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कौन होते हैं गरुड़ कमांडो, 1500 फुट की ऊंचाई पर दिया खतरनाक ऑपरेशन को अंजाम

हमें फॉलो करें कौन होते हैं गरुड़ कमांडो, 1500 फुट की ऊंचाई पर दिया खतरनाक ऑपरेशन को अंजाम
, बुधवार, 13 अप्रैल 2022 (12:46 IST)
देवघर। झारखंड के देवघर में रविवार को हुई रोपवे दुर्घटना में 1500 फुट की उंचाई पर फंसी केबल कार ट्रॉली संख्या 6 में 2 छोटे बच्चों को ढांढ़स बंधाने के लिए वायुसेना के एक गरुड़ कमांडो ने पूरी रात उनके साथ गुजारी। इतना ही नहीं जब मंगलवार को तड़के जब वायुसेना का एमआई 17 हेलीकॉप्टर वापस राहत एवं बचाव कार्य के लिए त्रिकुट पर्वत पहुंचा तो सबसे पहले दोनों बच्चों को बारी-बारी से अपनी गोद में बिठाकर गरुड़ कमांडो ने हेलीकॉप्टर में पहुंचाया। यहां से वापस उन्हें सुरक्षित जमीन पर लाकर उतारा गया। उसने मानवता की ऐसी मिसाल कायम की जिसकी चारों ओर प्रशंसा हो रही है। जानिए गरुड़ कमांडो से जुड़ी हर जानकारी...
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भारत के सबसे खतरनाक कमांडो में वायुसेना के गरुड़ कमांडो का नाम लिया जाता है। इस फोर्स में करीब 1500 जवान हैं। इनकी ट्रेनिंग इस तरह की जाती है कि ये बिना कुछ खाए हफ्ते तक संघर्ष कर सकते हैं। गरुड़ कमांडो को एयरबोर्न ऑपरेशन, एयरफील्ड सीजर और काउंटर टेररिज्म का जिम्मा उठाने के लिए ट्रेन किया जाता है। ये जम्मू और कश्मीर में काउंटर इन्सर्जन्सी ऑपरेशंस में भी ऑपरेट कर चुके हैं। शांति के समय उनकी जिम्मेदारी वायुसेना की एयर फील्ड की सुरक्षा करना है।
 
2004 में हुआ था गठन : आर्मी के पैरा कमांडो व नेवी के मार्कोस कमांडो की तरह गरुड़ कमांडो भी बेहद खतरनाक माने जाते हैं। इस फोर्स का गठन वर्ष 2004 में किया गया। भारतीय वायु सेना को इस स्पेशल फोर्स की जरूरत तब पड़ी, जब 2001 में आतंकियों ने जम्मू और कश्मीर में 2 एयरबेस पर हमला किया। गरुड़ कमांडोज की ट्रेनिंग नेवी के मार्कोस और आर्मी के पैरा कमांडोज की तर्ज पर ही होती है। इन्हें एयरबोर्न ऑपरेशन, एयरफील्ड सीजर और काउंटर टेररिज्म का जिम्मा उठाने के लिए ट्रेन किया जाता है।
 
कठिन ट्रेनिंग : गरुड़ कमांडो बनना आसान काम नहीं है। सभी रिक्रूट्स का बेसिक ट्रेनिंग कोर्स 52 हफ्तों का होता है। 3 हफ्तों की ट्रेनिंग के बाद बेस्ट जवानों को चुना जाता है। इन कमांडो की ट्रेनिंग स्पेशल फ्रंटियर फोर्स, इंडियन आर्मी और नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स के साथ होती है। जवानों को आगरा के पैराशूट ट्रेनिंग स्कूल भेजा जाता है। जहां पर मार्कोस और पैरा कमांडोज की तरह गरुण कमांडो भी अपने सीने पर पैरा बैज लगाते हैं। इसके बाद इन्हें मिजोरम में काउंटर इन्सर्जन्सी एंड जंगल वारफेयर स्कूल में भी ट्रेनिंग दी जाती है।
 
खतरनाक हथियारों से लैस : गरुड़ कमांडोज सबसे खतरनाक हथियारों से लैस होते हैं। इनमें साइड आर्म्स के तौर पर Tavor टीएआर -21 असॉल्ट राइफल, ग्लॉक 17 और 19 पिस्टल, क्लोज क्वॉर्टर बैटल के लिए हेक्लर ऐंड कॉच MP5 सब मशीनगन, AKM असॉल्ट राइफल, एक तरह की एके-47 और शक्तिशाली कोल्ट एम-4 कार्बाइन शामिल हैं।
 
गरुड़ कमांडो हवाई हमले, दुश्मन की टोह लेने, स्पेशल कॉम्बैट और रेस्क्यू ऑपरेशन्स के लिए ट्रेंड होते हैं। ये स्निपर्स से लैस होते हैं, जो चेहरा बदलकर दुश्मन को झांसे में लाता है और फिर मौत के घाट उतार देता है। इनके पास 200 UAV ड्रोन के साथ-साथ ग्रेनेड लांचर भी हैं।
 
गरुड़ कमांडो फोर्स का वेतन नेवी के मार्कोस और आर्मी के पैरा कमाडो के जितना ही होता है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, गरुड़ कमांडो फोर्स के सब लेफ्टिनेंट की सैलेरी 72 हजार से लेकर 90,600 तक तो हाई पोस्ट वालों की सैलरी 2.5 लाख तक हो सकती है।

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