-उमेश चतुर्वेदी
शुरुआत में कुछ कोशिशें अजूबा लगती हैं, इसलिए कुछ लोगों की हंसी का पात्र भी बनती हैं। अगर कोशिश तकनीक की दुनिया से जुड़ी हो तो उस पर सवालों के तीरों की गुंजाइश कुछ ज्यादा ही बन जाती है। अंग्रेजी में जिसे 'इफ' और 'बट' कहते हैं, ऐसे प्रश्नों की झड़ी लगनी स्वाभाविक है। बीसवीं सदी के आखिरी दिनों में शब्दों की दुनिया को मिलने जा रही तकनीकी कोशिश के साथ भी ऐसा हो रहा था।
वर्चुअल दुनिया को मौजूदा रूप में कम, डॉट कॉम कंपनी के रूप में ज्यादा जाना रहा था। वजह यह कि वर्चुअल दुनिया ज्यादातर डॉट कॉम के ही नाम से सामने आ रही थी। एक बात और, भारतीय परिप्रेक्ष्य ऐसा है कि यहां तकनीक की जब भी बात होती है, उसे अंग्रेजी से ही जोड़कर देखा और पहचाना जाता रहा है। लब्बोलुआब यह कि डॉट कॉम की वर्चुअल दुनिया को भी अंग्रेजी से ही जोड़ा और पहचाना जा रहा था। बेशक चीन और जापान जैसे देशों ने अपनी तकनीकी क्रांति के जरिए विकास की जो गाथा लिखी है, उसमें उनकी अपनी भाषाओं का ही योगदान ज्यादा रहा है। अंग्रेजी वहां सहायक की भूमिका में रही है।
लैटिन अमेरिकी देशों की सूचनाएं हमारे यहां कम ही आती हैं, वहां की तकनीकी कहानियां भी अंग्रेजी में या अंग्रेजी के सहयोग से नहीं लिखी गई हैं, बल्कि वहां की स्थानीय भाषाएं या स्पेनिश ने यह भूमिका निभाई है। रूस की सामरिक ताकत के पीछे अंग्रेजी नहीं है, बल्कि जिन तकनीकों के दम पर उसने अमेरिका जैसी नामवर हस्ती तक को सामरिक तौर पर संतुलित बनाए रखा है, उसमें उसकी अपनी रूसी भाषा का बड़ा योगदान है।
बहरहाल अंग्रेजी दां माहौल में पिछली सदी के आखिरी दिनों में एक मध्य भारत के एक बड़े मीडिया समूह ने भारतीय भाषाओं में तकनीकी क्रांति करने और वर्चुअल यानी इंटरनेट की दुनिया में पांव जमाने की सोची। उसकी इस सोच को व्यावहारिकता के धरातल पर उतारने की कठिनाइयां तो थीं, इसके बावजूद भारतीय भाषाओं की सामग्री को इंटरनेट का मंच देने की क्रांतिकारी सोच को लेकर मध्य भारत के प्रमुख हिंदी अखबार 'नईदुनिया' ने सोची और इस तरह 'वेबदुनिया' का जन्म हुआ।
तब 'वेबदुनिया' के पास कंटेंट की पूंजी के नाम पर 'नईदुनिया' का गौरवशाली इतिहास था, जिसमें मध्य भारत की राजनीति, संस्कृति और इतिहास की प्रखर धारा समाहित थी। 'नईदुनिया' की ख्याति ऐसी थी कि दिल्ली के राष्ट्रीय कहे जाने वाले अखबार भी उसके जैसा बनने की चाहत रखते थे। ऐसी विरासत वाले समूह के लिए इंटरनेट की दुनिया में उतरना आसान भी था तो कठिन भी। कठिन इस प्रसंग में कि अगर वह वेंचर नहीं चला तो अखबारी प्रकाशन की गौरवशाली विरासत को भी चोट पहुंचेगी।
वैसे इंटरनेट की दुनिया में पैसा आज भी नहीं है, लेकिन अठारह साल पहले तो विज्ञापनों की चुनौती आज की तुलना में और भी ज्यादा थी। फिर भी 'वेबदुनिया' इंटरनेट की दुनिया में अपने समृद्ध कंटेंट की बदौलत आया और देखते ही देखते नई पीढ़ी के उन पाठकों का चहेता बन गया, जो अंग्रेजी की बजाय अपनी ही बोली-बानी, भाषा में स्तरीय कंटेंट पढ़ना चाहते थे।
आज तो हालात बदल चुके हैं। इंटरनेट की दुनिया में भारतीय भाषाओं और अपनी हिंदी में भी कई पोर्टल आ चुके हैं। तमाम अखबारों ने भी अपने वेब संस्करण शुरू कर दिए हैं। लेकिन उनके वेब संस्करण और अखबारी प्रतिष्ठा में खासा अंतर देखने को मिलता है। जिस तरह खबरिया चैनलों को टीआरपी हासिल करने का रोग लगा है, कुछ वैसा ही रोग इन दिनों तमाम भाषाई वेबसाइटों को लग चुका है।
जिस तरह टेलीविजन की पत्रकारिता में सेक्स, सिनेमा और क्राइम की सतही एवं सनसनीखेज सामग्री पेश की जाती है, उसी तरह हिट पाने के लिए आज प्रतिष्ठित अखबारों तक की वेबसाइटें सेक्स की सनसनीखेज जानकारी या सामग्री मुहैया कराने से नहीं हिचक रहीं। ऐसे माहौल में भी 'वेबदुनिया' अगर खड़ा है और पाठकों की पूंजी हासिल कर सका है तो उसकी बड़ी वजह उसकी स्तरीय सामग्री है, जिसमें सनसनी ना के बराबर है।
'वेबदुनिया' ने साबित किया है कि स्तरीय सामग्री के दम पर भी पाठकों की पूंजी हासिल की जा सकती है, पाठकों का प्यार और भरोसा जीता जा सकता है। 'वेबदुनिया' ने हाल के दिनों में कुछ बड़े पत्रकारीय कारनामे भी किए हैं। उनमें से एक कारनामा उत्तर प्रदेश के चुनावों का सटीक आकलन भी है। जब पूरी दुनिया का मीडिया उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन की जीत की उम्मीद जता रहा था, 'वेबदुनिया' पहला और शायद अकेला मंच था, जो अपनी जमीनी रिपोर्टिंग और आकलन के दम पर बता रहा था कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की लहर चल रही है। चुनाव नतीजों ने इसे साबित भी किया।
'वेबदुनिया' अठारह साल का हो गया। उसकी ताकत उसकी सामग्री और उस सामग्री के प्रति पाठकों का स्नेह है। उम्मीद की जानी चाहिए कि 'वेबदुनिया' सामग्री के दम पर भारतीय भाषाओं को पाठकों की सुरुचि को संस्कारित करने और उनका मानसिक स्तर बनाए रखते हुए और नए प्रतिमान हासिल करेगा। (लेखक आकाशवाणी के मीडिया कंसल्टेंट हैं।)