नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कारोबारी विजय माल्या को निर्देश दिया कि वह चार सप्ताह के भीतर भारत के बाहर की अपनी सारी संपत्ति का पूरा विवरण पेश करें। न्यायालय ने कहा कि पहली नजर में उसका यह मानना है कि उन्होंने उचित तरीके से अपनी संपत्ति का विवरण नहीं दिया है।
न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की पीठ ने चार करोड़ अमेरिकी डॉलर की रकम का विवरण नहीं देने के लिए भी माल्या को आड़े हाथ लिया। यह रकम उन्हें इस साल फरवरी में ब्रिटिश फर्म डियाजियो कंपनी से मिली थी।
खंडपीठ ने कहा, पहली नजर में हमारा मानना है कि हमारे सात अप्रैल, 2016 के आदेश के संदर्भ में रिपोर्ट में सही जानकारी नहीं दी गई है। इस आदेश में उन्हें सारी संपत्ति का विवरण देने और विशेष रूप से चार करोड़ अमेरिकी डॉलर, यह कब मिले और इसका आज तक कैसे इस्तेमाल हुआ, के बारे में जानकारी देने का निर्देश दिया गया था।
न्यायालय ने माल्या से यह भी कहा कि वह चार सप्ताह के भीतर विदेश में अपनी सारी संपत्ति की जानकारी दें। माल्या ने इससे पहले न्यायालय भारत में अपनी संपत्ति के विवरण से अवगत कराया था। न्यायालय ने इसके साथ इस मामले की सुनवाई 24 नवबंर के लिए स्थगित कर दी।
भारतीय स्टेट बैंक सहित बैंकों के कंसोर्टियम ने 29 अगस्त को न्यायालय को सूचित किया था कि माल्या ने जानबूझकर चार करोड़ अमेरिकी डॉलर, जो उन्हें ब्रिटिश कंपनी से 25 फरवरी को मिले थे, सहित अपनी सारी संपत्ति की जानकारी नहीं दी है।
शीर्ष अदालत ने 25 जुलाई को अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी की दलीलों का संज्ञान लेते हुए बैंकों की याचिका पर विजय माल्या को नोटिस जारी किया था। रोहतगी ने कहा था कि माल्या ने सील बंद लिफाफे में अपनी संपत्ति का गलत विवरण शीर्ष अदालत को दिया है।
अटार्नी जनरल ने यह भी आरोप लगाया था कि 2500 करोड़ रुपए के सौदे सहित बहुत सारी जानकारी छुपाई गई है जो न्यायालय की अवमानना है। उन्होंने यह भी कहा था कि माल्या 9400 करोड रुपए के बकाया कर्ज की राशि में से पर्याप्त धनराशि जमा कराने के लिए राजी नहीं हुए है।
माल्या का तर्क है कि बैंकों को उनकी विदेशों की चल और अचल संपत्ति का विवरण जानने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि 1988 से ही वह प्रवासी भारतीय हैं। (भाषा)