भाजपा ने हाल ही राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी भाजपा की जीत के लिए उत्तरप्रदेश में धुआंधार चुनावी सभाएं कीं। उत्तरप्रदेश में भाजपा को 325 सीटों का प्रचंड बहुमत मिला। बहुमत के बाद भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को उत्तरप्रदेश की कुर्सी सौंपी।
योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद सोशल मीडिया और राजनीतिक विश्लेषकों में तरह-तरह की बातें होने लगी हैं। चर्चाएं होने लगी हैं कि अगर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाकर चुनाव लड़ा जाता तो क्या इतनी बड़ी जीत उसे मिल पाती। योगी आदित्यनाथ के विरोधी उन पर समाज को बांटने वाली राजनीति करने का आरोप लगाते हैं, लेकिन इन सबसे बेपरवाह योगी आदित्यनाथ बेफिक्री से अपनी बात कहते रहे हैं।
एक बड़े वर्ग का मानना है कि विकास के नाम पर वोट मांगकर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाकर प्रचंड बहुमत का अपमान किया है। योगी आदित्यनाथ को कट्टर हिन्दूवादी नेता माना जाता है। चाहे लव जिहाद, धर्मांतरण जैसा मुद्दा हो, योगी हमेशा इन पर मुखर रहे हैं।
माना जाता है कि योगी आदित्यनाथ हमेशा एक वर्ग विशेष के खिलाफ रहे हैं। चुनावों से पहले ही योगी आदित्यनाथ ने राम मंदिर को लेकर बयान दिए हैं। 'सबका साथ सबका विकास' की बाद करने वाली भाजपा योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करके क्या इतनी बड़ी जीत हासिल कर पाती। योगी आदित्यनाथ को अमित शाह का करीबी माना जाता है।
सवाल यह भी है कि उन 11 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव हुए थे, जो भाजपा विधायकों के सांसद चुने जाने से खाली हुई थीं। इन चुनाव की कमान योगी आदित्यनाथ को सौंपी गई थी। इन सीटों में से समाजवादी पार्टी ने आठ सीटें जीत ली थीं। भाजपा को केवल तीन सीटें ही हासिल हुई थीं। तो क्या योगी आदित्यनाथ को उत्तरप्रदेश में भाजपा का चेहरा बनाने से उसे यह सफलता मिल पाती।
लव जिहाद और धर्मांतरण जैसे मुद्दों पर मुखर योगी आदित्यनाथ को क्या मुस्लिम मतदाताओं का साथ मिल पाता। 'सबका साथ सबका विकास' पर चलने वाली भाजपा अगर योगी आदित्यनाथ को अपना चेहरा बनाती तो चुनाव परिणाम की तस्वीर कुछ ओर होती।