नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कोरोनावायरस (Coronavirus) महामारी के बीच 2020 में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा में अपना आखिरी मौका गंवा चुके अभ्यर्थियों को एक और अतिरिक्त अवसर देने का अनुरोध करने वाली याचिका बुधवार को खारिज कर दी।
शीर्ष न्यायालय के इस फैसले से यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा के 10,000 से अधिक अथ्यर्थियों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति इंदू मल्होत्रा और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने सिविल सेवा परीक्षा के अभ्यर्थियों द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी।
पीठ ने स्पष्ट किया कि उसका यह फैसला केंद्र सरकार को न्यायालय के समक्ष उल्लेख की गई समस्याओं से भविष्य में निपटने में अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल करने से नहीं रोकता है। पीठ ने कहा, इसके साथ ही, याचिका खारिज की जाती है।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 142 (पूर्ण न्याय प्रदान करने के लिए शीर्ष न्यायालय को आदेश जारी करने की शक्ति) के तहत प्रदत्त अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर रहा है, क्योंकि यह एक उदाहरण स्थापित कर देगा और महामारी के दौरान हुई अन्य परीक्षाओं पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा।
पीठ ने कहा, आयोग (यूपीएससी) ने आंकड़े न्यायालय के समक्ष पेश किए हैं, उनसे स्पष्ट रूप से संकेत मिलता है कि आयोग ने कोविड-19 महामारी के दौरान 2020 में केंद्रीय सेवाओं के लिए कई चयन (अभ्यर्थियों के) किए हैं। यदि यह न्यायालय 2020 की परीक्षा में बैठे कुछ छात्रों के प्रति उदारता दिखाता है तो यह एक उदाहरण स्थापित कर देगा और इसका अन्य परीक्षाओं पर भी असर पड़ेगा, जिस कारण हम संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहते हैं।
न्यायमूर्ति रस्तोगी ने पीठ की ओर से 40 पृष्ठों का यह फैसला लिखा। हालांकि उन्होंने केंद्र सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा कोविड-19 महामारी की आड़ में जो कुछ भी दावा किया जा रहा है और अनुरोध किया गया है, वह सिविल सेवा परीक्षा 2021 में अतिरिक्त अवसर पाने का एक बहाना भर है।
केंद्र सरकार और यूपीएससी ने दलील दी कि न सिर्फ याचिकाकर्ता, बल्कि ऐसे कई अभ्यर्थी हैं, जो पिछले साल महामारी के दौरान विभिन्न परीक्षाओं में बैठे थे और हर किसी ने अवश्य ही किसी न किसी रूप में कोई न कोई समस्या या असुविधा का सामना किया होगा।
न्यायालय ने यह भी कहा, नीतिगत फैसले की न्यायिक समीक्षा और किसी खास तरीके से नीति बनाने के लिए परमादेश जारी करना बिलकुल ही अलग चीज है। शीर्ष न्यायालय ने इस बात का जिक्र किया कि चार अक्टूबर 2020 को सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा में ऐसे छात्र जो शामिल हुए थे, लेकिन उनकी उम्र सीमा 2021 में खत्म नहीं हो रही है, उनकी संख्या 3,863 है। वहीं जिनकी उम्र सीमा खत्म हो गई है, उनकी संख्या 2,236 है, जबकि जिन अभ्यर्थियों की उम्र सीमा के मुताबिक 2020 आखिरी वर्ष था और वह इस परीक्षा में शामिल नहीं हुए थे उनकी संख्या 4,237 है।
गौरतलब है कि यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में वर्ष 2011 से 2015 के बीच पाठ्यक्रम में लगातार हुए बदलाव से प्रभावित अभ्यर्थी भी अतिरिक्त क्षतिपूरक अवसर देने की केंद्र से मांग करते आ रहे हैं। न्यायालय ने कहा कि 2021 की परीक्षा में अतिरिक्त अवसर की जरूरत वाले अभ्यर्थियों की कुल संख्या 10,336 है, जो 2020 की प्रारंभिक परीक्षा का आवेदन करने वालों का 0.97 प्रतिशत है।
न्यायालय ने इस बात का भी जिक्र किया कि यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए अधिकतम उम्र सीमा 32 वर्ष है और इस परीक्षा में उन्हें छह बार बैठने की अनुमति दी गई है। आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को उम्र और अवसर में अतिरिक्त छूट प्राप्त हैं।(भाषा)