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बांग्लादेश में हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा पर क्यों सख्त नहीं भारत सरकार

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, मंगलवार, 3 दिसंबर 2024 (07:30 IST)
Violence against Hindus in Bangladesh: बांग्लादेश में शेख हसीना के तख्ता पलट के बाद वहां अल्पसंख्यक हिन्दुओं के खिलाफ शुरू हुई हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। हिन्दुओं पर हमले और मंदिरों में तोड़फोड़ आम बात हो गई है। भारत सरकार की ओर से इन घटनाओं को लेकर विरोध तो दर्ज कराया गया, लेकिन उसमें वह सख्ती नजर नहीं आई, जिससे कि यह पड़ोसी देश हिंसा के खिलाफ कड़े कदम उठाने पर मजबूर हो जाए।
 
हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा और इस्कॉन मंदिर के हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी की गिरफ्तारी को लोग भारत में सड़कों पर उतर आए हैं। हालांकि बांग्लादेश की वर्तमान सरकार इस बात से बार-बार इंकार करती रही है कि वहां अल्पसंख्यकों पर कोई सुनियोजित हमला हुआ है। लेकिन, हकीकत किसी से भी छिपी नहीं है। 
 
लालकिले से बोली बात का भी असर नहीं : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त, 2024 को लालकिले की प्राचीर से अपने संबोधन में बांग्लादेश की हिंसा और हिन्दुओं की स्थिति का जिक्र जरूर किया था। उन्होंने यह भी कहा था कि भारत 140 करोड़ देशवासियों को बांग्लादेश के हिन्दुओं की चिंता है। लेकिन, क्या चिंता जाहिर करने मात्र से वहां के अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा रुक गई? जब तक पड़ोसी देश के रहनुमाओं को सख्त संदेश नहीं दिया जाएगा, तब तक वहां हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा शायद ही रुक पाए। वैसे भी जिस देश के लोग अपने राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान की प्रतिमा को जमींदोज करने में शर्म महसूस नहीं करते हों, उनसे हिन्दुओं की रक्षा की उम्मीद आप कर भी कैसे सकते हैं?  ALSO READ: बांग्लादेश में हिंसा पर कांग्रेस नेता कर्ण सिंह बोले- मोहम्मद यूनुस को तत्काल कदम उठाने चाहिए
 
जब घुटनों पर आ गया था पाकिस्तान : हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कई बार अलग-अलग मंचों से कह चुके हैं कि उनकी बात दुनिया में सुनी जाती है। यदि यह सही है तो क्यों हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा नहीं रुक रही। 1971 की तुलना में भारत आज कई गुना मजबूत है, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी अत्याचारों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई से भी पीछे नहीं हटी थीं। श्रीमती गांधी ने तब अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश की भी परवाह नहीं की थी और पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया था।
 
लगातार घट रही हिन्दुओं की संख्‍या : भले ही हम बांग्लादेश के खिलाफ सैन्य कार्रवाई नहीं करें, लेकिन धमकी तो दे ही सकते हैं। उस समय (1971 में) तो भारत सामरिक रूप से भी उतना ताकतवर नहीं था, लेकिन भारत की एक एक्शन ने पाकिस्तान को तोड़कर रख दिया था। इसके बाद ही बांग्लादेश का उदय हुआ था। बांग्लादेश की 17 करोड़ की जनसंख्या में हिंदू अल्पसंख्यक लगभग 8 फीसदी हैं और बीते कुछ महीनों में उन पर 200 से ज्यादा हमले हो चुके हैं। पिछले कुछ सालों में बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति काफी खराब हुई है।  एक जानकारी के अनुसार, 1951 में इस क्षेत्र (तब पूर्वी पाकिस्तान) में हिंदुओं की आबादी करीब 22 फीसदी थी। लेकिन, बाद में उनकी संख्‍या में लगातार गिरावट आती गई। अत्याचारों के चलते हिन्दुओं को वहां से पलायन करना पड़ा।  ALSO READ: बांग्लादेश हिंसा पर RSS का बड़ा बयान, बंद हो हिंदुओं पर अत्याचार, चिन्मय कृष्ण दास की रिहाई की मांग
 
भारत में बढ़ रहा है विरोध : हिंदुओं पर लगातार हो रहे हमले के विरोध में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में भी रैलियां निकाली गईं। वहीं, पश्चिम बंगाल के कोलकाता और त्रिपुरा के अगरतला के दो अस्पतालों ने बांग्लादेशी मरीजों का इलाज करने से इंकार कर दिया। कोलकाता के जेएन रे अस्पताल के सुभ्रांशु भक्त ने कहा कि अब हम बांग्लादेशी मरीजों का इलाज नहीं करेंगे। बांग्लादेश में तिरंगे का अपमान हो रहा है। भारत ने उनकी आजादी में अहम भूमिका निभाई, बावजूद इसके हम वहां भारत विरोधी भावनाएं देख रहे हैं। अगरतला में हिन्दू संगठन के सदस्यों ने बांग्लादेश के सहायक उच्चायुक्त ऑफिस में घुसकर तोड़फोड़ की। पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी ने भी बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति पर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार से इस पड़ोसी देश में शांति मिशन तैनात करने के लिए संयुक्त राष्ट्र से संपर्क करने का अनुरोध किया है। ALSO READ: बांग्लादेश को भारत की फटकार, हिन्दुओं की सुरक्षा की ले जिम्मेदारी
 
आर्थिक रूप से भी बांग्लादेश पर दबाव बनाया जा सकता है। भारत-बांग्लादेश के बीच घनिष्ठ आर्थिक संबंध हैं। भारत बांग्लादेश के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है। 2021-2022 में द्विपक्षीय व्यापार 18.2 बिलियन अमरीकी डॉलर था, जो कि 2023-24 में बढ़कर 14.01 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया। भारत आर्थिक रूप से भी दबाव डालकर बांग्लादेश को मजबूर कर सकता है। अन्य कई क्षेत्रों में भी भारत और बांग्लादेश के द्विपक्षीय संबंध हैं। 
 
इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत के सख्त रुख के बिना ‍बांग्लादेश की अस्थायी सरकार के मुखिया और वहां के कट्‍टरपंथी मानने वाले नहीं है। अब तो यह भी सवाल उठाया जा सकता है कि क्या वाकई मोहम्मद यूनुस नोबेल शांति पुरस्कार के हकदार हैं? 
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 

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