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गर्भपात से होती है हर साल 20 लाख महिलाओं की मौत

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नई दिल्ली/ अजमेर , सोमवार, 15 मई 2017 (14:32 IST)
नई दिल्ली/ अजमेर। एक ताजा सर्वेक्षण के अनुसार अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाने के लिए प्रतिवर्ष गर्भपात कराने वाली 1.50 करोड़ महिलाओं में से करीब 13 प्रतिशत यानी 20 लाख महिलाओं की मौत हो जाती है।
 
महिलाओं के हित और परिवार नियोजन के क्षेत्र में काम करने वाले प्रमुख गैरसरकारी संगठन 'पॉपुलेशन फांउडेशन ऑफ इंडिया' की कार्यकारी निदेशक पूनम मटरेजा ने विशेष बातचीत में सोमवार को कहा कि यह जानकारी इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट 'दि गुटमाकर' और 'इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पापुलेशन साइंसेज' ने सरकार को सौंपी एक रिपोर्ट में दी है। गर्भ नियोजन के साधनों की कमी और अज्ञानता इन मौतों की मुख्य वजह है। इस तरह की मौतों को रोकने के लिए देशभर में बड़े पैमाने पर काम करने की जरूरत है।
 
उन्होंने कहा कि पहले सरकारी आकड़ों में हर वर्ष मात्र 6 लाख महिलाओं का गर्भपात दर्ज होता था जबकि गैरसरकारी संगठनों का आंकड़ा 1 करोड़ था लेकिन अब सरकार और अन्य संगठनों के आंकड़े समान हैं। नए आंकड़े शीघ्र आने वाले हैं। इनके अनुसार हर साल डेढ़ करोड़ महिलाएं गर्भपात करवाती हैं जिनमें से 13 प्रतिशत यानी लगभग 20 लाख महिलाओं की मौत हो जाती है। इस आंकड़े में चोरी-छिपे कराए जाने वाले अवैध गर्भपात के मामले भी शामिल हैं। 
 
परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता और साधनों की कमी अमेरिका जैसे विकसित देश से लेकर अफ्रीकी देशों तक चिंतनीय स्थिति में है। सजगता-साधनों से प्रतिवर्ष 50 प्रतिशत से अधिक ऐसी मौतों को कम किया जा सकता है। प्रसव के दौरान विश्वभर में प्रतिवर्ष 3 लाख 30 हजार महिलाओं की मौ त होती है जिनमें 15 प्रतिशत भारतीय महिलाएं शामिल हैं।
 
पीएफआई की कार्यकारी निदेशक का कहना कि स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन के लिए बजट आनुपातिक रूप से बहुत कम है। यह दक्षिण अफ्रीका में 4.5, थाईलैंड में 3.7, ब्राजील में 4.7, चीन में 3.1, रूस में 3.1 प्रतिशत है जबकि भारत में मात्र 1.3 प्रतिशत है। 
 
उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य बजट को धीरे-धीरे बढ़ाकर कुछ सालों में इसे 5 प्रतिशत तक लाने की आवश्यकता है। साथ ही, रेडियो-टेलीविजन एवं अन्य सोशल मीडिया पर जागरूकता बढ़ाने वाले विज्ञापनों एवं अन्य कार्यक्रमों से गर्भनिरोध के उपायों को बढ़ावा दिया जा सकता है। दूरदर्शन पर प्रसारित हो रहे पीएफआई का धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' इसका एक अच्छा उदाहरण है।
 
स्वच्छता अभियान की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इस अभियान की शुरुआत अगर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से हों तो आधी बीमारियां कम हो सकती हैं। इसके अलावा हमें सामाजिक जागरूकता पर भी काम करना होगा। महिलाओं के प्रति सम्मान एवं आदर की भावना में कमी आई है और इसके कारण उनके प्रति हिंसा एवं अन्य प्रकार की वारदातें बढ़ रही हैं। केवल पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलाओं को भी महिलाओं के प्रति नजरिया बदलने की आवश्यकता है।
 
परिवार नियोजन के क्षेत्र में काम करने वाले अन्य प्रमुख गैरसरकारी संगठन मैरी स्टॉप्स इंडिया (एमएसआई) के राजस्थान के काम को देख रहे अरुण नायर के अनुसार साक्षरता दर में कमी, गरीबी, बाल विवाह, जगारूकता का अभाव, आधारभूत स्वास्थ्य संरचना एवं स्वास्थ्यकर्मियों की कमी परिवार नियोजन के क्षेत्र में आशातीत सफलता में बाधक हैं। 
 
परिवार नियोजन कार्यक्रम की अजमेर में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि चाइल्ड बाई च्वॉइस नॉट बाई चांस के नारे को साकार रूप देने और परिवार के आकार के बारे में महिलाओं की भूमिका अहम होने के रास्ते में चुनौतियां सुरसा की तरह मुंह खोले कदम-कदम पर है।
 
अरुण नायर ने कहा कि एमएसआई वर्ष 2008 से राजस्थान में 9 जिलों में परिवार नियोजन के क्षेत्र में काम कर रहा है। इस क्षेत्र में प्रगति के लिए सरकार के स्तर पर गंभीर कदम उठाया जाए तो बेहतर होगा। इसमें निजी अस्पतालों और गैरसरकारी संगठनों को जोड़ा जा सकता है।
 
नसबंदी के एवज में मिलने वाली रकम के बैंक में पहुंचने के कारण पहले की अपेक्षा इसके लिए आने वाली महिलाओं की संख्या में कमी आई है। नसबंदी कराने पर पौरूषता में कमी और शारीरिक कमजोरी की मिथ्या भ्रम के कारण पुरुष इसके लिए आगे नहीं आते हैं। इसी भ्रम के कारण महिलाएं भी यही चाहती हैं कि उनके पति किसी तरह की परेशानी में नहीं पड़ें।
 
उन्होंने कहा कि पुरुष नसबंदी के प्रति जागरूकता फैलाकर कम बजट में अच्छा नतीजा पाया जा सकता है। नसबंदी की यह प्रक्रिया आसान है जिससे कम समय, सर्जन-स्टाफ एवं उपकरणों से तुलनात्मक रूप से अधिक काम हो सकेगा लेकिन बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाए जाने के बिना पुरुष प्रधान समाज इसके लिए आगे नहीं आएगा और महिलाएं ही पिसती रहेंगी। वे ऐसी वजहों के कारण दम तोड़ती रहेंगी जिनसे बचने के लिए धन-संपति खर्च करने से कहीं अधिक जरूरत सोच बदलने की है।
 
पीएफआई की कार्यकारी निदेशक ने शायद इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से इसे 'मन की बात' कार्यक्रम में शामिल करने का आग्रह किया है। मटरेजा ने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री का देश पर अच्छा प्रभाव है। मोदी की इस एक पहल से ही बड़ा बदलाव दिखाई देगा। (वार्ता) 


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