ganesh chaturthi

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

संसद के मानसून सत्र के आखिरी दिन क्यों मोदी सरकार लाई पीएम-सीएम के 30 दिन जेल में रहने पर कुर्सी जाने वाला विधेयक?

Advertiesment
हमें फॉलो करें Monsoon session of Parliament adjourned indefinitely

विकास सिंह

, गुरुवार, 21 अगस्त 2025 (16:30 IST)
लोकसभा के बाद आज राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को किसी भी आपराधि केस में हिरासत और गिरफ्तारी के संबंध में पद से हटाने से संबंधित तीन विधेयकों को आज राज्यसभा में  पेश कर दिया है। राज्यसभा में भी विपक्षी दलों ने तीनों ही विधेयक का जमकर विरोध किया। वहीं सदन में गृहमंत्री अमित शाह ने विधयक को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) में भेजने का प्रस्ताव किया। 

सरकार की ओर से संसद में जो तीनों विधेयक पेश किया उसके अनुसार प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई मंत्री अगर ऐसे गंभीर आपराधिक मामले में जिसमें 5 साल या इससे ज्यादा की सजा का प्रावधना हो, में अगर गिरफ्तार होता है और 30 दिनों तक हिरासत में रहता है, तो 31वें दिन वह स्वतः अपने पद से हटा दिया जाएगा। यदि किसी भी नेता ने कोई अपराध किया है और पुलिस उन्हें गिरफ्तार करती है तो तुरंत उनपर ये नियम लागू होगा। सरकार का दावा यह विधेयक कानून-व्यवस्था को मजबूत करने और सरकार में पारदर्शिता व नैतिकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लाया गया है। अगर ये बिल संसद से पास हो जाता है तो गिरफ्तारी के बाद मंत्री या मुख्यमंत्री अपने पद पर नहीं बने रह पाएंगे। वहीं विपक्ष इन तीनों बिलों को लेकर सरकार की मंशा पर सवाल उठा रही है।

सरकार क्यों लाई यह बिल?-दऱअसल बीते कुछ सालों में कई ऐसे मामले देखे गए जब मुख्यमंत्री और मंत्रियों ने गंभीर मामलों में जेल जाने के बाद भी अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया। दिल्ली में पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जेल जाने के बाद भी इस्तीफा नहीं दिया और जेल से ही सरकार चलाई। इसके साथ केजरीवाल सरकार में मंत्री रहे डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और मंत्री सत्येंद्र जैन ने भी गिरफ्तारी के बाद भी लंबे समय तक अपने पदों से इस्तीफा नहीं दिया था।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिल्ली का मामला मोदी सरकार के लिए एक सबक था। अगर सरकार अब जो क़ानून लाने जा रही है, वह पहले होता, तो गिरफ़्तारी के 31 दिन बाद ही गिरफ़्तार मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने आप चली जाती। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में जो प्रयोग किया, उन्हें गिरफ़्तार किया गया और वे मुख्यमंत्री बने रहे। इसके साथ ही तमिलनाडु के मंत्री सेंथिल बालाजी भी जेल जाने के बाद अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया। इन्हीं उदाहरणों को ध्यान में रखते हुए यह विधेयक लाया जा रहा है। इस घटना के बाद केंद्र सरकार ने ध्यान मौजूदा कानूनों की खामियों की तरफ गया। 
 
विपक्ष को सरकार की मंशा पर सवाल?- वहीं विपक्ष दलों ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए है। विपक्ष इस विधेयक का विरोध इसलिए कर रहा है क्योंकि उसे जाँच एजेंसियों के दुरुपयोग का डर है। विपक्ष के विरोध का बड़ा कारण जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का डर है। विपक्ष लगातार आरोप लगाता आया है कि केंद्र सरकार सीबीआई, ईडी जैसी जांच एजेंसियों का गलत इस्तेमाल विरोधियों को निशाना बनाने में करती है। यह बिल पारित होने के बाद तो कोई भी जांच एजेंसी किसी भी विपक्ष के शासन वाले राज्य के मुख्यमंत्री या मंत्री को गिरफ्तार कर 30 दिनों तक न्यायिक हिरासत में रख सकती है और 31 वें दिन उसकी अपने-आप बर्खास्तगी हो जाएगी। विपक्ष के अनुसार नए विधेयक लाने  की कवायद का केवल यही मकसद है। बीते कुछ सालों में ईडी, सीबीआई और आईटी का जिस तरह से राजनीतिक हस्तियों के खिलाफ उपयोग किया गया है उससे कहीं हद तक विपक्ष की चिंता वाजिब भी है क्यों ऐसे कई मामले सामने आए है जब सुप्रीम कोर्ट ने ईडी और सीबीआई के दुरुपयोग के साथ उसके कामकाज पर गंभीर सवाल उठाए है। 
 
अब सरकार ने विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया है। लोकसभा और राज्यसभा में विपक्षी पार्टियों ने जिन तरह से विधेयक का विरोध किया है उसमें ऐसी बहुत संभावना है कि विपक्ष इस विधेयक पर गठित संयुक्त संसदीय समिति का बहिष्कार कर दे और इसमें विपक्ष का कोई भी सदस्य शामिल न हो। ऐसे में जेपीसी में सिर्फ़ सत्ताधारी दल के सदस्य ही होंगे। सरकार इसके लिए भी तैयार दिख रही है। 

हालाँकि,यह अलग सवाल है कि विपक्ष के बिना ऐसी संसदीय समिति का क्या औचित्य है। सरकार ने विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति को भेजने का प्रस्ताव रखा है, लेकिन विपक्ष समिति का बहिष्कार कर सकता है। इस विधेयक को लेकर सरकार और विपक्ष दोनों ही राजनीतिक और नैतिक बहस में फँसे हुए हैं।
 
वहीं एक सवाल बिल को लेकर सरकार की मंशा पर कहीं न कहीं सवाल उठ रहे है। सवाल यह कि संसद के  मॉनसून सत्र के आखिरी दिन ही क्यों सरकार ने इस संविधान संशोधन बिल को पेश करने का फैसला क्यों लिया। वहीं जिस तरह से बिल की लिस्टिंग में यह कहा जाए कि इसे संयुक्त संसदीय समिति को भेजा जाएगा तो यह भी सरकार की मंशा पर सवाल उठाता है। यानी सरकार की मंशा शुरू से ही यह थी कि इस पर सहमति बनानी चाहिए. अगर सहमति नहीं बनती, तो विपक्ष को ही जवाब देना होगा कि वह राजनीति में नैतिकता के इस मुद्दे पर समझौता क्यों कर रहा है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

नहीं रहे दयालु जज फ्रैंक कैप्रियो, सोशल मीडिया पर वायरल हैं दिल छू लेने वाले फैसले