जम्मू कश्मीर में पहाड़ी मोड़ों पर वाहनों को निशाना बना रहे हैं आतंकवादी
अभी तक तो सैन्य वाहन ही निशाने पर थे, लेकिन...
Terrorism in Jammu and Kashmir: जम्मू कश्मीर के रियासी में शिवखोड़ी से लौट रहे श्रद्धालुओं पर हुए आतंकी हमले के उपरांत सुरक्षा अधिकारियों ने कई रहस्योद्घाटन कर सभी को न सिर्फ चौंकाया है बल्कि पहाड़ी इलाकों में सफर करने वालों की चिंता भी बढ़ा दी है। हालांकि इन रहस्योद्घाटनों के उपरांत प्रदेश के आतंकवादग्रस्त पहाड़ी इलाकों में सैन्य वाहनों की सुरक्षा की खातिर तो उपाय किए जा रहे हैं पर असैन्य वाहनों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है।
एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी के अनुसार, राजौरी, पुंछ और रियासी के पहाड़ी रास्तों पर आतंकी एक जैसी रणनीति अपनाकर वाहनों पर हमले कर रहे हैं। हालांकि पहले वे सिर्फ सैन्य वाहनों पर हमलों को अंजाम दे रहे थे, लेकिन अब उनके द्वारा असैन्य वाहनों को निशाना बनाए जाने से उन नागरिकों की जान सांसत में पड़ गई है, जो इन मार्गों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
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9 जून को हुआ था यात्री वाहन पर हमला : अगर घटनाक्रमों पर एक नजर दौड़ाएं तो आतंकियों ने पहले भी राजौरी व पुंछ में दो बार, 21 दिसंबर 2023 में डेरा की गली में तथा 4 मई 2024 को सुनह नाले के पास, सैन्य वाहनों पर पहाड़ी मोड़ों पर हमले उस समय किए थे, जब सैन्य वाहनों ने तीखे मोड़ पर अपने वाहनों की स्पीड को धीमा किया था। और 9 जून को त्रेयठ में श्रद्धालुओं को ले जा रहे यात्री वाहन पर भी पहली बार इसी रणनीति को अपना हमला किया तो 10 की जान चली गई।
1993 में पहली बार किया था हमला : एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, आतंकी इस तरह से असैन्य वाहन को भी निशाना बनाएंगे किसी ने सोचा नहीं था। यह याद रखने योग्य तथ्य है कि आतंकियों ने पहली बार वर्ष 1993 में 13-14 अगस्त की रात को तत्कालीन डोडा जिले के किश्तवाड़ कस्बे में सरथल-किश्तवाड़ मार्ग पर
यात्री बस में से उतारकर सिर्फ सत्रह हिन्दू यात्रियों को मार डाला था।
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उसके उपरांत 13 मई 2022 को भी कटरा से लौट रही श्रद्धालुओं से भरी बस में स्टिकी बम लगाकर हमला किया गया था। बस में आग लगने से तीन श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी, जबकि 24 लोग घायल हुए थे। 11 जुलाई 2017 को अनंतनाग में अमरनाथ यात्रियों की बस पर हमला करते हुए आतंकियों ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं। इसमें 9 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी, जबकि 19 घायल हुए थे। मरने वाले सभी श्रद्धालु गुजरात के थे।
अब जबकि आतंकियों द्वारा यात्री बसों व असैन्य वाहनों पर हमले की रणनीति को एक बार फिर से अपनाया जाने लगा है, सुरक्षाबलों के लिए परेशानी बढ़ गई है। ऐसा इसलिए क्योंकि पहाड़ी इलाकों में देर सबेर चलने वाले वाहनों को सुरक्षा प्रदान करना असंभव है। इतना जरूर था कि प्रशासन अतीत की तरह आतंकवादग्रस्त इलाकों में एक बार फिर रात के समय चलने पर पाबंदियां थोपने पर विचार कर रहा है और अगर ऐसा होता है तो शांति लौटने के दावों की धज्जियां उड़ जाएंगी।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala