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सुप्रीम कोर्ट ने दी व्यवस्था, संपत्ति ध्वस्तीकरण से प्रभावित लोग कर सकते हैं अदालत का रुख

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

नई दिल्ली , गुरुवार, 24 अक्टूबर 2024 (17:42 IST)
Supreme Court's decision: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने गुरुवार को उस याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया जिसमें उत्तराखंड, राजस्थान और उत्तरप्रदेश के प्राधिकारियों पर संपत्तियों के ध्वस्तीकरण (demolition of property) संबंधी उसके आदेश की अवमानना ​​का आरोप लगाया गया था।
 
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति पी.के. मिश्रा और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि वह याचिकाकर्ता की याचिका पर विचार करने की इच्छुक नहीं है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कथित कृत्य से जुड़ा नहीं है। पीठ ने कहा कि हम भानुमती का पिटारा नहीं खोलना चाहते। शीर्ष अदालत ने कहा कि तोड़फोड़ से प्रभावित लोगों को अदालत में आने दें।ALSO READ: सुप्रीम कोर्ट का बायजू को बड़ा झटका, जानिए कैसे दिवालिएपन की कगार पर पहुंच गई दिग्गज एड टेक कंपनी?
 
याचिकाकर्ता के वकील ने आरोप लगाया कि हरिद्वार, जयपुर और कानपुर में प्राधिकारियों ने उच्चतम न्यायालय के उस आदेश की अवमानना ​​करते हुए संपत्तियों को ध्वस्त कर दिया जिसमें कहा गया था कि उसकी अनुमति के बिना ध्वस्तीकरण नहीं किया जाएगा। वकील ने कहा कि उच्चतम न्यायालय का आदेश स्पष्ट था कि इस अदालत की अनुमति के बिना कोई भी तोड़फोड़ नहीं की जाएगी। उन्होंने आरोप लगाया कि इनमें से एक मामले में प्राथमिकी दर्ज होने के तुरंत बाद संपत्ति को ध्वस्त कर दिया गया था।
 
उत्तरप्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने कहा कि याचिकाकर्ता तीसरा पक्ष हैं और उन्हें तथ्यों की जानकारी नहीं है, क्योंकि वह केवल फुटपाथ पर अतिक्रमण था जिसे अधिकारियों ने हटाया था। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता ने मीडिया की कुछ खबरों के आधार पर अदालत का रुख किया।ALSO READ: शरद पवार खेमे की याचिका पर अजित पवार को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस
 
पीठ ने याचिका पर विचार करने से इंकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता इस कार्रवाई से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नहीं हैं। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि 3 में से 2 मामलों में प्रभावित व्यक्ति जेल में हैं, हालांकि पीठ ने कहा कि जेल में बंद प्रभावित व्यक्तियों के परिवार के सदस्य अदालत का रुख कर सकते हैं।
 
वकील ने कहा कि जो लोग पीड़ित होते हैं, उनके पास अक्सर अदालत तक पहुंच नहीं होती है। इसके बाद पीठ ने टिप्पणी की कि कृपया ऐसा न कहें। हर जगह जनहित की भावना से प्रेरित नागरिक हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर किसी की संपत्ति को ध्वस्त किया गया है तो वे अदालत का रुख कर सकते हैं और पीठ उस पर सुनवाई करेगी।ALSO READ: सुप्रीम कोर्ट ने परीक्षा नतीजों को लेकर कर्नाटक सरकार को लगाई फटकार, जानें क्या है मामला
 
शीर्ष अदालत ने इससे पहले कई याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था जिसमें यह बात कही गई थी कि कई राज्यों में अपराध के आरोपियों की संपत्तियों सहित अन्य संपत्तियों को ध्वस्त किया जा रहा है। उच्चतम न्यायालय ने 17 सितंबर को आदेश दिया था कि उसकी अनुमति के बिना एक अक्टूबर तक देशभर में कोई भी तोड़फोड़ नहीं की जाएगी।
 
हालांकि उसने स्पष्ट किया था कि उसका आदेश सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों, रेलवे लाइन या जलाशयों जैसे सार्वजनिक स्थानों पर बने अनधिकृत ढांचों पर लागू नहीं होगा। उच्चतम न्यायालय ने 1 अक्टूबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि अगले आदेश तक उसका 17 सितंबर का अंतरिम आदेश लागू रहेगा।
 
इसके बाद न्यायालय ने संपत्तियों को ध्वस्त करने के लिए अखिल भारतीय दिशा-निर्देश तैयार करने का सुझाव दिया था और कहा था कि सड़क के बीच में स्थित धार्मिक संरचनाओं (चाहे वह दरगाह हो या मंदिर) को हटाना होगा, क्योंकि जनहित सर्वोपरि है। न्यायालय ने कहा था कि किसी व्यक्ति का आरोपी या दोषी होना संपत्तियों को ध्वस्त करने का आधार नहीं है।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta

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