नई दिल्ली। आयुर्वेद की अगुवाई में स्वास्थ्य क्रांति का आह्वान करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आयुर्वेदिक शिक्षा में कराए जा रहे अलग-अलग कोर्स के अलग-अलग स्तरों पर फिर से विचार करने तथा पारंपरिक खेती के साथ किसानों की खाली पड़ी जमीन का इस्तेमाल औषधीय पौधों के लिए करने की संभावना तलाशने पर जोर दिया।
एम्स की तर्ज पर बने पहले अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान को राष्ट्र को समर्पित करते हुए मोदी ने कहा कि हम 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना चाहते हैं, ऐसे में किसान अगर अपनी खाली पड़ी जमीन का उपयोग औषधीय पौधों के उत्पादन के लिए करने लगेगा, तो उसकी भी आय बढ़ेगी।
उन्होंने कहा कि पिछले 30 वर्षों से दुनिया में आईटी क्रांति देखी गई है। अब आयुर्वेद की अगुवाई में स्वास्थ्य क्रांति होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें न केवल गुणवत्तापूर्ण आयुर्वेदिक शिक्षा पर बहुत ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। बल्कि इसका दायरा और बढ़ाया जाना चाहिए। जैसे पंचकर्म थेरेपिस्ट, आयुर्वेदिक डायटीशियन, पराकृति एनालिस्ट, आयुर्वेद फार्मासिस्ट, आयुर्वेद की पूरी सहायक श्रृंखला को भी विकसित किया जाना चाहिए।
मोदी ने कहा कि इसके अलावा मेरा एक सुझाव ये भी है कि आयुर्वेदिक शिक्षा में कराए जा रहे अलग-अलग कोर्स के अलग-अलग स्तर पर एक बार फिर से विचार हो। जब कोई छात्र आयुर्वेद, औषधि और सर्जरी में स्नातक का कोर्स करता है तो पराकृति, आयुर्वेदिक आहार-विहार, आयुर्वेदिक फार्मास्यूटिकल्स के बारे में पढ़ता ही है। पांच-साढ़े पांच साल पढ़ने के बाद उसे डिग्री मिलती है और फिर वो अपनी खुद की प्रैक्टिस या नौकरी या फिर और ऊंची पढ़ाई के लिए प्रयास करता है।
उन्होंने कहा कि क्या ये संभव है कि बीएएमएस के कोर्स को इस तरह डिजाइन किया जाए कि हर परीक्षा पास करने के बाद छात्र को कोई ना कोई सर्टिफिकेट मिले। ऐसा होने पर दो फायदे होंगे। जो छात्र आगे की पढ़ाई के साथ-साथ अपनी प्रैक्टिस शुरू करना चाहेंगे, उन्हें सहूलियत होगी और जिन छात्रों की पढ़ाई किसी कारणवश बीच में ही छूट गई, उनके पास भी आयुर्वेद के किसी ना किसी स्तर का एक सर्टिफिकेट होगा।
उन्होंने कहा कि इतना ही नहीं, जो छात्र पांच साल का पूरा कोर्स करके निकलेंगे, उनके पास भी रोजगार के और बेहतर विकल्प होंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मुझे बताया गया है कि आयुष मंत्रालय के तहत 600 से ज्यादा आयुर्वेदिक दवाइयों के फार्मेसी स्टैन्डर्ड को पब्लिश किया गया है। इसका जितना ज्यादा प्रचार-प्रसार होगा, उतना ही आयुर्वेदिक दवाइयों की पैठ भी बढ़ेगी। हर्बल दवाइयों का आज विश्व में एक बड़ा मार्केट तैयार हो रहा है। भारत को इसमें भी अपनी पूर्ण क्षमताओं का इस्तेमाल करना होगा। हर्बल और मेडिसिनल प्लांट्स कमाई का बहुत बड़ा माध्यम बन रहे हैं।
मोदी ने कहा कि आयुर्वेद में तो तमाम ऐसे पौधों से दवा बनती है जिन्हें ना ज्यादा पानी चाहिए होता है और ना ही उपजाऊ जमीन। कई चिकित्सीय पौधे तो ऐसे ही उग आते हैं। लेकिन उन पौधों का असली महत्व ना पता होने की वजह से उन्हें झाड़-झंखाड़ समझकर उखाड़ दिया जाता है। जागरूकता की कमी की वजह से हो रहे इस नुकसान से कैसे बचा जाए, इस पर भी विचार किए जाने की आवश्यकता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि औषधीय पौधों की खेती से रोजगार के नए अवसर भी खुल रहे हैं। मैं चाहूंगा कि आयुष मंत्रालय कौशल विकास मंत्रालय के साथ मिलकर इस दिशा में किसानों या छात्रों के लिए कोई अल्पकालिक कोर्स भी विकसित करें। पारंपरिक खेती के साथ-साथ किसान जब खेत के किनारे की बेकार पड़ी जमीन का इस्तेमाल औषधीय पौधों के लिए करने लगेगा, तो उसकी भी आय बढ़ेगी। (भाषा)