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क्यों सुलग रहा है मणिपुर और क्या है हिंसा की मुख्‍य वजह?

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, शुक्रवार, 5 मई 2023 (08:15 IST)
Manipur violence: भारत की 'ऑर्किड बास्केट' कहा जाने वाला पूर्वोततर का मणिपुर राज्य हिंसा की आग में झुलस रहा है। इसके मूल में मणिपुर का एक कानून है, जिसके अनुसार सिर्फ आदिवासी समुदाय के लोग ही पहाड़ी इलाकों में बस सकते हैं। राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 89 फीसदी हिस्सा पहाड़ी है। जबकि आदिवासियों से ज्यादा जनसंख्‍या यहां पर मैतेई समुदाय की है, जिसे अनुसूचित जाति का दर्जा प्राप्त है। मैतेई समुदाय की जनसंख्या राज्य में 53 प्रतिशत है, जबकि जबकि 40 फीसदी आबादी नगा और कुकी आदिवासियों की है। राज्य में 7 फीसदी समुदाय अन्य समुदाय से आते हैं। 
 
मणिपुर के इस कानून के मुताबिक 40 फीसदी नगा और कुकी आदिवासियों को राज्य के 89 फीसदी हिस्से पर बसने का अधिकार है। अनुसूचित जाति में होने के कारण मैतेई समुदाय इस अधिकार से वंचित है। वह चाहता है कि उसे भी जमीन पर बसने और जीविकोपार्जन का अधिकार मिलना चाहिए। यही कारण है कि मैतेई समुदाय खुद के लिए एसटी का दर्जा देने की मांग कर रहा है।
 
यहां से शुरू हुई हिंसा : इसी कड़ी में मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के लिए विचार करने की मांग की। अदालत की इसी मांग के विरोध में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर आदिवासी एकता मार्च निकला और देखते ही देखते हिंसा भड़क गई और इसने लगभग पूरे राज्य को अपनी चपेट में ले लिया।
 
जानकार लोग आशंका जता रहे हैं कि यह हिंसा ईसाई बनाम हिंदू का रूप भी ले सकती है, क्योंकि ज्यादातर नगा और कुकी आदिवासी ईसाई धर्म में आस्था रखते हैं, जबकि बहुसंख्यक मैतेई खुद को हिन्दू मानते हैं। आदिवासियों और बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के बीच काफी दिनों से तनाव की स्थिति बनी हुई है। 3 मई की रात इस तनाव ने हिंसा का रूप ले लिया।
 
राज्य के 8 जिले हिंसा की आग में जल रहे हैं। इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं। हिंसा प्रभावित जिलों में असम राइफल्स और सेना की कई कंपनियां तैनात कर दी गई हैं। इस बीच, मणिपुर सरकार ने दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश सरकार ने दिए हैं। हिंसा के कारण 9000 से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है।
 
दूसरी ओर सेना के प्रवक्ता ने कहा कि आदिवासियों और बहुसंख्यक मेइती समुदाय के बीच हिंसा भड़कने के बाद स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सेना और असम राइफल्स के 55 ‘कॉलम’ को तैनात किया गया है। हिंसा के कारण करीब 5000 लोगों को चुराचांदपुर में सुरक्षित गृहों में पहुंचाया गया, वहीं 2000 लोगों को इंफाल घाटी में और अन्य 2000 लोगों को तेनुगोपाल जिले के सीमावर्ती शहर मोरेह में स्थानांतरित कर दिया गया है। सेना और असम राइफल्स ने आज चुराचांदपुर और इंफाल घाटी के कई इलाकों में फ्लैग मार्च किया और काक्चिंग जिले के सुगनु में भी फ्लैग मार्च किया गया।
 
पुलिस का कहना है कि चुराचांदपुर जिले के तोरबंग क्षेत्र में मार्च के दौरान हथियार लिए हुए लोगों की एक भीड़ ने कथित तौर पर मेइती समुदाय के लोगों पर हमला किया, जिसकी जवाबी कार्रवाई में भी हमले हुए, जिसके कारण पूरे राज्य में हिंसा भड़क गई। कांगपोकपी जिले के मोटबंग इलाके में बीस से अधिक घर भी जलकर खाक हो गए। 
 
इन जिलों में कर्फ्यू : इसके साथ ही तोरबंग में तीन घंटे से अधिक समय तक हुई हिंसा में कई दुकानों और घरों में तोड़फोड़ के साथ ही आगजनी की गई। गैर-आदिवासी बहुल इंफाल पश्चिम, काकचिंग, थौबल, जिरिबाम और विष्णुपुर जिलों तथा आदिवासी बहुल चुराचांदपुर, कांगपोकपी और तेंगनौपाल जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया। पूरे राज्य में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गईं हैं।

हिंसा के लिए भाजपा जिम्मेदार : कांग्रेस ने मणिपुर में हिंसा भड़कने के लिए भाजपा की ‘सत्ता की भूख की राजनीति’ को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पूर्वोत्तर के इस प्रदेश में शांति एवं सामान्य स्थिति बहाल करने पर ध्यान देना चाहिए। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मणिपुर के लोगों से शांति और संयम बरतने की अपील भी की।

खरगे ने ट्वीट किया कि मणिपुर जल रहा है। भाजपा ने समुदायों के बीच दरार पैदा की और इस खूबसूरत राज्य की शांति को भंग कर दिया। राहुल गांधी ने कहा- मैं मणिपुर में तेजी से बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति को लेकर चिंतित हूं।
 
आदिवासी बनाम गैर आदिवासी लोगों की यह जंग क्या रूप लेगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन आर्किड फूलों की 500 से ज्यादा प्रजातियों के लिए मशहूर यह राज्य अभी तो अपनी बदहाली पर आंसू बहाने के लिए मजबूर है। अत: जरूरी है कि समय रहते इस समस्या का स्थायी समाधान ढूंढ लिया जाए, जो कि सभी समुदायों की सहमति से ही संभव है।


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