देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का नया अध्यक्ष कौन होगा,यह अगले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा। अगर राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ते है तो कांग्रेस का नया अध्यक्ष गांधी परिवार के बाहर को होगा। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और केरल के तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस सांसद शशि थरूर कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे है। दोनों ही नेताओं के कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए नामांकन भरने की अटकलें लगाई जा रही है।
अशोक गहलोत को जहां गांधी परिवार के करीबी और विश्वस्त सहयोगी के तौर पर देखा जाता है तो दूसरी ओर केरल से सांसद शशि थरूर कांग्रेस में उस G-23 के प्रमुख चेहरा है जिसको गांधी परिवार के विरोधी के तौर पर देखा जाता है। कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए अधिसूचना 22 सितंबर को जारी की जाएगी और 24 से 30 सितंबर के बीच नामांकन दाखिल किए जाएंगे। अध्यक्ष पद के लिए एक से अधिक उम्मीदवार होने पर 17 अक्टूबर को मतदान होगा और 19 अक्टूबर को नजीजे घोषित किए जाएंगे।
ऐसे में जब इस बात की अब पूरी संभावना है कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लडेंगे तो कांग्रेस का नया अध्यक्ष गांधी परिवार के बाहर का होगा, ऐसे में कांग्रेस के नए अध्यक्ष के सामने क्या चुनौती होगी उसको भी समझना जरूरी है।
रबर स्टैंप की छवि से बाहर निकलने की चुनौती?-गांधी परिवार के बाहर का अगर कोई व्यक्ति कांग्रेस का अध्यक्ष बनता हैं तो उसके समाने गांधी परिवार के रबर स्टैंप की छवि से बाहर निकलने की चुनौती होगी। अगर कांग्रेस पार्टी के इतिहास को देखा जाए जब-जब कांग्रेस में गांधी परिवार के बाहर को कोई अध्यक्ष हुआ है तो उसे गांधी परिवार का रबर स्टैंप माना गया है। ऐसे में गांधी परिवार के साये से बाहर निकलना एक बड़ी चुनौती होगी।
दरअसल कांग्रेस और गांधी परिवार एक दूसरे से पर्याय माने जाते है। जब जब कांगेस में गांधी परिवार के बाहर कोई व्यक्ति पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया है तो यह माना गया है कि पर्दे के पीछे सभी फैसले गांधी परिवार ही लेता है। ऐसे में नए अध्यक्ष को अपनी अलग स्वतंत्र छवि बनाए रखने के लिए गांधी परिवार के साये से बाहर निकलना होगा जिसके कि वह खुद पार्टी पर अपनी मजबूत पकड़ बना सके। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण का बयान कि अगर कांग्रेस में 'कठपुतली अध्यक्ष' बना तो पार्टी बच नहीं पाएगी, से कांग्रेस के नए अध्यक्ष की चुनौतियों को समझा जा सकता है।
बिखरती कांग्रेस को एकजुट करने की चुनौती?– कांग्रेस के नए अध्यक्ष के सामने सबसे बड़ी और पहली चुनौती बिखरती पार्टी को एकजुट करना होगा। कई दशकों तक पार्टी के साथ मजबूती के साथ खड़े रहने वाले कांग्रेस नेता एक के बाद पार्टी को अलविदा कह रहे हैं,वहीं कई नेता पार्टी के अलविदा कहने की कगार पर खड़े है। दो दशक से अधिक लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस में गैर गांधी परिवार के अध्यक्ष बनने के बाद अब उसके सामने पार्टी को एकजुट रखना बड़ी चुनौती है।
पार्टी में इस वक्त नए और पुराने नेताओं के बीच जो शीत युद्ध छिड़ा है उस पर काबू करना और दोनों के बीच सांमजस्य बनाए रखना नए अध्यक्ष के लिए इतना आसान काम नहीं होगा। पार्टी के बड़े नेताओं के बीच इस समय खेमेबाजी साफ दिखाई दे रही है इस खेमेबाजी को खत्म कर फिर से सभी को पार्टी के झंडे के नीचे लाना नए अध्यक्ष के सामने बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में कांग्रेस के नए अध्यक्ष के सामने चुनौती पार्टी को और बिखरने से बचाना और पार्टी के अंसतुष्ट नेताओं को एकजुट करना होगा।
विचारधारा के संकट से पार पाने की चुनौती?-देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अगर आज इतिहास के अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है तो इसका बड़ा कारण पार्टी के सामने विचारधारा का संकट होना है। राहुल गांधी ने कांग्रेस संगठन को नई विचारधारा पर खड़ा करने की कोशिश की लेकिन उसमें वह कामयाब नहीं हो पाए। ऐसे में कांग्रेस को संगठन के साथ साथ विचाराधारा पर भी नए सिरे से खड़ा करने की जरूरत होगी जो किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
पार्टी कैडर को फिर से खड़ा करने की चुनौती?–कांग्रेस के नए अध्यक्ष के सामने पार्टी के कैडर को फिर से खड़ा करना एक बड़ी चुनौती होगी। पार्टी के बड़े नेताओं के साथ चुनाव दर चुनाव हार से पार्टी के कार्यकर्ता मायूस होकर पार्टी का साथ छोड़ रहे हैं या छोड़ चुके है। ऐसे में नए अध्यक्ष के सामने चुनौती पूरे देश में पार्टी के कैडर को फिर से खड़ा करना जिससे कि वह भाजपा का सामना कर सके।
G-23 से निपटने की चुनौती?–कांग्रेस का नया अध्यक्ष ऐसे समय पार्टी की कमान संभालेगा जब कांग्रेस के अंदर ही G-23 का गुट बेहद सक्रिया है। G-23 के नेता एक के बाद एक पार्टी छोड़कर जा रहे है और जो पार्टी के अंदर है वह पार्टी की कार्यप्रणाली पर लगातार सवाल खड़े कर रहे है। G-23 के नेता पार्टी के अंदरूनी लोकतंत्र को लेकर गांधी परिवार को अपने निशाने पर लिए हुए है। पार्टी के अंदर लोकतंत्र बहाल करना नए अध्यक्ष के लिए एक और प्रमुख चुनौती है। पार्टी में बड़े पदों पर मनोनयन की प्रक्रिया खत्म कर चुनाव के जरिए पदों पर नियुक्ति की मांग निचले स्तर के कार्यकर्ता लंबे समय से करते आए है। ऐसे में अगर पार्टी के कार्यकर्ताओं को एक जोश से फिर से एक जुट करना है तो लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराना सबसे प्रमुख चुनौती होगी।