कोलकाता। गृहमंत्री अमित शाह ने पश्चिम बंगाल में गुरुवार को ऐलान किया कि TMC भले ही अफवाह फैला रही है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) लागू नहीं होगा लेकिन इसे जल्द ही देश में लागू कर दिया जाएगा। उन्होंने कोरोनावायरस समाप्त होने के बाद देश में CAA लागू करने का वादा किया।
उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी चाहती है कि घुसपैठ जारी रहे लेकिन सीएए वास्तविकता था, है और रहेगा। वे घुसपैठ के जरिए यहां की जनसांख्यिकी बदलना चाहती है मगर हम ऐसा होने नहीं देंगे।
हालांकि ममता ने पलटवार करते हुए अमित शाह को आग से नहीं खेलने की नसीहत दी। उन्होंने कहा कि CAA रद्द हो गया है। पार्टी की अंदरूनी कलह को मिटाने के लिए गृहमंत्री इस तरह की बात कर रहे हैं।
क्या है नागरिकता संशोधन अधिनियम : CAA कानून में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के प्रवासियों के लिए नागरिकता कानून के नियम आसान बनाए गए। इससे पहले नागरिकता के लिए 11 साल भारत में रहना जरूरी था, इस समय को घटाकर 1 से 6 साल कर दिया गया।
नागरिकता बिल में इस संशोधन से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिन्दुओं के साथ ही सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो गया। उचित दस्तावेज़ नहीं होने पर भी अल्पसंख्यक शरणार्थियों को नागरिकता मिल सकेगी। 2019 में देश में CAA कानून तो बन गया लेकिन देशभर में इसका जमकर विरोध हुआ और इसे लागू नहीं किया जा सका।
कौन है अवैध प्रवासी? : नागरिकता कानून, 1955 के मुताबिक के तहत उन लोगों को अवैध प्रवासी माना गया है जो भारत में वैध यात्रा दस्तावेज जैसे पासपोर्ट और वीजा के बगैर घुस आए हों या फिर वैध दस्तावेज के साथ तो भारत में आए हों लेकिन उसमें उल्लिखित अवधि से ज्यादा समय तक यहां रुक जाएं।
अवैध प्रवासियों को भारत की नागरिकता नहीं मिल सकती है। अवैध प्रवासियों को या तो जेल में रखा जा सकता है या फिर विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत वापस उनके देश भेजा जा सकता है। केंद्र सरकार ने साल 2015 और 2016 में उपरोक्त 1946 और 1920 के कानूनों में संशोधन करके अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को छूट दे दी है।
क्यों हो रहा है विरोध : इसे सरकार की ओर से अवैध प्रवासियों की परिभाषा बदलने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। गैर मुस्लिम 6 धर्म के लोगों को नागरिकता प्रदान करने के प्रावधान को आधार बना कांग्रेस और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट धार्मिक आधार पर नागरिकता प्रदान किए जाने का विरोध कर रहे हैं। नागरिकता अधिनियम में इस संशोधन को 1985 के असम करार का उल्लंघन भी बताया जा रहा है, जिसमें वर्ष 1971 के बाद बांग्लादेश से आए सभी धर्मों के नागरिकों को निर्वासित करने की बात थी।