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क्या है ‘सरोगेट विज्ञापन’ जिसके बाद अमिताभ बच्‍चन आए विवादों में, क्‍यों जरूरत पड़ती है इस विज्ञापन की, क्‍या है कानून

हमें फॉलो करें क्या है ‘सरोगेट विज्ञापन’ जिसके बाद अमिताभ बच्‍चन आए विवादों में, क्‍यों जरूरत पड़ती है इस विज्ञापन की, क्‍या है कानून
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नवीन रांगियाल

पिछले दिनों अमिताभ बच्‍चन द्वारा किए गए एक पान मसाला के विज्ञापन को लेकर काफी बवाल मचा। सोशल मीडि‍या में लोगों ने अमिताभ बच्‍चन को कहा कि आपकी क्‍या मजबूरी थी कि पान मसाला का विज्ञापन करना पड़ा।

सोशल मीडि‍या और लोगों की प्रतिक्रि‍या के बाद बॉलीवुड सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने पान मसाला ब्रांड से अपना कॉन्ट्रैक्ट खत्म कर दिया। अमिताभ के ऑफिस की तरफ से एक बयान जारी किया गया और कहा गया कि जब वे इस ब्रांड से एसोसिएट हुए तब उन्हें यह पता नहीं था कि यह सरोगेट ऐडवरटाइजिंग है। लेकिन अब वे इसे नहीं कर रहे हैं और इसमें ली गई अपनी प्रमोशन फीस भी ब्रांड को वापस लौटा दी गई है।

दरअसल, विज्ञापन करने की वजह से विवाद यहां तक बढ़ा गया था कि नेशनल एंटी- टोबैको ऑर्गेनाइजेशन (NGO) ने भी हस्तक्षेप किया था। एनजीओ ने अमि‍ताभ को लेटर भेजकर विज्ञापन के इस कैंपेन को छोड़ने की मांग भी की थी।

ऐसे में सवाल यह है कि‍ आखि‍र सरोगेट विज्ञापन क्‍या होता है, और यह किस तरह से काम करता है। अमिताभ ने यह क‍हते हुए यह कॉन्‍ट्रैक्‍ट खत्‍म किया था कि उन्‍हें नहीं पता था कि यह एक सरोगेट ऐडवरटाइजिंग है। आइए जानते हैं क्‍या होता है सेरोगेट विज्ञापन और कब इसकी जरूरत पड़ती है।

ऐसे समझे क्‍या है सेरोगेट विज्ञापन
हम अक्‍सर टीवी पर ऐसे विज्ञापन देखते हैं, जो होता तो किसी खास प्रोडक्‍ट के लिए लेकिन उसकी जगह पर कोई दूसरा ही प्रोडक्‍ट दिखाया जाता है।

जैसे आपने किसी शराब, तंबाकू या ऐसे ही किसी प्रोडक्ट का विज्ञापन देखा होगा, जिसमें प्रोडक्ट के बारे में सीधे सीधे नहीं बताते हुए उसे किसी दूसरे ऐसे ही प्रोडक्ट या पूरी तरह अलग प्रोडक्ट के तौर पर दिखाया जाता है।

मसलन, शराब को अक्सर म्यूजिक सीडी या किसी सोडे के प्रोडक्‍ट के तौर पर दिखाया जाता है। कहने का मतलब यह है कि जो उत्‍पाद प्रतिबंधि‍त हैं उसे किसी दूसरे प्रोडक्‍ट का सहारा लेकर दिखाया जाता है, क्‍योंकि सीधे तौर पर शराब की बोतल नहीं दिखाई जा सकती, इसलिए उसकी जगह सोडे की बोतल दिखाई जाती है, लेकिन शराब पीने वाले और तंबाखू खाने वाले समझ जाते हैं कि चीज का विज्ञापन है। ऐसे विज्ञापनों को ही सेरोगेट विज्ञापन कहा जाता है।

दरअसल, कई ऐसे प्रोडक्ट होते हैं, जिनकी डायरेक्ट ऐडवर्टाइजमेंट पर प्रतिबंध होता है। इनमें वे प्रोडक्‍ट शामिल हैं, जो स्‍वास्‍थ्‍य के लिए हानिकारक है। आमतौर पर इनमें शराब, सिगरेट और पान मसाला जैसे प्रोडक्ट हैं। ऐसे में इन प्रोडक्ट के विज्ञापन के लिए सरोगेट विज्ञापनों का सहारा लिया जाता है। अमिताभ इसी विज्ञापन का‍ जिक्र कर रहे थे।
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क्‍या होता है सरोगेट विज्ञापन’?
  • टीवी पर शराब, तंबाकू जैसे उत्‍पादों के विज्ञापन को सीधे तौर पर नहीं दिखाया जाता है
  • ऐसे प्रोडक्‍ट्स के विज्ञापन के लिए दूसरे प्रोडक्‍ट का सहारा लिया जाता है
  • जैसे शराब के विज्ञापन के लिए सोडे की बोतल का इस्‍तेमाल किया जाता है
  • ऐसे ही विज्ञापनों को सेरोगेट ऐडवर्टाइजिंग कहा जाता है
  • प्रतिबंधि‍त विज्ञापनों को दिखाने के लिए होता है सेरोगेट का इस्‍तेमाल
क्‍या है कानून?
भारत में एक कानून के जरिए सिगरेट और तंबाकू प्रोडक्ट के सीधे विज्ञापन नहीं किए जा सकते। यह प्रतिबंधि‍त है। इसके लिए 2003 में सिगरेट और दूसरे तंबाखू उत्‍पाद एक्ट पास किया गया था। इसे COTPA भी कहते हैं। तंबाकू और सिगरेट से जुड़े विज्ञापन सीधे तौर पर करने पर 2 से 5 साल तक की सजा और 1 हजार से 5 हजार तक के जुर्माना का नियम है।

विज्ञापन विवाद का इतिहास
2016 में एक पान मसाला ब्रांड के विज्ञापन में जेम्स बॉन्ड का किरदार निभा चुके एक्टर पियर्स ब्रोसनन ने काम किया था। विवाद होने पर उन्‍हें नोटिस भेजा गया था, जिसका जवाब देते हुए एक्टर ने कहा था कि कंपनी ने उन्हें धोखे में रखा था। उन्हें बताया गया कि ये एक माउथ फ्रेशनर है और इसके हानिकारक पहलू को छिपाया गया।

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