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क्या है सिंधु जल समझौता और क्यों मचा है इस पर बवाल?

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, शनिवार, 4 फ़रवरी 2023 (14:27 IST)
-अदिति गहलोत 
What is Indus Water Treaty: भारत सरकार की ओर से हाल ही में पाकिस्तान सरकार को 1960 में हुए सिंधु जल समझौते (IWT) में संशोधन करने के लिए नोटिस भेजा गया। सरकार ने कहा है कि पाक की कार्रवाइयों ने सिंधु संधि के प्रावधानों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
 
दरअसल, भारत सरकार ने यह नोटिस जम्मू कश्मीर में भारत के दो पनबिजली संयंत्रों- किशनगंगा (330 मेगावाट) और रातले (850 मेगावाट) पर दोनों देशों की असहमति के बाद आया है। आखिर क्या है यह सिंधु जल समझौता और क्यों दोनों देशों के बीच बन रहा है विवाद का कारण? 
 
सिंधु जल समझौता क्या है : सिंधु जल समझौता (Indus Water Treaty) 19 सितंबर 1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के जनरल अयूब खान के बीच कराची में हुआ था। इस समझौते में वर्ल्ड बैंक ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी। 
 
इस समझौते के तहत दोनो देशों (भारत और पाकिस्तान) में सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों (झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज) के पानी का बंटवारा किया गया था। इस संधि के तहत भारत को सिंधु तथा उसकी सहायक नदियों से 19.5 प्रतिशत पानी मिलता है, जबकि पाकिस्तान को 80 फीसदी पानी मिलता है। भारत अपने हिस्से में से भी लगभग 90 फीसदी पानी का उपयोग करता है।
 
इस संधि के तहत पश्चिमी नदियों- सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी पाकिस्तान का तथा पूर्वी नदियों- रावी, ब्यास और सतलुज के पानी पर भारत का अधिकार है। इस संधि पर अमल करने के लिए इंडस कमीशन (सिंधु आयोग) का गठन किया। हर वर्ष इस कमीशन की बैठक भी होती है। इस संधि के चलते भारत अपने पड़ोसी पाकिस्तान को कुल जल का 80.52% यानी 167.2 अरब घन मीटर पानी सालाना देता है। इस संधि को दुनिया की सबसे उदार संधि भी कहा जाता है। पाकिस्तान के विरोध के चलते 2016 में इसका काम रोक दिया गया था। 
 
यह है विवाद का कारण : जम्मू कश्मीर में 2007 में शुरू हुई किशनगंगा हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना के तहत रन ऑफ द रिवर बांध का निर्माण किया गया है। पाकिस्तान इस आधार पर इस परियोजना का विरोध कर रहा है कि सिंधु जल समझौते के तहत भारत को नदी का पानी डाइवर्ट करने की अनुमति नहीं है।
 
दरअसल, यह बांध किशनगंगा नदी का पानी झेलम नदी पर बने पॉवर प्लांट की ओर डाइवर्ट करता है। इसका उपयोग सिंचाई के साथ ही बिजली उत्पादन के लिए किया जाएगा। यह प्लांट करीब 330 MW बिजली पैदा कर सकता है।
 
क्या है भारत के नोटिस का मकसद : दरअसल, पाकिस्तान लगातार सिंधु जल समझौते के प्रावधानों का उल्लंघन कर रहा है। इतना ही नहीं भारत की ओर से लगातार प्रयास के बाद भी पाक ने 2017 से 2022 तक स्थायी सिंधु आयोग की 5 बैठकों में इस गंभीर मुद्दे पर चर्चा करने से ही इंकार कर दिया।
 
2015 में भी इस परियोजना पर तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिए पाकिस्तान ने एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति की मांग की थी। हालांकि बाद में पाकिस्तान ने अपने अनुरोध को वापस ले लिया और इस मामले में एक मध्यस्थ अदालत की मांग कर डाली। पाकिस्तान की यह कार्रवाई संधि के अनुच्छेद IX का अल्लंघन है।
 
गडकरी के ट्‍वीट से गरमाया था मामला : यह मामला उस समय और गरमा गया था जब पुलवामा हमले के बाद केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने ट्वीट कर कहा था कि भारत सरकार ने पाकिस्तान जाने वाले अपने हिस्से के पानी को रोकने का फैसला किया है। हम पूर्वी नदियों के पानी को डायवर्ट कर जम्मू-कश्मीर और पंजाब में अपने लोगों को इसकी आपूर्ति करेंगे।

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