देश के पहले स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस को भारतीय वायुसेना में शामिल कर लिया गया है। 1984 में पहली बार स्वदेशी विमान बनाने का प्लान बनाया गया था। परियोजना शुरू होने के 33 साल लंबी प्रक्रिया के बाद तेजस वायुसेना में शामिल हुआ है। तेजस के प्रोजेक्ट पर 33 हजार करोड़ रुपये का खर्चा आया है। इस तरह से एक विमान की लागत 220-250 करोड़ रुपये के बीच है।
लेकिन बड़ा सवाल है कि आखिर क्यों जरूरी है तेजस जैसे स्वदेशी विमान। इसका बड़ा कारण है कि इस समय वायु सेना के पास निर्धारित 42 कॉम्बैट स्क्वाड्रनों के बजाय केवल 25 स्क्वाड्रन हैं। इनमें से भी 14 लड़ाकू दस्ते 2015 से 2024 के बीच रिटायर हो जाएंगे। इसके अलावा चौथी पीढ़ी के मल्टिरोल लड़ाकू विमान रॉफेल का सौदा अभी भी अधर में लटका है।
करीब 60 फीसदी देसी विमान का शामिल होना इस मायने में भी बड़ी बात है कि दुनिया में गिनती के ही देश हैं जो खुद लड़ाकू विमान बनाते हैं। फ्लाइंग डेगर स्क्वॉड्रन में फिलहाल दो तेजस होंगे और अगले साल मार्च तक छह और आ जायेंगे। इसके बाद और आठ तेजस इस स्क्वॉड्रन में शामिल होंगे। अगले दो साल ये स्क्वॉड्रन बेंगलूरु में ही रहेगा इसके बाद ये स्क्वॉड्रन तमिलनाडू के सलूर में चला जाएगा।
तेजस को लेकर आलोचना भी हुई क्योंकि इसका इंजन अमेरिकी है, रेडार और हथियार प्रणाली इजरायल की, इजेक्शन सीट ब्रिटेन का है। इसके अलावा, कई अन्य विदेशी सिस्टम और पुर्जे लगे हुए हैं। तो सवाल उठ रहे हैं कि ऐसे में तेजस कितना स्वदेशी है।
इन सारे सवालों पर एचएएल का तर्क है कि दुनिया के सबसे विकसित फाइटर जेट्स में शुमार फ्रांस का राफेल और स्वीडन का ग्रिपन में भी इम्पोर्टेड सिस्टम लगे हैं क्योंकि कलपुर्जे विकसित करना बेहद महंगी और वक्त लगने वाली प्रक्रिया है।
तो ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या तेजस को एक उपलब्धि के तौर पर देखा जा सकता है? बहुत सारे जानकार इसका जवाब हां में देते हैं। दरअसल तेजस में फ्लाई बाई वायर सिस्टम है। इसके जरिए जेट को उड़ाने में सहायक कम्प्यूटर नियंत्रित इनपुट्स मिलते हैं। यह पूरी तरह भारतीय तकनीक है। शत्रु के विमानों से निपटने के लिए इस्तेमाल होने वाले इसका मिशन कम्प्यूटर पूर्णत: भारतीय है। इसके जरिए सेंसर के डेटा को रिसीव करके प्रोसेस किया जाता है।
मिशन कम्प्यूटर का हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर ऐसा है, जिसे भविष्य में स्वदेश में ही अपग्रेड या बेहतर किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि विदेशी लड़ाकू विमानों को अपग्रेड करने में बहुत सा पैसा और समय व्यय करना पड़ता है और इसके अलावा हमेशा डर बना रहता है कि समय पर विमान न मिले। इसलिए तेजस के साथ यह समस्या नहीं आएगी और जैसे-जैसे प्रोडक्शन बढ़ेगा वैसे इसकी लागत भी कम होती जाएगी।