कोरोना महामारी के संक्रमण को रोकने के लिए भारत ने भले लॉकडाउन के विकल्प को अपनाया हो लेकिन इस 40 दिन के लॉकडाउन में भारत में भूख और बेरोजगारी को लेकर जो तस्वीरें अब सामने आ रही है वो इस बात का संकेत दे रही है कि अब हालात धीरे धीरे उस ओर बढ़ रहे है जहां भूख और बेरोजगारी कोरोना से बड़ी बीमारी के रूप में हमारे सामने आ खड़ी होगी।
लॉकडाउन पार्ट-2 के पहले दो दिनों में कई ऐसी तस्वीरें सामने आई जो यह बताती है कि स्थिति अब बिगड़ने लगी है। भूख से बेहाल होने की सबसे नई तस्वीर आज मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से सामने आई है जहां राहुल नगर की झुग्गी बस्ती में रहने वाले लोग भूख के चलते सड़क पर उतर आए और जमकर प्रदर्शन किया है। प्रदर्शन में शामिल होने वाली महिला ने कहा कि आज 22-23 दिन हो गए अब बच्चों को खाने के लाले पड़ने लगे है।
भूख से बिलख रहे इन लोगों का आरोप है कि सरकार भले ही अनाज देने का दावा कर रही हो लेकिन उनको न तो राशन मिल पा रहा है और अगर मिल भी रहा है तो उसकी क्वालिटी इतनी खराब है कि उसको खा भी नहीं सकते है। प्रदर्शन करने वाले कुछ लोगों ने कहा कि एक महीने के बाद आज उनको दो- दो किलो आटा देकर खानापूर्ति कर लगी गई। इन लोगों राशन देने के नाम पर खानापूर्ति करने का आरोप भी लगाया।
इसके पहले लॉकडाउन पार्ट -2 के एलान के तुरंत बाद मुंबई के बांद्रा और गुजरात के सूरत जैसे शहरों से जो तस्वीरें सामने आई वह भी बेहद डराने वाली थी। खाने के लिए दाने –दाने के लिए मोहताज हुए लोगों का सड़क पर आना बता रहा है कि आने वाले समय स्थिति किस कदर भयावह होगी।
पिछले दिनों मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा के पांढुर्ना में गोबर के उपले जलाकर उसकी राख से पेट की भूख मिटाने की बुजुर्ग महिला की तस्वीर भी खूब चर्चा में रही। स्थानीय प्रशासन ने भले ही तस्वीर को गलत ठहरा दिया हो लेकिन जमीनी हालात क्या है इससे उसका अंदाजा लगाया जा सकता है। ।
भारत में लॉकडाउन के हर नए दिन के साथ गरीबी और भूख एक बड़ी बीमारी के रूप में सामने आ रही है। लॉकडाउन के एलान के बाद बड़ी संख्या में लोगों का शहरों से गांव की तरफ रिवर्स पलायन हुआ है। लॉकडाउन के एलान के साथ ही लाखों की संख्या में ऐसे लोग जो रोजी रोटी की तलाश में शहर गए थे वह वापस गांव की ओर पैदल ही भागे, इनमें से अनेकों ने अपने गांव पहुंचने से पहले ही सड़कों पर ही दम तोड़ दिया।
शहरों से गांव पहुंचे लोगों के खाने पीने का संकट पैदा हो गया है। लंबे समय से शहरों में रहने के चलते उनका गांव में न तो कई संपर्क बचा है और न ही रोजगार के साधन। गांव की बिगड़ी हालात को देखकर अब सरकार ने लॉकडाउन पार्ट- 2 गांवों में अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए कई तरह की छूट का एलान किया है।
लॉकडाउन पार्ट -1 के शुरुआती दिनों में सीएमआईआई ने जो आंकड़े जारी किए थे उसके मुताबिक मार्च के अंतिम और अप्रैल के शुरुआती हफ्ते में बेरोजगारी के आंकड़ों में 23 फीसदी का बड़ा उछाल आया है वह बताने के लिए काफी है कि लॉकडाउन में किस तरह लोगों ने अपने रोजगार खो दिए। एक अनुमान के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान अब तक अंसगठित क्षेत्रों में काम करने वाले लगभग 60 फीसदी लोगों ने अपने रोजगार खो दिए, ये हालात तब है कि जब अभी लॉकडाउन के 18 दिन बाकी है।
पहले से ही मंदी से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आने वाले दिन बेहद चुनौतीपूर्ण होने जा रहे है। दुनिया की कई प्रमुख रेटिंग एजेंसियों ने भारत की आर्थिक विकास दर 1.5 फीसदी से 2.8 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। पिछले दिनों आईएमएफ प्रमुख जॉर्जीवा ने मौजूदा दौर की तुलना 1930 की आर्थिक मंदी से की है।
लॉकडाउन के दौरान केंद्र और राज्य सरकारें अपने तरफ से पूरे प्रयास कर रही है कि कोई भी भूखे पेट नहीं सोए। मध्यप्रदेश जैसे राज्य में तो मुख्यमंत्री ने सीधे तौर पर कलेक्टर की जिम्मेदारी तय कर दी है। केंद्र सरकाक सरकार पीडीएस के जरिए देश के 80 करोड़ लोगों को अगले 3 महीने तक 5 किलो अनाज देने जा रही है वहीं उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकारों ने लोगों को दो से तीन महीने तक का अनाज एक साथ देने जैसे कदम उठाए है लेकिन सरकार के इस कदम से लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है।
आज जब उद्योग धंधे बंद होने से लाखों लोग बेरोजगार हो गए तब पहली जरूरत इस बात की है कि कि सरकार ऐसी रणनीति बनाए जिससे की स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन हो सके नहीं तो तीन महीने बाद हालात जस के तस ही रहेंगें।