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अटलजी के समय हुई सर्जिकल स्ट्राइक की अनकही कहानी...

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, शुक्रवार, 27 जनवरी 2017 (17:45 IST)
वर्ष 2002 के 'ऑपरेशन पराक्रम' के दौरान भारतीय वायुसेना के फ्रांस निर्मित मिराज-2000 जेट विमानों ने अविश्वसनीय गोपनीय मिशन के तहत लक्षित हमला (सर्जिकल स्ट्राइक) के एक कारनामे को अंजाम दिया था, लेकिन इसकी कहानी अनकही ही रह गई क्योंकि यह किसी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हुआ और इस बहादुरी के लिए किसी भी वायुसेना के हीरोज को बहादुरी का सम्मान नहीं दिया जा सका। 
हफपोस्ट इंडिया डॉट कॉम के समाचार उपसंपादक सुधि रंजन सेन ने अपने एक राइटअप में लिखा है कि 31 जुलाई, 2002 को रात दो बजे 29 वर्षीय फ्लाइट लेफ्टीनेंट राजीव मिश्रा (फाइटर पायलट) को अंबाला एयरफोर्स स्टेशन स्थित क्वार्टर में लेसर युक्त उपकरण पर सूचना दी गई कि वे तुरंत ही श्रीनगर जाने के लिए तैयार हो जाएं। उन्हें मिशन को लेकर कोई जानकारी नहीं थी क्योंकि भारतीय वायुसेना ने इस मिशन को तो पूरा किया, लेकिन इसके बारे में बाहरी दुनिया को किसी प्रकार की कोई जानकारी नहीं दी। वे लड़ाकू जगुआर युद्धक जेट विमान को उड़ाते थे, लेकिन उस रात को वे विमान उड़ाने के लिए भलीभांति तैयार नहीं थे।
 
उस समय वायुसेना को लेसर गाइडेंस सिस्टम्स की प्रणाली इसराइल से मिली ही थी, लेकिन इस तकनीक के जरिए पायलट्‍स को इस बात की जानकारी दी जाती थी कि उन्हें किस लक्ष्य को निशाना बनाना है। उस रात मिश्रा और उनके दो साथियों को स्ट्राइक सेल के सदस्यों ने बताया कि उन्हें लाइन ऑफ कंट्रोल के किनारे पर स्थित पाकिस्तानी पोजीशंस को उड़ाना है। भारत-पाक संबंधों के लिहाज से यह बहुत संवेदनशील क्षण थे क्योंकि मात्र सात माह पहले पाकिस्तानी उग्रवादियों ने भारतीय संसद पर हमला किया था और सीमा के दोनों ओर से सेनाएं आमने सामने तैयार खड़ी थीं।
 
मई-जून 2002 के दौरान दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर था। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडीज कालूचक हत्याकांड के बाद बहुत विचलित थे। भारतीय सुरक्षा तंत्र को अंदेशा था कि कुपवाड़ा के खेल सेक्टर में सीमा चौकियों पर जबर्दस्त तैयारी कर रखी है और पाक सैनिक वहां से भारतीय ठिकानों पर गोले बरसा रहे थे और तब जबर्दस्त जवाबी कार्रवाई की जरूरत थी। पहले योजना थी कि भारतीय सेना को पाक ठिकानों पर हमला करने के लिए भेजा जाए, लेकिन सेना प्रमुख जनरल सुंदरराजन पद्मनाभन से सलाह मशविरे के बाद तय किया कि सीधे मैदानी हमले की बजाय कमजोर पाक पोजीशन्स पर वायुसेना का प्रहार किया जाए और इसके बाद विशेष बल मैदान संभालें।
 
तब वायुसेना के 'कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत' को अपनाया गया और इस मिशन का कोई नाम नहीं दिया गया और इससे जुड़े सारे विवरण पूरी तरह से गोपनीय रखे गए। जब इस ऑपरेशन से जुड़े लोगों ने नामों को गोपनीय रखे जाने की शर्त पर बात की तब इसे इस राइट अप की शक्ल दी गई। वर्ष 2002 की तेज गर्मी में हमलों की शुरुआत का जिम्मा पश्चिमी एयर कमान को दिया गया। हमलावर विमानों में फ्रांसीसी मिराज, ब्रिटिश जगुआर और रूसी मिग-21 विमानों को शामिल किया गया जिन्होंने श्रीनगर से उड़ान भरी। पश्चिमी सीमा के सभी वायुसेना ठिकानों को संभावित युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा गया। 
 
फ्लाइट लेफ्टीनेंट मिश्रा और उनके दो साथियों को 'निशाने' फूंकने का काम सौंपा गया था। आज यह अत्याधुनिक तकनीक बल पर संभव है लेकिन तब तीन लोगों की टीम का पूरा काम बहुत जोखिम भरा था क्योंकि योजना की त्रुटिहीन तैयारी जरूरी थी। 31 जुलाई की रात को वरिष्ठ अधिकारियों ने श्रीनगर में आखिरी बार दिल्ली सरकार से बात की और तब उन्हें आधा घंटे रुकने के लिए कहा गया । हरी झंडी मिलने के बाद 1 अगस्त को श्रीनगर हवाई अड्‍डे पर सिंगल इंजन चीता हेलिकॉप्टरों के दरवाजों को निकाल दिया गया था। जैसे ही हेलीकॉप्टर नियंत्रण रेखा पर पहुंचे तो उन्हें लगातार गोलाबारी के धमाके सुनाई दिए। तब वे और नीचे आए और जैसे ही चॉपर जमीन के करीब पहुंचा वे एलओसी पर बीएसएफ चौकी पर तीन लोग बाहर की ओर कूदे।
 
...और फिर एक बुरी खबर मिली, मगर.... पढ़ें अगले पेज पर...
 
 

उनके उपकरणों को बाहर की ओर फेंका गया और बीएसएफ के दो जवानों ने उन्हें पकड़कर तेजी से गोलाबारी से बचने के लिए खोदे गए गड्‍ढों में धकेल दिया। चीता हेलीकॉप्टर बहुत तेजी से वापस चले गए, लेकिन चौकी पर गोलों की बरसात होती रही। वायुसेना के इन लड़ाकों को जिन ठिकानों को उड़ाना था, वहां तक पहुंचने के लिए तीन पहाडि़यों को पार करना था। वे 16 हजार फुट की ऊंचाई थी, जहां उन्हें सांस लेना मुश्किल हो रहा था। गौरतलब है कि पा‍किस्तानी चौकियां ढलान पर थी और वे भारी घासफूस और पेड़ों से ठंकी थीं। दूर से चौकियों को निशाना बनाना असंभव था। उन्हें इनके और करीब जाना था, लेकिन यह बात उन्हें अंतत: नहीं बताई गई थी।
 
इसका सीधा सा अर्थ था कि भारतीय सैनिकों के पास दुश्मनों से छिपने का कोई साधन नहीं था। अगर वे बीएसएफ चौकी से जरा आगे बढ़ते तो वे मिनटों में तोप के गोलों का निशाना बन जाते क्योंकि हेलीकॉप्टर की गतिविधि पाक चौकियों को सावधान कर चुकी होती। समय निकलता जा रहा था और ऑपरेशन को तभी शुरू किया जा सकता था जबकि लक्ष्यों की भलीभांति पहचान हो चुकी होती। बीएसएफ चौकी से उन्हें छिपने के लिए केवल दो जैकटें ही मिल सकीं थीं। रास्ते में उन्हें पेड़ों पर खून के धब्बे मिले। इससे पहले की रात को भारतीय सेना ने घुसपैठ की कोशिश नाकाम की थी। ये खून के धब्बे उन्हीं घुसपैठिए आतंकवादियों के थे।
 
जब लेफ्टीनेंट मिश्रा और उनके साथी अंधेरे बंकर में इंतजार कर रहे थे तभी सेना के विशेष बलों के जवानों ने चौकी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया था। पाक तोपें गोले बरसा रही थीं और बंकर की एकमात्र लालटेन को काले कागज से ढंककर एक पलंग के नीचे रख दिया गया था क्योंकि हल्क‍ी सी रोशनी नजर आने पर गोले गिरना शुरू हो जाते। तब भी ‍आर्टिलरी यूनिट का एक मेजर पाकिस्तानी तोपों की पोजीशंस का अंदाजा लगा रहा था। 
 
दो अगस्त : जब मिश्रा, उनके साथियों और विशेष बलों को अंदाजा लगाने का मौका मिला कि उन्हें एक बुरी खबर मिली। खराब मौसम के चलते जेट विमान श्रीनगर से उड़ानें नहीं भर सके और पाकिस्तानी फौज भारतीय चौकियों पर गोले बरसा रही थी। हमला करने का समय दो बार बढ़ाया गया, लेकिन अंत में कोड (आगे बढ़ने का संदेश) मिला। लड़ाकू विमानों ने उड़ान भरी और हमला शुरू हो गया था। मिराज विमानों ने सतह से नीचे की ओर डुबकी लगाई और कुपवाड़ा सेक्टर के खेल इलाके के बंकरों पर बम बरसा दिए। ऑपरेशन के संवेदनशील तरीकों को देखते हुए विमानों की संख्या सीमित रखी गई थी। और इसी तरह लक्ष्यों की संख्‍या भी सीमित थी। 
 
लेकिन एकाएक हवाई हमलों से चकित पाकिस्तानियों ने लड़ाकू विमानों के हमलों के दूसरे दौर के बचाव के उपाय करने शुरू कर दिए लेकिन इससे पहले वायु सेना ने रेडियो पर आने वाले विमानों को निर्देश दे दिए ताकि वे सही-सही निशाने लगा सके। इस दौरान पाकिस्तानियों ने भारी तोपों का इस्तेमाल करते हुए एलओसी पर सेना- बीएसएफ की चौकी थी लेकिन जब फ्लाइट लेफ्टिनेंट मिश्रा और उनके साथियों ने सुरक्षित वापसी की तभी विशेष बलों ने बाकी बचे पाकिस्तानी सैनिकों का सफाया करने के लिए आगे बढ़ गई। शाम तक पाकिस्तानी तोपें शांत हो चुकी थीं।
 
पाक ने 2002 के इस हवाई हमलों की कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की। वाजपेयी सरकार इस बात से खुश थी कि इन हवाई हमलों की दुनिया को भनक तक नहीं लगी। भारतीय वायुसेना और थल सेना ने पाकिस्तानी सैन्य क्षमताओं को कैसे नष्ट किया, इस बात की जानकारी केवल कुछ मुट्‍ठी भर लोगों को थी। इन लोगों में जहां राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व के लोगों के अलावा केवल उन्हीं लोगों को जानकारी थी, जिन्होंने इसमें भाग लिया था। बाद में, फ्लाइट लेफ्टीनेंट मिश्रा वायुसेना से विंग कमांडर के तौर पर रिटायर हो गए और चूंकि इसका कहीं कोई रिकॉर्ड नहीं रखा गया था इसलिए किसी को भी बहादुरी के पदक मिलने का कोई सवाल ही नहीं उठता था। यह सच्चे अर्थों में ऐसी सर्जिकल स्ट्राइक थी जिसके बारे में कभी किसी को कोई जानकारी नहीं दी गई। (साभार)

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