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डिनर में क्या खाएं क्‍या न खाएं? विकल्पों की सूची ने खड़ी कर दी नई मुसीबत

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, बुधवार, 23 नवंबर 2022 (13:00 IST)
मेलबर्न, एक व्यस्त दिन के बाद, आपकी साथी आपको संदेश भेजती है, ‘चलो खाना बाहर से मंगा लेते हैं, मेरा खाना पकाने का मन नहीं है।’ आप राहत की भावना के साथ, अपना सामान्य ‘टेकअवे’ ऐप खोलते हैं और उपलब्ध कई रेस्तरां और व्यंजनों को देखना शुरू करते हैं।

थाई, पिज़्ज़ा, बर्गर, कोरियन, लेबनीज... ओह, यह तो मुफ़्त डिलीवरी की सुविधा दे रहा है। लेकिन वे बहुत दूर हैं और मैं भूखा हूं… जल्द ही राहत की यह भावना यह तय करने की असमर्थता में बदल जाती है कि क्या ऑर्डर करना है। साथ ही आपकी साथी भी इसमें अधिक मदद नहीं कर रही है।

यह स्थिति जानी पहचानी है? आप जिस चीज का अनुभव कर रहे हैं, उसे विकल्प की अधिकता कहा जाता है। यह स्थिति कभी-कभी ऐसी स्थिति में तब्दील हो जाती है, जब आप निर्णय नहीं ले पाते हैं (यानी जब आप हार मान लेते हैं और इसके बजाय एक सैंडविच बना लेते हैं) और अंततः हम लिए गए निर्णय से समग्र रूप से कम संतुष्टि की ओर जाते हैं।

शुक्र है, विपणन और मनोविज्ञान के विद्वानों ने वर्षों से इस स्थिति का अध्ययन किया है और आपके जीवन को थोड़ा आसान बनाने के लिए सुझाव दिया है। हालांकि पहले हमें इसे सुलझाने के लिए इसे समझने की जरूरत है।उपरोक्त रात्रिभोज परिदृश्य में, "विकल्प जटिलता’’- विकल्प कैसे प्रस्तुत किए जाते हैं, कितने विकल्प हैं, उपलब्ध विकल्प उनकी विशेषताओं में कितने भिन्न हैं, हम प्रत्येक विकल्प के बारे में कितना पहले से जानते हैं - मुख्य दोषी हैं।

सबसे अच्छा विकल्प चुनने के लिए, ध्यान में रखने योग्य बहुत सी चीजें हैं: भोजन, डिलीवरी का समय, डिलीवरी की लागत, दूरी, स्वस्थ्यकर आदि। पहली नज़र में जो एक साधारण निर्णय लगता है, वह जल्द ही काफी जटिल हो जाता है।

जब अकेले भोजन की बात आती है तो लोग एक दिन में लगभग 200 विकल्प चुनते हैं, आप उस थकान को महसूस कर सकते हैं जो हमारे दिमाग को एक दिन के अंत में महसूस होती है।

एक और जटिल और बहुआयामी निर्णय का सामना करने पर संज्ञानात्मक अधिकता होगी: इसका मतलब है कि इष्टतम विकल्प तय करने के वास्ते सभी विकल्पों को समझबूझकर संसाधित करने और सभी सूचनाओं पर विचार करने के लिए आपके मस्तिष्क में संज्ञानात्मक संसाधन (मस्तिष्क शक्ति) नहीं है।

इसमें समस्या और समाधान निहित है: आपको हमेशा इष्टतम विकल्प बनाने की आवश्यकता नहीं होती। ‘ठीक है’ के साथ जाने से क्या गलत है? विकल्पों की अधिकता होने की संभावना है, क्योंकि आपका मस्तिष्क सचेत रूप से सभी बिंदुओं को जोड़ने की कोशिश कर रहा है। तो तुम क्या करते हो?

यदि निर्णय लेना मुश्किल हो रहा है, तो रुकने का प्रयास करें और सोचने समझने में ज्यादा दिमाग न लगाएं। जब आप रात की अच्छी नींद के बाद फैसला लेंगे तो उस समय तक आपके मस्तिष्क ने अनजाने में सूचना को संसाधित कर लिया होगा और आप अधिक आत्मविश्वास से निर्णय लेने में सक्षम होंगे।

आपने लोगों को कहते सुना होगा, ‘ये एकदम सही फैसला लग रहा है?’ अंत: प्रज्ञा कोई मिथकीय अवधारणा नहीं है जो आपके कानों में आकर सही फैसला लेने का मंत्र फूंक कर जाती है- यह आपका अवचेतन मन है जो सही फैसला करने की कड़ियों को आपस में जोड़ता है।

शायद ये बहुत अच्छा न लगे, लेकिन विकल्पों की भरमार के मुकाबले, न्यूनतम विकल्प होना हमारी भलाई में बहुत महत्व रखता है और इसके कहीं अधिक अच्छे प्रभाव होते हैं।
Edited: By Navin Rangiyal/ भाषा

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