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अपनों की बेरुखी से जख्मी 'लाल किला'

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नई दिल्ली , सोमवार, 24 फ़रवरी 2014 (19:31 IST)
नई दिल्ली। मुगलकालीन वास्तुकला का अप्रतिम उदाहरण, भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक, आजाद भारत का प्रथम हस्ताक्षर और यूनेस्को विश्व धरोहर लाल किला आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। इसके बुर्ज काले पड़ गए हैं, कलाकृतियां अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं और महल में जगह-जगह दरारें पड़ गई हैं।

लाल किले में प्रवेश करते ही लाहौरी गेट और दिल्ली गेट से ही इस भव्य इमारत की खस्ता हालत देखने को मिलती है। लाहौरी गेट से चट्टा चौक तक जाने वाली सड़क से लगे खुले मैदान के पूरब में स्थित नक्कारखाने पर भी वक्त की मार देखने को मिल रही है।

ऐसी ही खस्ता हालत दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, हमाम, शाही बुर्ज, रंगमहल आदि की भी है। इन इमारतों पर उकेरे गए चित्र एवं कलाकृतियां अपना वजूद खोती जा रही हैं और बुर्ज काले पड़ गए हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के वरिष्ठ अधिकारी डॉ. बसंत कुमार स्वर्णकार ने कहा कि काफी साल पहले लाल किले में एएसआई काम कर रहा था। कुछ लोगों ने बाद में उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर की कि एएसआई ठीक ढंग से काम नहीं कर रहा है। जनहित याचिका की वजह से 10 वर्षों तक लाल किले में काम नहीं हुआ।

उन्होंने कहा कि इसके बाद समग्र संरक्षण प्रबंधन योजना (सीसीएमपी) तैयार की गई और शीर्ष अदालत ने इसे मंजूरी प्रदान कर दी। अब हाल ही में लाल किले की स्थिति ठीक करने का काम शुरू किया गया है।

‘छत्ता बाजार’ को पुराने रूप में बहाल किया गया है। इस स्थान को ब्रिटिश काल में सैनिक इस्तेमाल करते थे और यह अब तक बंद पड़ा था। इसकी नकली दीवार को हटाकर इसे खोला दिया गया है। इसके सभी चाप (आर्क) को भी खोल दिया गया है। हालांकि अभी काफी काम करना है।

लाल किले में बादशाह द्वारा जन साधारण की फरियाद सुनने के लिए बना वृहद प्रांगण ‘दीवान-ए-आम’ का अलंकृत सिंहासन का छज्जा पूर्वी दीवार के बीचोबीच बना है। इसकी पिछली दीवार में लता मंडप बना हुआ है। इस मंच के पीछे इटालियन प्रिटा ड्यूरा का उत्कृष्ट नमूना है।

यह शानदार दीवान-ए-आम बदरंग होता जा रहा है, इसकी सुंदरता पर दाग लग गया है। इसकी कलाकृतियां अपना मूल स्वरूप खोती जा रही हैं और कई जगहों पर चूने का लेप लगाकर इसे ढंक दिया गया है।

शहंशाह का मुक्तहस्त सुसज्जित निजी कक्ष ‘दीवान-ए-खास’ अपने अप्रतिम सौंदर्य के लिए जाना जाता रहा है। सफेद संगमरमर से बने मंडप और बारीक तराशे गए खंभे इसकी सुदंरता में चार चांद लगाते थे। अब ये बदरंग दिखते हैं और कई स्थानों पर दरारें आ गई हैं।

लाल किले में रंगमहल और खास महल की भी स्थिति काफी खराब है। किले में नहर-ए-बहिश्त काफी पहले अपनी पुरानी खूबी खो चुकी थी। कभी लाल किले की दीवार से सटकर बहने वाली यमुना नदी का पानी इसमें बहता था, लेकिन यमुना के रास्ता बदल लेने से नहर-ए-बहिश्त सूखी पड़ी है और उसका नैसर्गिक सौंदर्य खो गया।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और आजाद भारत का प्रथम हस्ताक्षर लाल किला आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। (भाषा)

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