायालय कालेजियम से कहा था कि वह न्यायमूर्ति जोसेफ के संबंध में अपनी सिफारिश पर पुनर्विचार करे।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति जोसेफ की नियुक्ति को रोकने के फैसले के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में प्रसाद ने कहा कि सरकार के खिलाफ प्रायोजित आरोप लगाए जा रहे हैं।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने आशा जताई कि शीर्ष न्यायालय द्वारा फैसले को टालना अस्थायी है और यह जल्द ही अपनी पहले की सिफारिश दोहराएगी। (भाषा)