हाल ही में राष्ट्रपति की तरफ से चुनाव आयोग में एक बड़ी नियुक्ति की है। ये नियुक्ति चुनाव आयोग के तीसरे आयुक्त के तौर पर हुई। जिसमें पंजाब कैडर के आईएएस अधिकारी अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया है। इस नियुक्ति के बाद सुप्रीम कोर्ट और सरकार आमने- सामने आ गए हैं। दरअसल, कोर्ट ने सरकार से नियुक्ति से जुड़ी फाइलें मांग ली हैं, सु्प्रीम कोर्ट यह देखना चाहता है कि इस नियुक्ति में कोई गड़बड़ी तो नहीं हुई है। कोर्ट ने कहा कि हम ये जानना चाहते हैं कि नियुक्ति के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई?
बता दें कि काफी समय से ये पद खाली पड़ा था। लेकिन उनकी नियुक्ति को लेकर विवाद शुरू हो गया है। जानते हैं आखिर क्या है ये पूरा विवाद और कैसे होती है चुनाव आयुक्त की नियुक्ति।
ये है विवाद की वजह
बता दें कि अरुण गोयल के नाम की घोषणा होने के कुछ ही दिन पहले वे रिटायर्ड हुए हैं। इसका मतलब है कि वे मौजूदा सरकार के साथ काम कर रहे थे। इस विषय को लेकर ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। याचिका में कहा गया कि किस आधार पर अचानक रिटायरमेंट देकर गोयल को चुनाव आयोम में नियुक्त किया गया है? याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए सीनियर वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि चुनाव आयुक्त के तौर पर उन लोगों की नियुक्ति होती है, जो पहले से रिटायर हैं। जबकि अरूण गोयल को दो या तीन दिन पहले ही रिटायर्ड किया और इसके ठीक बाद में उन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट का सवाल
अब अरुण गोयल की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इससे संबंधित सभी दस्तावेजों, फाइलों की मांग की है। कोर्ट ने यह भी कहा कि बेहतर होता मामले की सुनवाई के दौरान नियुक्ति नहीं की जाती। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा है कि कानून मंत्री ने जो चार नाम भेजे थे, उनमें सबसे जूनियर अधिकारी को ही क्यों चुना गया? रिटायर होने जा रहे अधिकारी ने इससे ठीक पहले ही वीआरएस लिया था। अचानक 24 घंटे से भी कम वक्त में फैसला कैसे लिया गया?
सरकार ने दिया ये जवाब
सरकार की तरफ से जो जवाब पेश किया गया उसमें कहा गया कि केंद्रीय कैबिनेट पर संशय नहीं किया जाना चाहिए। अब भी योग्य और काबिल लोगों का ही चयन किया जा रहा है। अटॉर्नी जनरल ने जवाब देते हुए कहा कि प्रक्रिया में कुछ गलत नहीं हुआ है। सबकुछ नियमों के तहत किया गया है।
क्या था याचिका में
सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। इसमें मांग की गई थी कि चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रक्रिया होना चाहिए। बता दें कि कॉलेजियम सिस्टम जजों की नियुक्ति के लिए होता है। कॉलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के जज होते हैं, जो जजों की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार के पास नाम भेजते हैं। केंद्र की मुहर के बाद जजों की नियुक्ति की जाती है।
क्या होता है चुनाव आयोग?
चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है। चुनाव आयोग का काम देश के राज्यों और केंद्र का चुनाव कराना है। केंद्रीय चुनाव आयोग के अलावा राज्य का भी अपना एक चुनाव आयोग होता है। केंद्रीय चुनाव आयोग के तहत लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, विधान परिषद, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति कार्यालयों के चुनाव करवाता है। वहीं राज्य चुनाव आयोग निकाय या पंचायत चुनाव आयोजित करवाने का भी काम करता है।
कौन करता है नियुक्ति?
मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते है। ये आईएएस रैंक के अधिकारी होते हैं। इनका कार्यकाल 6 साल या 65 साल की उम्र (दोनों में से जो भी पहले हो) तक होता है। उनका दर्जा सुप्रीम कोर्ट के जजों के समकक्ष होता है और उन्हें भी वही वेतन और भते मिलते हैं जो सुप्रीम कोर्ट के जजों को मिलते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त चुनाव आयोग का प्रमुख होता है, लेकिन उसके अधिकार भी बाकी चुनाव आयुक्तों के बराबर ही होते हैं।