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रिटायर हुए जस्टिस चेलामेश्वर, CJI के खिलाफ बगावत से देश को डाला था सकते में

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नई दिल्ली , रविवार, 24 जून 2018 (13:10 IST)
नई दिल्ली। शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीश का पद इतना सम्मानित, प्रतिष्ठित और असंदिग्ध माना जाता है कि उनका जिक्र अमूमन उनकी नियुक्ति के समय या फिर किसी मामले के फैसले को लेकर ही होता है। न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर भी अपवाद नहीं थे, लेकिन इस साल के शुरू में वे अन्य कारणों से सुर्खियों में आए, जब उन्होंने 3 अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों के साथ देश में लोकतंत्र के खतरे में होने की चेतावनी देकर प्रधान न्यायाधीश को ही कटघरे में खड़ा कर दिया।
 
22 जून को सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर अपने कार्यकाल के दौरान विशेषकर कॉलेजियम का सदस्य बनने के बाद विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने फैसलों में ही नहीं बल्कि प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर भी अपने विचार पूरी बेबाकी से व्यक्त करते रहे।
 
न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने उच्च न्यायालयों में न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति के लिए नामों के चयन की  कॉलेजियम की प्रक्रिया से लेकर प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा द्वारा महत्वपूर्ण मुकदमों को सुनवाई हेतु आबंटन किए जाने की प्रक्रिया पर मुखर होकर अपने विचार व्यक्त किए। 
 
न्यायपालिका में पारदर्शिता के हिमायती न्यायमूर्ति चेलामेश्वर का जन्म आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले के मोव्या मंडल के पेड्डा मुत्तेवी गांव में 23 जून 1953 को हुआ था। उनके पिता जे. लक्ष्मीनारायण कृष्णा नगर की जिला अदालत में वकालत करते थे।
 
चेलामेश्वर की प्रारंभिक शिक्षा कृष्णा जिले के मछलीपट्टनम के हिन्दू हाईस्कूल में हुई। चेन्नई के लोयोला कॉलेज से भौतिक विज्ञान में स्नातक करने के बाद उन्होंने 1976 में विशाखापट्टनम के आंध्र विश्वविद्यालय से  कानून की डिग्री प्राप्त की और उसी साल वकालत शुरू कर दी। 
 
चेलामेश्वर को 1995 में वरिष्ठ अधिवक्ता मनोनीत किया गया तथा उसी साल आंध्रप्रदेश सरकार  ने उन्हें अपना अतिरिक्त महाधिवक्ता नियुक्त किया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्हें आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया। इसके बाद 1999 में उन्हें यहीं पर स्थायी न्यायाधीश बना दिया गया। 8 साल बाद 3 मई 2007 को वे गौहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने, जहां से उनका तबादला केरल उच्च न्यायालय कर दिया गया था। 10 अक्टूबर 2011 को उन्हें पदोन्नति देकर उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बना दिया गया था।
 
न्यायमूर्ति चेलामेश्वर न्यायपालिका के मजबूत स्तंभ थे और कई महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक फैसलों में शामिल रहे। वे उस संविधान पीठ के सदस्य थे जिसने निजता को संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार का हिस्सा घोषित किया था। न्यायमूर्ति चेलामेश्वर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने ही मार्च 2015 में सूचना प्रौद्योगिकी कानून की विवादित धारा 66 ए को निरस्त किया था। पीठ का कहना था कि यह धारा बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में हस्तक्षेप करती है।
 
न्यायमूर्ति चेलामेश्वर की पीठ ने नवंबर, 2017 में न्यायालय से अपने पक्ष में आदेश प्राप्त करने  के लिए न्यायाधीशों को कथित रूप से रिश्वत देने के मामले की सुनवाई के लिए 5 वरिष्ठतम  न्यायाधीशों की संविधान पीठ गठित की थी। लेकिन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने इस आदेश को निरस्त करते हुए कहा था कि पीठ गठित करने का अधिकार सिर्फ प्रधान न्यायाधीश को ही है। इस घटना के बाद न्यायपालिका और देश को न्यायमूर्ति चेलामेश्वर का एक नया रूप देखने को मिला।
 
न्यायमूर्ति चेलामेश्वर के नेतृत्व में शीर्ष अदालत के 4 वरिष्ठतम न्यायाधीशों न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी. लोकूर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने इस साल 12 जनवरी को अप्रत्याशित रूप से संयुक्त संवाददाता सम्मेलन करके न्यायपालिका ही नहीं, अपितु पूरे देश को सकते में डाल दिया।
 
इस संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने बताया कि शीर्ष अदालत के कामकाज को लेकर प्रधान न्यायाधीश को विस्तृत पत्र लिखा गया था लेकिन स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ। इस पत्र में सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ कांड की सुनवाई करने वाले सीबीआई के विशेष न्यायाधीश बीएच लोया के नागपुर में निधन की परिस्थितियों की जांच के लिए दायर याचिका को सूचीबद्ध करने और महत्वपूर्ण मुकदमों के आबंटन सहित विभिन्न संवेदनशील मुद्दे शामिल थे। उन्होंने कहा था कि पिछले कुछ महीने में कई चीजें ऐसी हुई हैं, जो वांछनीय नहीं थीं।
 
न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने सार्वजनिक रूप से यह कहने में भी संकोच नहीं किया कि अगर इस संस्थान (उच्चतम न्यायालय) को संरक्षित नहीं किया जाता और अगर यह अपना संतुलन नहीं बना लेता, तो इस देश में लोकतंत्र कायम नहीं रह जाएगा। अच्छे लोकतंत्र की पहचान निष्पक्ष और स्वतंत्र न्यायाधीश होते हैं। (भाषा)
 

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