साल 2024 में जब देश वाचाल राजनीति के दौर से गुजर रहा हो। जब तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं की तरफ से गांधी से लेकर भगत सिंह तक और अंबेडकर से लेकर सावरकर तक के नाम पर छिछालेदर हो रही हो— ऐसी बयानबाजियां हो रहीं हों, जिससे देश के आम आदमी का कोई फायदा नहीं है, ऐसे में एक राजनीतिक चुप्पी या राजनीतिक मौन के क्या मायने हो सकते हैं और उसे कैसे परिभाषित किया जाना चाहिए।
दिलचस्प है कि भारतीय राजनीति के इतिहास में इंदिरा गांधी को गूंगी गुड़िया कहा जाता था। जबकि लालबहादुर शास्त्री को सबसे कमजोर पीएम कहा जाता था, क्योंकि वे कम बोलते थे। ऐसे में भारतीय अर्थशास्त्र को एक नई ऊंचाई देने वाले पीएम डॉ मनमोहन सिंह को भी क्या भारत का एक कमजोर प्रधानमंत्री कहा जाना चाहिए? सिर्फ इसलिए कि वे चुप रहकर अपनी बात कहते थे। यह तो सबको याद ही होगा कि महात्मा गांधी जब नाराज होते थे तो मौन धारण कर लेते थे या चुप्पी साध लेते थे। फिर भी गांधी इस देश की राजनीतिक और सामाजिक सिरों पर हमेशा बने रहते हैं।
मौन हालांकि भारत में अध्यात्मिक उन्नति के लिए एक साधना है— यह असीम और अनंत है। दुनिया की सबसे समृद्ध भाषा भी मौन की जगह नहीं ले सकती। मौन का कोई विकल्प नहीं। मौन कोई कायर चुप्पी नहीं है— यह जवाब नहीं देने की ताकत है। क्योंकि चुप्पी बाहर होती है और मौन भीतर घटता है।
किंतु राजनीति में मौन के क्या मायने हो सकते हैं— यह बात समझने के लिए दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चुप्पी को याद किया जा सकता है। क्या मनमोहन सिंह राजनीतिक तौर पर मौन थे या वे चुप्प रहते थे। उनकी खामोशी अध्यात्मिक थी या उसके कोई राजनीतिक मायने लिए जा सकते हैं। कई सवाल है, लेकिन अगर इसके अध्यात्मिक संदर्भ में न जाएं तो इसे चाहे मौन कह लें या चुप्पी यह दोनों ही राजनीति में बेहद महत्वपूर्ण तत्व हैं।
राजनीति में कब, कहां चुप रहना है और कहां बोलना है और कहां किन बातों का जवाब देना है यह बेहद अहम हो जाता है।
साल 2024 में जब देश वाचाल राजनीति के दौर से गुजर रहा हैं। जब तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं की तरफ से गांधी से लेकर भगत सिंह तक और अंबेडकर से लेकर सावरकर तक के नाम पर छिछालेदर हो रही हो, चारों तरनफ से ऐसी बयानबाजियां हो रहीं हों, जिससे देश के आम आदमी का कोई लेना-देना नहीं है, ऐसे में एक राजनीतिक चुप्पी या एक मौन के मायनों की पड़ताल की जाना चाहिए और उसे खंगाला जाना चाहिए।
दरअसल, अपने साइलेंस या चुप्पी को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने लिए राजनीति में सबसे बड़े हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया। उनकी चुप्पी से उन सवालों के जवाब भी सध जाते थे, जिनके जवाब नहीं देना है और कुछ न कहकर सबकुछ बयां कर देने की अदा भी उनकी चुप्पी में शामिल थी।
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं : याद कीजिए वो संसद सत्र जब मनमोहन सिंह ने एक पल में संसद के पूरे माहौल को किसी शायराना महफिल में तब्दील कर दिया था— और उस माहौल का जादू यह हुआ था कि पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ के नेता जो जाने कब से भीतर से सूखकर ड्राय हो चुके थे वे किसी फूल की तरह हंसते हुए खिल उठे और नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज को भी शायरी करते हुए जवाब देना पड़ा।
उस वक्त डॉ मनमोहन सिंह ने एक संदर्भ में अल्लामा इकबाल का शेर पढ़ते हुए कहा था— माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं, तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार तो देख।
तू इधर उधर की न बात कर : अपने तीखे सवालों और रुआब के लिए जाने जाने वाली भाजपा नेता सुषमा स्वराज को भी अपने व्यवहार में एक अदब लाना पड़ा। उन्होंने एक शेर पढा और कहा— तू इधर उधर की न बात कर, ये बता के कारवां क्यों लुटा, मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।
अटल जी के पॉजेस : राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी सही वक्त पर सही बात कहने के लिए जाने जाते थे। उन्हें पता था कि कब कहां और क्या कहना है। यही वजह थी कि अटल बिहारी के पॉजेस के बाद कहे जाने वाले उनके शब्दों का लोग पिनड्रॉप साइलेंस के साथ इंतजार करते थे।
आज साल 2024 में कोई ऐसा नेता नजर नहीं आता जिसे शायद शब्दों की गरिमा के लिए या भाषा की मितव्यता के लिए याद किया जाएगा। इस खामोशी का कई बार वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस्तेमाल करते आए हैं। लेकिन वे एक लंबी चुप्पी के बाद किसी दिन अतिरिक्त बोलने के लिए भी जाने जाते हैं। शायद वे कहां बोलना है और कहां चुप रहना है इसे लेकर भी चूक कर जाते हैं। अंडरलाइन कीजिए कि मणिपुर पर उनकी टिप्पणी का पूरे देश को इंतजार है।
बहरहाल, डॉ मनमोहन सिंह के रूप में देश ने एक ऐसा पूर्व प्रधानमंत्री खो दिया है, जो चुप रहकर बहुत कुछ कह जाता था। वे इस बात को जानते थे कि हर बात का जवाब दिया जाना जरूरी नहीं होता। अगर आप कम बोलते हैं तो चुप रहा जा सकता है। अगर आप जानते हैं कि जवाब देने या कहने से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा तो आप चुप रह सकते हैं— और कुछ जवाब अपने काम से भी दिए जा सकते हैं।