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नहीं रहे माननीय अटल बिहारी वाजपेयी : पढ़ें उनके जीवन की 25 खास बातें

हमें फॉलो करें नहीं रहे माननीय अटल बिहारी वाजपेयी : पढ़ें उनके जीवन की 25 खास बातें
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, भारतीय जनसंघ के संस्‍थापक, भारतीय जनता पार्टी के संस्‍थापक सदस्‍य, कवि और 11 भाषाओं के ज्ञाता अटल बिहारी वाजपेयी, भारतीय राजनीति में सबसे प्रतिष्ठित नेता और बातों के धनी वाजपेयी आज जिंदगी और मौत से जूझते हुए महायात्रा पर निकल पड़े हैं... 
 
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्‍म 25 दिसंबर 1924 को मध्‍यप्रदेश के ग्‍वालियर में गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनके पिता कृष्‍ण बिहारी वाजपेयी हिन्‍दी एवं ब्रज भाषा के एक कवि थे तथा गांव के स्‍कूल में शिक्षक का कार्य करते थे इसलिए वायपेयी को काव्‍य विरासत में मिली।
 
वाजपेयी ने प्रारंभिक शिक्षा ग्‍वालियर के सरस्‍वती शिशु मंदिर से पूरी की। इसके बाद इन्‍होंने ग्‍वालियर के विक्‍टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्‍मीबाई कॉलेज) से हिन्‍दी, अंग्रेजी और संस्‍कृत विषय में डिस्‍टिंगशन के साथ स्नातक की पढ़ाई पूरी की। कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्‍त्र में प्रथम स्‍थान के साथ एमए की उपाधि प्राप्‍त की।
 
इसके बाद वाजयेपी आरएसएस के पूर्णरूपेण सदस्‍य बन गए। इसी दौरान उन्‍होंने लॉ की पढ़ाई शुरू की, मगर बीच में ही कोर्स को छोड़ पत्रकारिता में आ गए। पत्रकारिता का चुनाव करना उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी, क्‍योंकि उस समय पूरे देश में आजादी की लहर चल रही थी।
 
उन्‍होंने 'राष्‍ट्रधर्म' (मासिक हिन्‍दी), 'पाञ्चजन्‍य' (साप्‍ताहिक हिन्‍दी), 'स्‍वदेश' (रोजाना) तथा 'वीर अर्जुन' (रोजाना) पत्रिका का संपादन किया। संघ के अन्‍य सदस्‍यों की तरह वाजपेयी ने कभी भी शादी नहीं करने का फैसला लिया, जो आज तक कायम है।
 
वाजयेपी 1942 में राजनीति में उस समय आए, जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके भाई 23 दिनों के लिए जेल गए। 1951 में वाजपेयी ने आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी बनाई जिसमें श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेता शामिल हुए।
 
1954 में कश्‍मीर दौरे पर वाजपेयी के साथ गए मुखर्जी की उस समय मौत हो गई, जबदूसरे राज्‍य से कश्‍मीर घूमने आए एक युवक की गलत इलाज के बाद मौत हो गई जिसका वे भूख हड़ताल कर विरोध जता रहे थे। मुखर्जी की मौत से वाजपेयी को गहरा झटका लगा।
 
1957 में वाजपेयी पहली बार बलरामपुर संसदीय सीट से चुनाव जीतकर राज्‍यसभा के सदस्‍य बने। वाजपेयी के असाधारण व्‍यक्तित्‍व को देखकर उस समय के वर्तमान प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि आने वाले दिनों में यह व्यक्ति जरूर प्रधानमंत्री बनेगा। 1968 में वाजपेयी राष्‍ट्रीय जनसंघ के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष बने। उस समय पार्टी के साथ नानाजी देशमुख, बलराज मधोक तथा लालकृष्‍ण आडवाणी जैसे नेता थे। 
 
1975-77 में आपातकाल के दौरान वाजपेयी अन्‍य नेताओं के साथ उस समय गिरफ्तार कर लिए गए, जब वे आपातकाल के लिए इंदिरा गांधी की आलोचना कर रहे थे। 1977 में जनता पार्टी के महानायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्‍व में आपातकाल का विरोध हो रहा था।
 
जेल से छूटने के बाद वाजयेपी ने जनसंघ को जनता पार्टी में विलय कर दिया। 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की जीत हुई थी और वे मोरारजी भाई देसाई के नेतृत्‍व वाली सरकार में बाहरी मामलों के मंत्री बने।
 
विदेश मंत्री बनने के बाद वाजपेयी पहले ऐसे नेता है जिन्‍होंने संयुक्‍त राष्‍ट्र महासंघ को हिन्‍दी भाषा में संबोधित किया था। जनता पार्टी की सरकार 1979 में गिर गई, लेकिन उस समय तक वाजपेयी ने अपने आपकी एक अनुभवी नेता व वक्‍ता के रूप में पहचान बना ली थी। इसके बाद जनता पार्टी अंतरकलह के कारण बिखर गई।
 
1980 में वाजपेयी के साथ पुराने दोस्‍त भी जनता पार्टी छोड़ भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गए। वाजपेयी भाजपा के पहले राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष बने। इसके बाद वे कांग्रेस सरकार के सबसे बड़े आलोचक बनकर उभरे।
 
भाजपा ने पंजाब में हुए सिखों दंगों को सेना द्वारा खत्‍म करने की काफी आलोचना की और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर देश में सबसे खराब नेतृत्‍व तथा उसमें भ्रष्‍टाचार सहित इस दंगे का भी आरोप लगाते हुए उनसे तुरंत इस्‍तीफा देने का दबाव डाला।
 
भाजपा ने 1984 में सिखों के विरुद्ध 'ऑपरेशन ब्‍लू स्‍टार' का समर्थन करने से इंकार कर दिया और इस ऑपरेशन का पूरी तरह विरोध किया। उस समय सिख भागकर दिल्‍ली आ गए। उसी दौरान इंदिरा गांधी के दो सिख गार्डों ने उनकी गोली मारकर हत्‍या कर दी। 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी को दो सीटों को नुकसान हुआ और वाजपेयी संसद में विपक्ष के नेता बने।
 
भाजपा विश्‍व हिन्‍दू परिषद तथा आरएसएस द्वारा चलाए जा रहे राम जन्‍मभूमि आंदोलन की राजनीतिक सहयोगी पार्टी बन गई। यह आंदोलन राम की नगरी अयोध्‍या में भव्‍य राम मंदिर बनाने की मांग कर रहा था।
 
1994 में कर्नाटक तथा 1995 में गुजरात और महाराष्‍ट्र में पार्टी जब चुनाव जीत गई उसके बाद पार्टी अध्‍यक्ष लालकृष्‍ण आडवाणी ने वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का उम्‍मीदवार घोषित कर दिया। 
 
वाजपेयी 1996 से लेकर 2004 तक 3 बार प्रधानमंत्री बने। 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी देश्‍ा की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने। उनकी सरकार 13 दिनों में संसद में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं करने के कारण गिर गई। 1998 के दुबारा लोकसभा चुनाव में पार्टी को ज्‍यादा सीटें मिलीं और कुछ अन्‍य पार्टियों के सहयोग से वाजपेयी ने एनडीए का गठन किया और वे फिर प्रधानमंत्री बन गए। 
 
यह सरकार 13 महीनों तक चली, क्‍योंकि बीच में ही जयललिता की पार्टी ने सरकार का साथ छोड़ दिया था और सरकार गिर गई। 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी फिर से सत्‍ता में आई और इस बार वाजपेयी ने अपना कार्यकाल पूरा किया।
 
वाजपेयी के शासनकाल में कई महत्‍वपूर्ण घटनाएं घटीं जिसमें कारगिल युद्ध, दिल्‍ली-लाहौर बस सेवा शुरू करना, संसद पर आतंकी हमला, गुजरात दंगे आदि प्रमुख हैं।
 
वाजपेयी ने अपने दूसरे कार्यकाल में अंतरराष्‍ट्रीय परमाणु संगठन की रोक के बावजूद राजस्‍थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण किया जिसका पाकिस्‍तान सहित कई देशों में विरोध किया गया और रूस और फ्रांस ने भारत का समर्थन किया।
 
इसके बाद 1998 के अंत तथा 1999 की शुरुआत में वाजपेयी पाकिस्‍तान के साथ शांति वार्ता करने लिए पाकिस्‍तान गए और कश्‍मीर सहित कई मसले सुलझाकर कई समझौतों पर हस्‍ताक्षर किया। उसी दौरान वाजपेयी ने दिल्‍ली-लाहौर बस सेवा शुरू की।
 
भारत के द्वारा परमाणु परीक्षण से नाराज पाकिस्‍तान ने भारत पर हमला कर दिया। भारत ने उसका मुहतोड़ जवाब देकर उसे उसके घर में घुसकर मार भगाया। इस युद्ध में भारतीय विजय ऑपरेशन वाजपेयी के नेतृत्‍व में चल रहा था।
 
इस दौरान 500 से ज्‍यादा भारतीय सैनिक तथा 1500 से ज्‍यादा पाकिस्‍तानी सैनिक मारे गए थे। 2001 में पाकिस्‍तानी आतंकवादियों ने संसद पर हमला कर दिया था जिसे भारतीय सैनिकों ने मार गिराया था।
 
2000 में वाजपेयी ने नेशनल हाईवे डेवलपमेंट प्रोजेक्‍ट के अंदर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना शुरू की। 2002 में हुए गुजरात दंगे के छींटें भी वाजपेयी पर पड़े। 2005 में वाजपेयी ने राजनीति से संन्‍यास ले लिया। उसी समय राज्‍यसभा को संबोधित करते समय वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वाजपेयी को वर्तमान राजनीति का भीष्‍म पितामह कहा था जिसे पूरी दुनिया ने सराहा था। 
 
वाजपेयी के पुराने दोस्‍तों के अनुसार वाजपेयी ने एक बेटी गोद ली थी जिसका नाम नमिता है और उसने भारतीय संगीत और नृत्‍य भी सीखा है। 1992 में वाजपेयी को पद्मविभूषण, 1993 में कानपुर विश्‍वविद्यालय से डीलिट की उपाधि, 1994 में लोकमान्‍य तिलक अवॉर्ड, 1994 में बेस्‍ट संसद का अवॉर्ड, 1994 में भारतरत्‍न व पंडित गोविंद वल्‍लभ पंत अवॉर्ड से सम्‍मानित किया जा चुका है।
 
वाजपेयी के 2003 में 'ट्वेंटी-वन कविताएं', 1999 में 'क्‍या खोया क्‍या पाया', 1995 में 'मेरी इक्‍यावन कविताएं' (हिन्‍दी), 1997 में 'श्रेष्‍ठ कविताएं' तथा 1999 और 2002 में जगजीत सिंह के साथ दो एलबम 'नई दिशा' और 'संवेदना' शामिल हैं।

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