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अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में क्या बदला? जानिए क्या कहते हैं लोग...

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सुरेश एस डुग्गर

, गुरुवार, 5 अगस्त 2021 (12:17 IST)
जम्मू। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद भी बहुत से लोगों के लिए बहुत कुछ नहीं बदला है। जमीनी हकीकत वही है जो पहले थी, खासकर जम्मू संभाग के लोगों के लिए। उल्लेखनीय है कि 2 साल पहले यानी 5 अगस्त 2019 को संसद ने जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद 370 को हटा दिया था। 
 
जमीन स्तर पर बहुत काम करना बाकी : यह सच है कि जमीनी स्तर पर जो सोच बनी थी, उसे अभी गति नहीं मिल पाई है। देश में एक कानून, एक संविधान का वादा किया गया था, लेकिन जम्मू-कश्मीर में अभी भी कई नीतियां देश से अलग हैं। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सपने को जम्मू-कश्मीर में पूरी तरह से अमलीजामा पहनाया जाना चाहिए। चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री जम्मू के पदाधिकारियों का कहना था कि प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा देकर राजनीतिक सरकार को बहाल किया जाना चाहिए। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद बीते दो साल में प्रदेश में बने हालात पर प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं।
 
डोमिसाइल प्रमाण पत्र जारी हुए, लेकिन... : बाल्मीकि समाज को ही लें, उन पर अब बाहरी का ठप्पा तो जरूर नहीं रहा, लेकिन दो सालों में उन्हें कोई लाभ नहीं मिला। दो साल में लोगों के कामकाज निपटाने के लिए सिर्फ डोमिसाइल प्रमाण पत्र ही जारी हुए। विभागों में कार्यरत सफाई कर्मचारियों को अब तक पदोन्नति भी नहीं मिल पाई। केन्द्र शासित प्रदेश (UT) बनने से पहले भी हालात ऐसे ही थे। अनुच्छेद 370 हटने और यूटी बनने के बाद बेरोजगार युवाओं को नौकरी मिलने का रास्ता साफ हुआ, लेकिन डोमिसाइल बनने के बाद भी युवाओं को नौकरी नहीं मिल पाई।
 
फेडरेशन ऑफ इंडस्ट्रीज जम्मू के चेयरमैन ललित महाजन ने कहा कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद लखनपुर टोल टैक्स हटने से औद्योगिक प्रक्रिया को गति मिली है। औद्योगिक क्षेत्र में भुगतान की प्रक्रिया में तेजी लाई गई है। विभागों में अधिकांश आइटमों को ऑनलाइन कर दिया गया है। पारदर्शिता बढ़ी है। लेकिन औद्योगिक क्षेत्र को गति देने के लिए और प्रयास किए जाने चाहिए।
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नई उद्योग नीति को उम्मीद के अनुरूप गति नहीं : चैंबर्स ऑफ ट्रेडर्स फेडरेशन के प्रधान नीरज आनंद ने कहा कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जो सोचा था उसे अभी फिलहाल जमीनी स्तर पर गति नहीं मिल पाई है। नई औद्योगिक नीति के तहत अभी नए उद्योग कागजों में ही हैं। इसे जमीनी स्तर पर जल्द अमल में लाया जाना चाहिए, ताकि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के साधन सृजित हो सकें। सरकार को लोगों में विकास को लेकर विश्वास बहाली के माहौल को मजबूत बनाना चाहिए। कारोबार के लिहाज से भी अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
 
चैंबर प्रधान गुप्ता का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में आज भी कई जातियों को जमीन खरीदने का हक नहीं मिला है। देश के अन्य हिस्सों में बार लाइसेंस के लिए एकमुश्त एनओसी जारी की जाती है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में नई व्यवस्था में हर साल एनओसी लेना अनिवार्य है, जिससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा। इसी तरह देश के अन्य हिस्सों के वाहनों की जम्मू कश्मीर में पुन: पंजीकरण की नई व्यवस्था की गई है, जबकि भारत के अन्य हिस्सों में ऐसी व्यवस्था नहीं है। सरकार को जमीनी स्तर पर ऐसी नीतियों में सुधार लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ब्यूरोक्रेसी में आम लोगों की सुनवाई नहीं हो रही है। इसके लिए जम्मू कश्मीर में राजनीतिक सरकार को बहाल किया जाना चाहिए।
 
भूमिहीनों की समस्या बरकरार : इसी तरह भूमिहीन लोगों को भूमि उनके नाम पर होनी थी। इस पर कई बार मांग भी की गई, मगर भूमि नाम करने की कवायद सिरे नहीं चढ़ पाई। बाल्मीकि समाज और सफाई से जुड़े लोग कई बार मांग कर चुके हैं। सिविक सफाई कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष रिंकू गिल ने कहा कि यूटी बनने से पहले जो हालात थे। आज भी सफाई कर्मचारी वैसे ही हैं। बस नाम यूटी हुआ है। उन्होंने कहा कि पदोन्नति के नाम पर कुछ नहीं हुआ। अभी तक विभागों में दो साल में लोगों को पदोन्नति नहीं दी गई है।
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बाल्मीकि समुदाय से भरत हंस ने कहा कि बेरोजगारी खत्म होने और जमीन मिलने के नाम पर कुछ नहीं हुआ। लोग आज भी क्वार्टरों पर रहने को मजबूर हैं। सुरेश कुमार और संतराम ने कहा कि यूटी बनने के बाद उम्मीद थी कि कुछ नया होगा। मगर, डोमिसाइल की शर्त और अब तक न तो नौकरी और न ही पदोन्नति मिली। यह बाल्मीकि समुदाय के साथ अन्याय है। यूटी बनने के बाद तमाम लाभ लोगों को मिलने चाहिए।

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